भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
स्टैनों चंदर कुछ देर पहले ही डिक्टेशन लिये मैटर पर साइन करवाकर बाहर जा चुका है तो साथ वाले दफ्तर के सुपरिटेंडेंट मि. गुप्ता ने हैरानगी से पूछा, ‘क्या बात है शर्मा जी, लगता है आज तो मूड में हो।’
‘वो कैसे?’ शर्मा जी ने टाई से कसे कालर में उँगली फिराते हुए पूछा और कुर्सी से पीठ लगा ली। उनके चेहरे पर कालापन कुछ कम हुआ था। इस समय यदि वह सूट ना पहने होता और इस दफ्तर में कुर्सी-नशीन ना होता तो ‘शर्मा जी’ की बजाय इनके लिए ‘पंडित जी’ का संबोधन ज्यादा फबता। एकदम लोहे के शनिदेव सरीखा-अनगढ़ व्यक्तित्व, काले-खुरदरे हाथ और बिवाई फटे पाँव-बिल्कुल रीछ जैसे। रोटी खाते हुए दिख जाएँ तो खाई ना जाए। पाँव बेडौल होने के कारण ही वे कोई भी जूता नहीं पहन सकते। बारह के बारह महीने चप्पल पहनते हैं और ठोड़ी के नीचे लटकती मोटी चमड़ी जो कभी तो उनके व्यक्तित्व में बढ़ावा करती और कभी-कभी बड़ी भद्दी लगती। वे इंटीमेट प्रयोग करते हैं और इंटीमेट की तीखी गंध की अनुपस्थिति में उनके इस बदन से मिलती-जुलती बू की कल्पना कोई भी कर सकता है।
‘बिना ‘रि-टाइप’ के लिए कहे ही साइन कर दिए?’ कहकर गुप्ता ने हँसने की तरह दाँत दिखाए। जवाब में शर्मा ने भी अपने दाँत दिखा।
गुप्ता यानी पी.के. गुप्ता… वास्तव में ही गुप्ता हैं। एकदम पतले-नाजुक से। आगे माथे पर से उड़े बाल और बचे हुए थोड़े से बालों को पीछे को चिपकाए हुए। ये सुपरिंटेंडेंट होने के बावजूद प्रतिदिन अखबार का ‘आज के भाव’ वाला पन्ना जरूर देखते हैं और कई बार अपने सहकर्मियों से भी ‘मंदी’ या ‘तेजी’ की बातें करते हैं। शर्मा और गुप्ता में अच्छी पटती है।
दरअसल. शर्मा की. मीन-मेख निकालने की आदत से दफ्तर के सभी लोग परिचित हैं। ‘इज’ का ‘इट’ और ‘इट’ का ‘इज’ भी अगर पैन से करना पड़े तो उसे भी ‘रि-टाइप’ के लिए कहते और इस ‘रि-टाइप’ के बाद भी कुछ ‘एडिशंज’ याद आ गई तो फिर ‘रि-टाइप’ का आर्डर दे देते हैं।
‘हाँ, गुप्ता जी, दरअसल काफी समय के बाद एक अच्छा टेलैंटिड ब्वॉय मिला है… बहुत नॉलिज है इस लड़के की…’ उसने मेज पर पड़े पैकेट से एक सिगरेट निकालकर होंठों से दबाकर पैकेट गुप्ता की ओर बढ़ा दिया और गप्ता के सिगरेट के लिए कहे गए थेंक्य को अनसना कर कहना जारी रखा. ‘इस बार मैंने अड़कर ‘जनरल कैटेगरी’ से आदमी लिया है… इससे पहले वाले अनफोर्चेनेटली सब-के-सब एस.सी. ही पल्ले पड़ते रहे’… -कहने को शर्मा कह गए पर शीघ्र ही बात को सँवारते हुए कहने लगे, एससी-वैससी वाली भी कोई बात नहीं-यू नो माई हैबिट-आई नैवर बिलीव इन दिस ब्लडी कास्टीज्म…बट वे सब थे ही-एक से बढ़कर एक महारद्दी…आल होपलैस… बट आय म रीयली प्राऊड ऑफ दिस ब्वॉय…यह सब कहते हुए उनके चेहरे पर बेटे की प्रशंसा करते बाप की-सी खुशी थी। उनके बोलने से होंठों में दबी सिगरेट होंठों के मुकाबले ज्यादा हिल रही थी। उन्होंने सिगरेट जलाई और लाइटर गुप्ता की ओर बढ़ा दिया।
गुप्ता ने भी सिगरेट सुलगा ली और लाइटर को उलट-पलटकर देखते हुए कहा, ‘पर है तो यह भी एससी ही।।
‘व्हाट?’ शर्मा ने झटके से सिगरेट होंठों पर से उँगलियों में ले लिया।
‘हाँ , गुप्ता ने उसकी आँखों में आँखें गड़ाकर अतिरिक्त विश्वास जाहिर किया।
‘लेकिन… मेरा मतलब है ये तो बड़ा स्मार्ट है और फिर इंटेलीजेंट भी… नामुमकिन-सा लगता है और फिर…’ शर्मा को गुप्ता के कहे का विश्वास ही नहीं आ रहा था।
‘क्यों? ये लोग स्मार्ट नहीं हो सकते क्या? आजकल तो स्मार्ट ही यही लोग ज्यादा होते हैं…शर्मा जी।’ लेकिन शर्मा को विश्वास ही नहीं आ पा रहा था। वह फिर अविश्वास करते हुए बोले आप समझ ही नहीं रहे…मैंने खुद वहाँ ब्रांच में जाकर लिस्ट में से देख-छाँटकर जनरल कैटेगरी से लिया है…।’ शर्मा कह तो गए थे पर गुप्ता से इतनी भी घनिष्ठता नहीं थी कि अपने को एक्सपोज करके मेज पर रख देते। लेकिन उन्हें उसके इस किए का विरोध होता नजर नहीं आ रहा था, क्योंकि गुप्ता ने फिर पहल की वो सब मैं मान लेता हूँ… मैं ही कब कह रहा हूँ कि ‘रिजर्व’ कोटे से आया है ये…लेकिन जो मैं कह रहा हूँ वह शत-प्रतिशत सही है। मेरे सैक्शन में इसके पड़ोस का एक क्लर्क है। यूँ ही रिजर्वेशन की बात चल निकली तो बातों-बातों में इसका जिक्र आ गया। और उस जिक्र में इनडायरेक्टली सब इसकी परहेज ही कर रहे थे।
इसमें कोई शक नहीं कि लड़का इंटेलीजेंट है-एक्स्ट्रा आर्डीनरी इटैलीजेंट… बट आई मीन चाम की कैटेगरी तो… ‘गुप्ता की बात बीच में ही शर्मा ने काट दी, क्योंकि इसी तरह के एक वाक्य की प्रतीक्षा वह कर रहा था। ‘दैट आई अंडरस्टैंड, गुप्ता जी’ और कहकर मेज पर उँगलियों की ताल लगाने लगा जैसे कि किसी राष्ट्रीय समस्या पर नोटिंग-ड्राफ्टिंग करने का काम जिम्मे लग गया हो।
गुप्ता लाइटर को उलट-पलटकर देखता रहा। वह उस पर से एक जगह पपड़ी बनकर उतरती निक्कल की पतली सी-पर्त को नाखून से खुर्च रहा था और यह सब अनजाने में ही हो रहा था-उसको तो यह भी आभास नहीं था कि उसके हाथ मे लाइटर नाम की कोई चीज भी है। आदत के अनुसार उसे कुछ-ना-कुछ तो करना ही था। या तो आलपिन दाँतों में घुमानी थी या पेपरवेट को मेज पर खटर-खटर करते हुए चुभाते रहना था, या फिर पैन-होल्डर उठाकर मेज की कोर पर टक-टक बजाना था। अब उसके हाथ में शर्मा का यह लाइटर था और वह अवचेतन से ही निक्कल खुर्च रहा था जिससे के चमचम करती निक्कल की नन्हीं-नन्हीं पपड़ियाँ नीचे गिर रही थीं और नीचे का जंग लगा लोहा दिखने लगा था।
दोनों ही सिगरेट का धुआँ छोड़ रहे थे और वह केबिननुमा छोटा-सा दफ्तर धुएँ से भर गया था।
शर्मा ने अपने भीतर की बैचेनी फिर निकाली, ‘ये तो खूब खबर सुनाई गुप्ता जी आपने… मैंने तो इसे ‘जेन्युईन’ आदमी समझकर ज्यादा ही इम्पार्टेस दे दी… और ये तो पूरे सैक्शन पर हावी हो गया है। खैर कोई बात नहीं। अभी ज्यादा ऊपर नहीं चढ़ा है। इसी वक्त झटका देना ठीक नहीं रहेगा… ‘यह सब शर्मा कहने को कह तो गया है पर उसने फिर सोचा कि उसने अभी-अभी कहा है क्या सच में ही वह कह गया है या बुड़बुड़ाया है या केवल सोचा भर है। लेकिन यह ध्यान आते ही कि पहल गुप्ता ही कर रहा है उसने इसे हल्का लिया और चपरासी को बुलाकर चंदर को अभी-अभी साइन किए कागज को लेकर आने को कहा। अब वह तेजी से चंदर के भविष्य में किए जाने वाले व्यवहार की रूपरेखा तैयार करने में व्यस्त हो गया, बल्कि कहना चाहिए कि अस्त-व्यस्त हो गया, क्योंकि साथ ही भूत में हुई गलती पर भी वह पछता रहा था और अपने-आपको वह गुप्ता के आगे शर्मिंदा-सा महसूस कर रहा था।
तभी गुप्ता को आभास हुआ कि निक्कल की जिस महीन-सी पपड़ी को वह नाखून से चिटक-चिटक कर रहा था-पूरी उतर गई है। उसने नजर से शर्मा को देखा और फिर धीरे से वह लाइटर सिगरेट के पैकेट पर रख दिया। पर नजरें पुराना दिखने लगे लाइटर पर ही थीं। उसने सिगरेट एश-ट्रे में बुझा दी और ऐश-ट्रे के साथ ही अपनी उँगलियाँ व्यस्त कर लीं। यह सब करते हुए गुप्ता को शर्मा का और उँगलियाँ मेज पर बजाते हुए शर्मा को गुप्ता का चेहरा टेबल-ग्लास पर दिख रहा था-धुंधला-‘सिल्लेट’ -सा। लेकिन दोनों को अपना चेहरा नहीं दिख रहा था क्योंकि कोण ही ऐसा बैठता था।
गुप्ता शर्मा की अग्रिम कार्रवाई की व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रहा था, लेकिन प्रत्यक्षतः अपने-आपको इस पूरे प्रसंग से असंबद्ध/तटस्थ दिखाने के लिए कहा था, ‘चीनी दो रुपए उछल गई… एकदम।’
‘क्या बात, स्टॉक की हुई है क्या?’ शर्मा ने ठहाका लगाकर पूछा। मेज पर बजती उँगलियाँ क्षण को रुकी और फिर कटक-कटक करने लगी थीं।
‘नहीं, स्टॉक तो क्या करनी थी… बड़े लड़के की दुकान है ना किरयाने की, इसलिए अखबार देख लेता हूँ…’ तभी चंदर ने आकर ‘यस सर’ कहते हुए शालीनता से कागज मेज पर रख दिया। उसके हाथ में नोटबुक और पेंसिल थी। शर्मा ने कागज उठाकर रुखाई से उसे बाहर जाने को कहा। और उसके जाते ही गुप्ता को वह कागज देते हुए बोले, ‘ये देखो गुप्ता जी…बेशक एक-एक वर्ड ध्यान से पढ़ लो…गलती भी तो नहीं करता हरामजादा… नॉट ईवन ए सिंगल मिस्टेक। ना टाइप की ना स्पैलिंग की…और सैटिंग देखो लगता है जैसे प्रिंटेड हो…नहीं? और एक अपने ये शहजादे हैं कौशिक और अग्रवाल-दस-दस साल हो गए हैं कुर्सी तोड़ते कुछ भी आता हो तो…इंट्रैस्ट ही नहीं लेते काम में, सारा दिन चाय, फिल्मों पर डिस्कशन और कमेंट्री ही खत्म नहीं होती इनकी…‘शर्मा को ध्यान आया कि वह फिर बह रहा है। उसे कौशिक और अग्रवाल के लिए ‘अपना’ शब्द खुद ही कुछ अखरा था। इसलिए वह चुप हो गया और गुप्ता के चेहरे का रिएक्शन देखने लगा।
गुप्ता ने उचटती-सी नजर कागज पर डाली और शर्मा की ओर बढ़ाते हए ‘हम’ की और कहा, ‘ये तो ठीक है…’ उसने ‘ये तो ठीक है’ ऐसे कहा जैसे इस कागज के ठीक होने के साथ-साथ और भी बहुत कुछ ठीक होना जरूरी है जो कि ठीक नहीं है। वह फिर सिगरेट के पैकेट पर रखे लाइटर को देखते हुए एश-ट्रे घुमाता रहा और अपने को इस सारे प्रसंग से असंबद्ध कर बोला, ‘छोड़ो शर्मा जी, मैं तो भूल गया… मैं पूछने आया था कि रात को कुमार साहब के घर दावत पर जाने का क्या प्रोग्राम है?’
कुमार यानी सुरेंद्र कुमार इनका इमीजियेट बॉस भी हरिजन है पर उसके बारे में कुछ भी कहने से दोनों कतरा रहे हैं। क्योंकि यह शर्मा काम ना आने की वजह से उसके पास जाने से भी कतराता है लेकिन शर्मा को ये ईर्ष्या है कि गुप्ता ने उसे न जाने कैसे पटा रखा है। और गुप्ता को शर्मा की इस कमजोरी का पता है इसलिए वह भी कुछ नहीं कहता-वह भी डरता है कहीं उसका कुछ भी कहा हुआ यह शर्मा अपने नंबर बनाने के लिए बॉस तक न पहुँचा दे। बहरहाल, उस समय दोनों ही उस प्रसंग को टालने में सफल हो गए हैं, क्योंकि शर्मा ने तभी चंदर को फिर बुला लिया, ‘माई डियर चन्दरपाल, मैं सोच रहा था कि तुम्हें खुलकर काम करने का और ऑफिस-रूटिन ग्रैस्प करने का पूरा-पूरा मौका दूँ…बट यू वुड हैव आलसो रियलाईज्ड फ्राम माई ऐट्टीच्यूड… बट…मुझे अफसोस है कि तुम ‘वही के वही’ रहे।’ चंदर की नजरों में सवाल-पर-सवाल आ रहे थे। ‘कौन-सी गलती हुई होगी’ पर वह चुप खड़ा था। वह कुछ भी समझ नहीं पा रहा था। उम्र ही कितनी थी जो भाषा की बुनावट और बोलने के ढंग से ही अर्थ ढूँढ लेता। अभी तो मूंछों की जगह भी रोएँ थे। स्कूल से इंटर और सीधा स्टनोग्राफर का कोर्स कर यहाँ चयन हो गया था। वह मेज पर कागज को देखता हुआ कोई गलती ढूँढ़ने को कोशिश कर रहा था कि शर्मा ने वह कागज उठाकर ऊँची आवाज में कहा, ‘अब यही देखो… ध्यान से देखो…’ और कागज फिर मेज पर रख दिया। चंदर को उसमें कोई भी गलती नजर नहीं आ रही थी। वह इस अप्रत्याशित वातावरण में कुछ ज्यादा की झेंप गया। और कुछ भी समझा नहीं पा रहा था कि क्या कहे…क्या पूछे। एश-ट्रे घुमा रहे गुप्ता की मौजूदगी उसे और भी कचोट रही थी। वह भीतर से डूबने लगा। उसने हिम्मत कर कुछ कहना चाहा पर ‘सर’ ही बड़ी मुश्किल से कह पाया था कि शर्मा ने बीच में ही बोला, ‘तुम्हें तो ये ड्राफ्ट बिल्कुल ओ.के. लगता होगा…भई लगे क्यों ना…दिमाग जो नहीं है और दिमाग कोई उधार थोड़े ही मिलता है… वह तो जन्मजात होता है… ‘गुप्ता जैसे कुछ सुन ही न रहा हो-उसने पैकेट से एक सिगरेट निकालकर सुलगा ली और आदतन लाइटर फिर उसके हाथ में ही खेलने लगा। ‘देखो, इसकी सैटिंग देखो…गौर से देखो…बायीं ओर अगर थोड़ा -सा मार्जन और होता और इधर ऊपर भी तुमने घुच्च-मुच्च कर रखा है। और इधर, राइट हैंड को तो आधे से ज्यादा वर्ड हाइफन लगाकर आधे टाइप किए हुए हैं, टाइपिस्ट को यह पहले ही पता लग जाता है कि यह वर्ड परा इधर नहीं आएगा-सो अगली लाइन में ले जाओ… देखों भई क्लीयर बात है हमें तो काम प्यारा है चाम नहीं…’ अब शर्मा ने आवाज काफी ऊँची कर ली ताकि बाहर बैठे सैक्शन के अन्य लोग भी सुन लें ‘अपने-आपको सुधारो और सुनो अगर कुछ नहीं आता तो टेक हैल्प फ्राम यूवर कुलीग्स। एक्सपीरियन्स्ड परसन्स, लाइक मिस्टर कौशिक एंड अग्रवाल एंड अदर पीपल आलसो आर देयर विद यू… जाओ इसे ‘रि-टाइप करके लाओ…पेपर की इम्पारटेंस समझा करो… पता है ये नोटिफिकेशन कैबिनेट तक मूव कर सकता है…’ चंदर कागज उठाकर अपनी चाल सामान्य रखने के लिए काँपती टाँगों को अकडाने की कोशि करता हुआ बाहर निकल गया।
उसके जाते ही शर्मा ने सिगरेट निकालकर बायीं आँख दबाते हुए मुस्कराकर गुप्ता की ओर हाथ बढ़ाया। समझना मुश्किल था…मिलाने के लिए या लाइटर के लिए। जवाब में गुप्ता ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। समझना मुश्किल था-मिलाने के लिए या लाइटर देने के लिए।
बहरहाल, लाइटर गुप्ता के हाथ से शर्मा की हथेली पर जा चुका था। और शर्मा का ध्यान जब लाइटर के जंग लगे लोहे पर गया तो उनके मुँह से निकला था, ‘अरे!’
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
