"Acchi Sikh dene wali Chidiya" panchtantra-ki-kahani
"Acchi Sikh dene wali Chidiya" panchtantra-ki-kahani

Story in Hindi with Moral “Acchi Sikh dene wali Chidiya”

पात्र-परिचय हवा दीदी निक्का, निक्की और मोहल्ले के अन्य बच्चे एक छोटी सी नेक चिड़िया सूचीमुख बंदरों की टोली और उनका मुखिया गज्जू दादा

पहला दृश्य

(स्थान–गली या मोहल्ले के पास वाला खेल का मैदान, जिसमें एक तरफ बच्चे खड़े-खड़े बातें कर रहे हैं। तभी हवा तेजी से बहती हुई आती है और बच्चों को मजे से बातें करते और खेलते देख, ठिठक जाती है। फिर हवा दीदी बच्चों के पास आकर बड़े उत्साह से बताने लगती है।)

हवा दीदी : उफ, वह चिड़िया, बेचारी चिड़िया। बंदरों ने बेचारी को मार ही डाला।

निक्का : पर क्यों हवा दीदी, क्यों?

निक्की : भला ऐसा किया क्या था चिड़िया ने?

हवा दीदी : किया तो कुछ भी नहीं था उस प्यारी सी चिड़िया ने। बस, ठंड में ठिठुरते उन बंदरों को नेक और अच्छी सीख दी थी, ताकि वे सर्द जाड़े से अपनी जान बचा लें, लेकिन…?

निक्का : लेकिन क्या हवा दीदी?

निक्की : उस अच्छी चिड़िया को मारा क्यों बंदरों ने हवा दीदी? वह तो अच्छी सलाह देकर उनकी जान ही बचा रही थी।

हवा दीदी : (उदास स्वर में) पर बंदरों ने अच्छी-अच्छी सीख देने वाली चिड़िया को मार डाला।

निक्का : क्यों हवा दीदी?

निक्की : यह तो अच्छी बात नहीं है।

हवा दीदी : गंभीर होकर अच्छी बात तो नहीं है, पर दुष्ट लोग यह देखते कहाँ हैं ? उन्हें तो कोई अच्छी बात बताए, यह भी बुरा लगता है। तभी तो उन्होंने नाहक उस अच्छी चिड़िया की जान ले ली।…लो तुम भी देखो यह नाटक, जिसे मैं अभी-अभी जंगल में देखकर आ रही हूँ। गज्जू दादा ने वाकई बड़े मजेदार ढंग से उसे पेश किया था। अब तुम भी देखो वह नाटक।

दूसरा दृश्य

(स्थान-घने जंगल का दृश्य। एक पहाड़ पर बंदरों की टोली रहती थी। सर्दी का मौसम था। अचानक बारिश होने लगी। इससे सर्दी और अधिक बढ़ गई। बंदर सर्दी से बुरी तरह अकुला रहे थे। एक पेड़ के नीचे उन्हें गुंजाफल दिखाई दिए। उन्हें उन बंदरों ने अंगारे समझ लिया। अपने आप से…)

एक बंदर : (खुश होकर) अरे वाह, पेड़ के नीचे ये कितने सारे अंगारे पड़े हैं। इनके ताप से शायद जाड़ा भाग जाएगा।

दूसरा बंदर : (उछलते हुए) हाँ-हाँ भाई, हाँ। तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। मैं तो अभी इनके पास जाकर बैठता हूँ, ताकि शरीर में थोड़ी गरमी आ जाए।

बंदरों का मुखिया : (गंभीरता से सिर हिलाकर) हाँ-हाँ, ये अंगारे तो बड़े काम के हैं। और फिर यहाँ तो ढेर सारे अंगारे पड़े हैं। इससे अच्छा तो और क्या हो सकता है? सब बंदर यहीं आकर अपना शरीर ताप लो।

(दौड़-दौड़कर बंदर उन फूलों के पास आकर बैठ गए और गरमी भगाने की कोशिश करने लगे। सूचीमुख नाम का पक्षी यह देख रहा था। बंदरों की मूर्खता देखकर उसे बड़ी हँसी आई। उसने बड़ी हमदर्दी के साथ बंदरों को समझाया।)

सूचीमुख पक्षी : अरे भई, ये अंगारे नहीं, गुंजाफल है। इनसे सर्दी से बचाव नहीं होगा। अगर सर्दी से बचना चाहते हो तो किसी गुफा की तलाश क्यों नहीं करते? यहाँ तो ठंडी हवा आकर तुम्हें परेशान करती रहेगी।

(इस पर बंदरों का मुखिया बुरी तरह चिढ़ गया। बाकी बंदरों को भी गुस्सा आ रहा था।)

बंदरों का मुखिया : भई, तुम तो बोल तो ऐसे रहे हो जैसे तुम सर्वज्ञाता हो। सारी दुनिया की बातें तुम्हीं जानते हो। और हम तो मूरख हैं, एकदम मूरख। क्या अब हमें तुम्हारी पाठशाला में बैठकर पोथी पढ़नी होगी? हममें अपनी कुछ अक्ल तो है ही नहीं न?

(सूचीमुख को थोड़ा बुरा लगा। उस पर भी बंदरों के मुखिया ने उसका मजाक उड़ाने की कोशिश की।)

सूचीमुख पक्षी : मैं सर्वज्ञाता नहीं हूँ, पर इतना जरूर जानता हूँ कि ये गुंजाफल हैं, अंगारे नहीं। मुझे इस बारे में पक्का पता है। और यह भई कि इनसे तुम्हारी सर्दी नहीं भागेगी। तुम इन गुंजाफलों को तापकर सर्दी बुझाना चाहते हो। यह तो मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है।

एक बंदर : (बुरी तरह डाँटते हुए) बक-बक बंद कर रे पक्षी। हम वैसे ही परेशान हैं, तू ऊपर से हमें अपनी बड़बड़ से और दुखी कर रहा है।

सूचीमुख पक्षी : ठीक है भाई, तुम व्यर्थ में परिश्रम कर रहे थे, इसलिए मैंने कहा। नहीं तो जैसे तुम्हें ठीक लगे, वही करो। मुझे क्या फर्क पड़ता है? मैं तो अब भी यही कहूँगा कि अगर तुम किसी चट्टान का आश्रय लेते या किसी गुफा में चले जाते तो…!

(लेकिन सूचीमुख की बात पूरी होने से पहले ही उन गुस्सैल और चिड़चिड़े बंदरों ने एकाएक झपट्टा मारकर उसका घोंसला तोड़ डाला।)

बंदरों का मुखिया : ले, तू नहीं मानता तो ले। अपने को बड़ा समझदार मानता है न, तो अब बचा ले अपने आपको। बड़ा अपनी पंडिताई झाड़ रहा है।

सभी बंदर : हःहःहः, बड़ी पंडिताई झाड़ रहा था यह जरा सा परिंदा। हमें भाषण दे रहा था। ले, अब कहाँ चली गई तेरी पंडिताई? हःहःहः…हःहःहः!

(बंदरों ने बड़ी निर्दयता से सूचीमुख के पंख नोच डाले और उसे एक चट्टान पर पटककर मार डाला।)

तीसरा दृश्य

(फिर बंदर उसी तरह गुंजाफल के सहारे सर्दी भगाने की कोशिश करने लग गए। लेकिन हवा बड़ी तेज थी। कुछ देर में बारिश होने लगी। बड़े-बड़े ओले भी गिरने लगे।)

कुछ बंदर : हाय, मरे! ऐसी तीखी हवा है कि हड्डियाँ तक ठिठुर रही हैं।

कुछ अन्य बंदर : मर गए भाई, मर गए! आज तो लगता है, जान बचनी मुश्किल है।

एक जवान बंदर : हाय-हाय, हम तो बेमौत मर गए। शायद उस पक्षी की बात ही सही थी। ये लाल-लाल अंगार नहीं, बल्कि कोई फल है। पर हमारे मुखिया को भी इनका पता नहीं चला और हम बेमौत मारे गए।

बंदरों का मुखिया : (पछतावे भरे स्वर में) हाँ भाई, गलती मुझसे हुई। वह छोटा सा पक्षी, कुछ भी कहो, अक्लमंद था। उसने तो सही बात कही थी, पर…?

दूसरा बंदर : पर सवाल यह है कि अब हम करें क्या? कैसे अपनी जान बचाएँ?

तीसरा बंदर : यही तो समझ में नहीं आ रहा।

बंदरों का मुखिया : (गंभीर होकर) लगता है, जान बचानी है तो हमें जल्दी से कहीं और जाना चाहिए। कहीं आसपास कोई गुफा हो तो जान बच सकती है।

कुछ बंदर : यहाँ पास में ही एक बड़ी चट्टान तो है।

बंदरों का मुखिया : (सभी को आवाज लगाता हुआ) तो फिर वहीं चलो जल्दी से, वरना सबके सब मारे जाओगे।

(जाड़े और ओलों की मार से कुछ बंदर मर गए। बाकियों की भी हालत खराब थी। जैसे-तैसे एक चट्टान के पीछे भागकर उन्होंने अपनी जान बचाई।)

गज्जू दादा : जंगल के प्यारे-प्यारे दोस्तो, नाटक अब खत्म होता है। हालाँकि यह नाटक देखकर हमारा मन पुकार उठता है, हाय, बेचारा सूचीमुख! वह तो बेमौत ही मारा गया। कितने दुख की बात है, कितने दुख की बात? सच्ची बात तो यह है कि उसने ऐसे मूों को अच्छी सलाह दी थी, जो अच्छी बात सुनने-समझने लायक ही नहीं थे।

उसके मित्रों और परिवार के लोगों ने उसे बहुत रोका, पर वह माना नहीं। उसे क्या पता था कि कभी-कभी मूर्ख को दी गई अच्छी सलाह भी उलटी पड़ जाती है। और ऐसे नासमझ और मूर्ख अच्छी सलाह के बदले उलटे जान भी ले लेते हैं।

चौथा दृश्य

(स्थान—गली या मोहल्ले के पास वाला खेल का मैदान। बच्चे हवा दीदी को घेरकर उससे बातें कर रहे हैं।)

हवा दीदी : तो देखा तुमने, बेचारी अच्छी चिड़िया का हाल?

निक्का : (उदास होकर) देखा हवा दीदी, देख लिया।

निक्की : यह तो बड़ी दुखभरी बात है हवा दीदी।

हवा दीदी : (धीरे से सिर हिलाकर) हाँ, सचमुच बड़ी ही दुखभरी बात।

निक्का : ऐसे तो कोई किसी की मदद करेगा ही नहीं। क्यों हवा दीदी?

निक्की : लोग सोचेंगे कि कहीं नन्ही चिड़िया की तरह उलटे हमें ही जान न गँवानी पड़े।

हवा दीदी : बिल्कुल ठीक बात है तुम्हारी, बिल्कुल ठीक। फिर भी मदद करने वाले तो दूसरों की मदद करते ही रहेंगे। हाँ, दुष्टों को सलाह देते समय चार बार सोचना चाहिए। वे अच्छी सलाह से भी चिढ़ जाते हैं। इसलिए उन्हें सलाह ना ही दें, तो अच्छा है।

निक्का : यह तो आपने अच्छी बात कही हवा दीदी।

निक्की : मैं भी याद रखूगी आपकी बात दीदी।

हवा दीदी : देखो, वह नन्ही प्यारी चिड़िया मर गई। पर मरकर भी उसने हम सभी को एक अच्छी बात सिखाई। अच्छे और भले लोग ऐसे ही होते हैं।…अच्छा, अब मुझे इजाजत दो। मुझे जाना है दूर, बहुत दूर ताकि तुम्हारे लिए घने जंगल से ऐसा ही कोई और सुंदर नाटक ला सकूँ।

(हाथ हिलाती हुई हवा दीदी विदा लेती है। बच्चे हाथ हिलाकर विदा कर रहे हैं। निक्का और निक्की के चेहरे सबसे अलग नजर आ रहे हैं।)

Story in Hindi with Moral “Acchi Sikh dene wali Chidiya” पंचतंत्र के अनोखे नाटक आपको पढ़ कर कैसा लगा कमेंट बॉक्स में बताए।

Leave a comment