Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: बेवजह की जलनखोरी से बच निकलने की कितनी ही कोशिशें कीं; लेकिन माशूक के मुँह से किसी और की थोड़ी भी ज़्यादा बातें आग लगा ही देती हैं। बात भरोसे या शक की नहीं, शायद हक़ समझने की होती है।

“क्या हाल है तुम्हारे ठरकी बॉस के आजकल?” मैंने उससे पूछा, हालाँकि यूँ मुझे भी उसमें कोई ख़ास नुक्स नज़र नहीं आता; लेकिन वह उसे पसंद करती है, और ना भी करती हो तो उसके लिए नेगेटिव कुछ नहीं कहती।

“मस्त हैं अपनी ठरक में, और क्या।” उसने हँसते हुए कहा।

“सुधर नहीं रहा अब भी?” कभी-कभी यह सुनने के लिए लालायित हो जाता हूँ कि, उसके लिए वह कहती क्या है।

“एैश कर रहे हैं लाइफ़ में, काहे को सुधरने जाएगें।” पता नहीं उसने पीठ थपथपाई या दुत्कारा।

“तुम्हारे ऊपर डोरे डालने बंद किए या नहीं उसने?” आज बहुत दिनों बाद उससे मिला था। इन दिनों फोन पर भी बहुत कम बातें हुई थीं, पता नहीं क्यों बातें उसकी तरफ़ ही निकल चलीं।

“ऐसा नहीं है यार, बेचारे मस्ती में और ख़ुश रह कर बात करते हैं तो लोगों को हज़म नहीं होती; और मुझसे ही नहीं सभी से प्यार से बात करते हैं।”

“तुम ही तो बताती थी उसके किस्से।” उसकी तरफ़दारी मुझे पसंद नहीं आ रही थी।

“किस्से तो किस्से ही होते हैं; कितने सही, कितने गलत किसे पता। सबके अपने मतलब हैं। दास्ताँ कहने वाले भी मिर्च-मसाले लगाकर दिलचस्प और राज़दार आदमी बनना चाहते हैं, साथ ही दूसरों को नीचा साबित कर ख़ुद को अच्छा दिखाने की साज़िश रचते हैं।” उसने सुगमता से कहा।

“बहुत फेवर ले रही हो उसका।” किसी और आदमी को उसका इतना समझना भी अच्छा नहीं लगा।

“फेवर-वेवर की बात नहीं है। मुझे तो मस्त लगता है बंदा। कोई घटिया बात उसने मेरे सामने तो कभी कही नहीं; औरों की बातों में मैं आती नहीं। हाँ परख ज़रूर लेती हूँ। और ठरकी तो दुनिया का हर इन्सान है, कुछ ईमानदार ठरकी और तुम्हारी तरह बेईमान ठरकी। हा…हा…हा…” उसने हँसते और मार से बचने की एक्टिंग की, हालाँकि मैंने हाथ उठाया नहीं था; बस दहक़ती ज्वाला लिए उसकी ओर देखा था।

“अच्छा बेट्टा मैं ठरकी हूँ?” उसके मज़ाक ने मेरा मूड बदल डाला।

“और नहीं तो क्या, मोबाइल में पोर्न देखकर हमेशा मुझे इमेजिन नहीं करते हो?” उसने कहा तो एकबारगी मैं सकपका गया। कब की कही बातें, कब कैसे इस्तेमाल कर लेती है। मेरी कही बातों पर ध्यान तो बहुत देती है, वरना याद कैसे आती ये भूली-बिसरी बात।

“अबे, उसका इस बात से क्या लेना देना। तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए कि,मैं हर लड़की की तरफ़ लार टपकाते नहीं घूमता।” हालाँकि यह कहना मुझे व्यर्थ सफाई देने की तरह लगा।

“हाँ! क्लास देखकर टपकाते हो न? हा…हा…हा…” कभी-कभी उसकी इस तरह की बातों से मुझे शक हो जाता है कि, वह मुझसे प्यार और यक़ीन करती भी है या नहीं।

“सरफ़रोशी की तमन्ना आज दिल में है क्या? पिटने का पक्का इरादा कर लिया है न तुमने?” मैंने हड़काया।

उस बेअदम ने एक पुराने गाने की पैरोडी बना दी-“आज फिर पिटने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है…अपने ही बस में नहीं मैं…दिल है कहीं, तो हूँ कही मैं…आज फिर पिटने की तमन्ना है…हा…हा…हा…” उसके इस मज़े का मैं आशिक़ हूँ और उसका पाजीपना होठों को निचोड़ डालने की ठरक पैदा कर देता है।