यही तो था उसकी ज़िन्दगी का सच, जो बन्द आंखों से भी वो अपनी बत्तीस साल की शादीशुदा जिंदगी को फ़्लैशबैक में जा कर किसी फिल्म के दृश्यों की भांति देख रही थी।
हर जवान लड़की की तरह मन मे हजार सपने लिए वो भी संदीप का हाथ थामे जब इस घर मे आयी थी।बत्तीस साल पहले जब किसी लड़की को शादी से पहले किसी लड़के की तरफ देखना तो दूर ,सपने में भी देखने की इजाजत नहीं होती थी। तब संदीप उसकी ज़िन्दगी में आये माँ बाप की पसंद से और उनको ही अपने सपनो का राजकुमार मान लिया था उसने।
लेकिन हर बीतते दिन के साथ वो अपनी आंखों के सामने ही अपने सपनो को चकनाचूर होते देखती रही।
संदीप तो उसके सपनो वाले राजकुमार से बिल्कुल अलग थे। वो एक आदर्श बेटा थे,पति भी थे और अपने बच्चों केआदर्श पापा भी।
लेकिन वो कभी सुनीता के दोस्त नहीं बन पाए।न ही कभी प्रेमी बने, जिसके उसने सपने देखे थे।बत्तीस सालों में वो कभी बत्तीस मिनट भी एक साथ नहीं बिता पाए थे क्योंकि संदीप तो हमेशा अपने बिज़नेस और अपने यार दोस्तों की दुनिया मे ही मगन रहते थे।उनकी पत्नी सिर्फ पत्नी थी जिसकी भावनाओं से उन्हें कोई सरोकार नहीं था।
सुनीता उनके मुंह से प्यार के या तारीफ के दो बोल सुनने को तरस जाती थी। कई बार तो जान बूझ कर किसी काम मे देरी कर देती कि शायद थोड़ा डांट ही दें।लेकिन पता नहीं वो किस मिट्टी के बने थे।
और आज जब लॉक-डाउन को पैंतालीस दिन हो चुके थे। दिन – रात दोनो साथ रह रहे थे। बच्चे तो अब साथ थे नहीं । बत्तीस साल में जिन्होंने बत्तीस मिनट भी एक साथ नहीं बिताए वो इतने दिन से दिन रात एक साथ बिता रहे थे!
एक साथ नाश्ता, लंच ,डिनर।खबरें सुनना, कभी टाइम पास के लिए लूडो खेलना और यहां तक कि शाम की चाय भी साथ ही पीते। कभी कभी तो वो हैरान रह जाती जब वो उसके लिए खुद ही चाय बना कर ले आते।
“सुनीता सुनो,कहाँ खोई हो ?कब से आवाज लगा रहा हूँ। आ जाओ देखो चाय भी बन गयी है।”
सुनीता आवाज़ सुनकर एक दम से उठकर कमरे से बाहर जाती है तो देखती है कि संदीप चाय के साथ उसकी राह देख रहे हैं।
“आ जाओ ,बैठो,गर्म गर्म चाय पियो,
मुझे तुमसे कुछ बात भी करनी है”
सुनीता-“सुनो जी मुझे भी आपसे कुछ बात करनी है”
“अच्छा पहले तुम बताओ”
“नहीं पहले आप कहिए, क्या कहना चाहते हो”
संदीप बोले,”सुनीता बत्तीस साल में हम एक दूसरे को कभी समझ ही न हीं पाए या शायद समझने को कोशिश ही नहीं कर पाए, लेकिन इन पैंतालीस दिनों के साथ ने मुझे ये अहसास करवा दिया है कि तुम्हारे बिना तो मैं बिल्कुल जीरो हूँ।तुम्हारा आसपास होना ही मुझे पूर्ण कर देता है। तुम हो तो मैं हूँ तुम नहीं तो मैं कुछ भी नहीं। अब जाके अहसास हुआ है कि इस रिश्ते की अहमियत क्या होती है। क्या तुम मुझे माफ़ कर सकोगी? शायद ये कहने में मैंने बहुत देर कर दी लेकिन सच मे सुनीता मुझे अब तुमसे प्यार हो गया है।”
संदीप ने सुनीता के हाथ को अपने हाथ मे ले लिया और बोले,”अच्छा अब तुम बताओ तुम क्या कहना चाहती हो?’
संदीप की बातें सुन कर सुनीता की तो जैसे बोलती ही बन्द हो गयी थी। जिस बात को सुनने के लिए उसने बत्तीस साल इंतजार किया आज उसको सुनकर उसकी आँखों से गंगा यमुना बह निकली। उसने अपना सिर संदीप के कंधे पर रख दिया और बहुत देर तक संदीप का कंधा अपने आंसुओं से भिगोती रही।
आखिर वो भी तो यही कहना चाहती थी अपने पति प्रियतम से..!!!
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