Story Hindi “Jab Bandar Bna Angarakshak”
पात्र-परिचय हवा दीदी निक्का, निक्की और मोहल्ले के अन्य बच्चे किसी देश का राजा. उसका मंत्री और दरबारी सेनापति राजा का अंगरक्षक बना बंदर
पहला दृश्य
(स्थान–गली या मोहल्ले के पास वाला खेल का मैदान, जिसमें एक तरफ बच्चे खड़े-खड़े बातें कर रहे हैं। तभी हवा तेजी से बहती हुई आती है और बच्चों को मजे से बातें करते और खिलाते देख, ठिठक जाती है। फिर हवा दीदी बच्चों के पास आकर बड़े उत्साह से बताने लगती है।)
हवा दीदी : बाप रे बाप, बंदर ने यह क्या कर डाला? हाय-हाय, यह क्या कर डाला?
निक्का : बंदर ने क्या किया हवा दीदी, क्या? आप क्या कह रही हैं?
निक्की : बंदर ने कोई बड़ी गड़बड़ कर दी क्या हवा दीदी?
हवा दीदी : (चेहरे की विचित्र भंगिमा) अरे, गड़बड़ कहती हो? गड़बड़ नहीं, सर्वनाश… एकदम सर्वनाश!
निक्का : (भौचक्केपन से) म…मगर कैसे हवा दीदी?
निक्की : बंदर ने आखिर किया क्या था?
हवा दीदी : अब बताना तो मुश्किल है। मुझे पंचतंत्र की पूरी कहानी सुनानी पड़ेगी।
निक्का : तो फिर सुनाइए ना, हवा दीदी?
निक्की : जरा हम भी तो जानें कि ऐसा किया क्या था बंदर ने?
हवा दीदी : सुनाऊँगी…सुनाऊँगी जरूर, मगर अभी नहीं, बाद में। अभी तो झटपट वह नाटक देखो, जो मैं आज सुबह ही जंगल में देखकर आई हूँ और जिसे अपने गज्जू दादा इस ठाटदार अंदाज में करवा रहे थे कि क्या कहने।
निक्का : तब तो हम भी वह नाटक देखेंगे, हवा दीदी।
निक्की : और हम भी…हम भी।
सब बच्चे : हाँ-हाँ, देखेंगे, हम सब देखेंगे कि बंदर ने आखिर किया क्या?
हवा दीदी : (मुसकराती हुई) तो ठीक है, देखो-देखो मूर्ख बंदर की मूर्खता का यह अजब-अनोखा नाटक।
दूसरा दृश्य
(स्थान-एक राजा के महल का दृश्य। उस राजा की एक बंदर से खूब अच्छी दोस्ती थी। राजा उसे इतना प्यार करता था कि उसने उस बंदर को अपना अंगरक्षक बना लिया था।)
राजा : आज से यह बंदर मेरा अंगरक्षक होगा। कोई भी इसे कहीं आने-जाने से न रोके। यह मेरा प्यारा मित्र है। बुद्धिमान भी है और वफादार भी।
मंत्री : ठीक है महाराज, ऐसा ही होगा।
सभी दरबारी : (खुशामदी स्वर में) हाँ-हाँ महाराज, यह तो अच्छा है, बड़ा ही अच्छा कि यह प्यारा-प्यारा, चंचल और फुर्तीला बंदर अब आपका अंगरक्षक बन गया। यह तो बड़ा ही योग्य है महाराज।आदमियों से भी ज्यादा योग्य।
(जहाँ कहीं राजा जाता, उसकी मदद के लिए बंदर भी जरूर साथ जाता था। प्रजा को पहले तो यह देखकर बड़ी हँसी आती थी, पर धीरे-धीरे सब लोगों ने इसे मान लिया।)
एक दरबारी : लगता है, राजा का इस बंदर पर बहुत विश्वास है।
दूसरा दरबारी : इसीलिए तो मैं कहता हूँ, जो होता है, चुपचाप देखते चलो। कुछ कहने पर हो सकता है कि राजा उलटा हमसे ही नाराज हो जाए।
तीसरा दरबारी : बात तो ठीक है।
चौथा दरबारी : पर क्या करें, मन नहीं मानता। बंदर पर इतना यकीन करना क्या ठीक है? मेरा मन कहता है कि राजा इससे कभी संकट में भी पड़ सकता है। पर यह बात उनसे कहे कौन?
पहला दरबारी : मैंने तो यह भी सुना है कि पड़ोसी राज्यों में बड़ी जगहँसाई हो रही है।
दूसरा दरबारी : पर अगर राजा को ही कुछ होश नहीं है, तो हम क्या कर सकते हैं? मेरी मानो तो इस बारे में चुप रहना ही अच्छा है, वरना राजा का गुस्सा तो तुम जानते ही हो।
तीसरा दरबारी : बिल्कुल, उसके एक इशारे पर यह बंदर ही हमारी जान ले सकता है। एक पल का भी समय नहीं लगेगा और…
चौथा दरबारी : हाँ हाँ, बात तो ठीक है भाई। ऐसे में चुप रहना ही अच्छा है।
(बंदर को राजा ने इस कदर छूट दे दी थी कि वह उसके महल के अंदर भी बेधडक आता जाता था। वह राजा का इस कदर आज्ञाकारी था कि उसके मुँह से बात सुनते ही दौड़ पड़ता था।)
मंत्री : (सेनापति से) वैसे बंदर की इस बात के लिए तो तारीफ करनी पड़ेगी कि यह सारे दिन दौड़-दौड़कर राजा की सेवा करता है। इस बात में, मैं समझता हूँ, इससे आज तक कोई चूक नहीं हुई। जब भी देखा, हमारे राजा की सेवा के लिए एकदम चौकन्ना नजर आया।
सेनापति: हाँ, यह तो ठीक है। शायद इसीलिए राजा का उसके प्रति प्रेम और अधिक बढ़ता जाता है। पर वे यह नहीं देख रहे कि इसमें कैसा खतरा छिपा है। यह चंचल बंदर कुछ भी कर सकता है, कुछ भी।
मंत्री : (कुछ सोचता हुआ) हाँ, वह तो है, पर इसमें हम कर भी क्या सकते हैं। राजा का स्वभाव इस मामले में एकदम अड़ियल है। किसी की कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं हैं।
सेनापति : (गंभीर होकर) तब तो राम ही मालिक है, राम ही।
तीसरा दृश्य
(एक दिन राजा दोपहर के समय अपने महल में सो रहा था। बंदर राजा के पास ही बैठा हुआ उसकी रखवाली कर रहा था, ताकि सोते हुए राजा को कोई कष्ट न हो। इतने में बंदर ने देखा कि एक मक्खी कहीं से आई और राजा की छाती पर आकर बैठ गई। बंदर को बहुत गुस्सा आया।)
बंदर : (धीरे से बड़बड़ाते हुए) ओह, यह दुष्ट मक्खी ! भला इस जरा-सी मक्खी की इतनी हिम्मत कि मेरे मालिक की छाती पर आकर बैठ जाए। आह, हमारे फूलों जैसे नाजुक राजा जी को कितनी परेशानी हो रही होगी। मैं इसे छोडूंगा नहीं, बिल्कुल नहीं।
(बंदर ने हाथ हिलाकर मक्खी को उड़ाने की कोशिश की, पर वह उड़कर फिर से कभी राजा की नाक तो कभी सिर पर आकर बैठ जाती।)
बंदर : (गुस्से में) अरे, यह मक्खी तो उड़ती ही नहीं। बड़ी बेशर्म है। मुझे इसका इलाज करना पड़ेगा। बिना सख्ती दिखाए काम नहीं चलेगा।
(बंदर ने एक बार फिर हाथ हिलाकर मक्खी को उड़ाना चाहा, पर मक्खी भी बड़ी ढीठ थी। वह उड़कर फिर से राजा की छाती पर आकर बैठ गई। देखकर बंदर को बड़ा भीषण क्रोध आया। अपने आप से…)
बंदर : ओफ्फोह, यह मक्खी तो बड़ी दुष्ट और मक्कार है। यह ऐसे ही नहीं मानेगी। इसे सबक सिखाना ही होगा, वरना हमारे प्यारे राजा को कितना बुरा लगेगा। वे कई बार मझसे कह भी चके हैं कि हे मित्र बंदर, तुमसे पहले भी मेरे कई अंगरक्षक थे। पर तुम तो अनोखे हो, जो किसी मक्खी को भी मेरे पास नहीं फटकने देते। अरे, राजा मुझ पर कितना यकीन करते हैं। पर मैं तो एक तुच्छ मक्खी को भी नहीं भगा पा रहा।
(कुछ निश्चय करके) पर अब मैं देखता हूँ कि यह दुष्ट मक्खी हमारे राजा को कैसे तंग करती है? मैं इसे ऐसी सजा दूँगा, ऐसी कड़ी सजा कि याद रखेगी दुनिया। इसे पता नहीं कि मैं तलवार भी चला सकता हूँ, तलवार भी। और मेरा निशाना इतना पक्का और अचूक है कि एक पल में यह मक्खी काल के गाल में समा जाएगी।
(बंदर ने उसी समय गुस्से में आकर सोते हुए राजा के पास रखी तलवार उठाई और तेजी से मक्खी पर चला दी।)
बंदर : ले मक्खी ले, अब भुगत। मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा, ताकि तू हमारे प्यारे राजा को फिर तंग ना कर सके।
(इस पर मक्खी तो उड़ गई, लेकिन उस तलवार से राजा की गरदन कटकर अलग हो गई। उसी समय उसका प्राणांत हो गया।)
चौथा दृश्य
(राजा के मंत्री यह देखकर बदहवास होकर दौड़ पड़े। चारों ओर शोर और कुहराम मच गया।)
मंत्री : (दुखी होकर) हाय-हाय बंदर, तूने यह क्या किया? हमारे प्यारे राजा की जान ले ली? तू तो बड़ा ही अच्छा निकला।
सेनापति : जिस राजा ने तुझे इतना प्यार दिया कि अपना अंगरक्षक बनाकर रखा, उसी की जान ले ली तूने? तेरे जैसा नीच भला कौन होगा?
एक दरबारी : यह बंदर तो महादुष्ट है। हमें इसे छोड़ना नहीं चाहिए। इसे अभी मार देना चाहिए।
बूढ़ा दरबारी : (समझाता हुआ) भाई, बंदर की गलती है, मैं मानता हूँ। पर हमेंयह भी देखना चाहिए कि बंदर में समझ ही कितनी होती है? वह तो राजा का भला ही करना चाहिए था, पर…?
मंत्री : (गंभीर होकर) असल में तो इस बंदर को अंगरक्षक बनाना ही गलत था। हममें से कितने ही लोगों ने महाराज को सलाह दी कि ऐसा करना उचित नहीं होगा, पर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया। वे हमेशा यही कहते रहे कि यह बंदर मेरा बड़ा विश्वासपात्र है। इसके कारण कोई मुझे नुकसान नहीं पहुँचा सकता।
बूढ़ा दरबारी : पर खुद बंदर ने जो कर दिया, उसकी भरपाई भला कैसे होगी?
सब दरबारी : हाँ-हाँ, यह तो अनर्थ हो गया।
(पूरे राज्य में दुख की लहर छा गई। रानियाँ और राजपरिवार के लोग बुरी तरह विलाप कर रहे थे। हर कोई राजा को याद करके छाती पीट रहा था और बंदर को कोस रहा था।)
गज्जू दादा : (हवा में अपनी सूंड़ लहराते हुए) जंगल के मेरे प्यारे-प्यारे दोस्तो, आपने देखा उस मूर्ख बंदर ने जो कांड किया! यह ठीक है कि वह स्वामिभक्त था, राजा का आज्ञाकारी भी और उसका भला करना चाहता था। लेकिन अपनी मूर्खता के कारण बजाय उसका भला करने के, उलटे उसने राजा की जान ही ले ली। हमें इससे सबक लेना चाहिए।
जंगल के जानवर : हाँ हाँ, गजू दादा, आप ठीक कह रहे हैं, बिल्कुल ठीक।
गज्जू दादा : अब आप सभी यह लोग यह बात गाँठ बाँध लें कि मूर्ख मित्र की बजाय विद्वान शत्रु का होना ज्यादा अच्छा है। विद्वान शत्रु तो फिर भी आपका भला ही करेगा, लेकिन मूर्ख मित्र तो अकारण जान ही ले लेता है। ठीक वैसे ही, जैसे राजा के स्वामिभक्त और आज्ञाकारी मित्र बंदर ने चाहे-अनचाहे खुद उसी की जान ले ली।
जंगल के जानवर : (एक साथ) हाँ-हाँ, गज्जू दादा, आपकी बात तो ठीक है, एकदम ठीक। इस नाटक से हमें यही सीख मिली है। हम इसे याद रखेंगे, हमेशा याद रखेंगे।
पाँचवाँ दृश्य
(स्थान–गली या मोहल्ले के पास वाला खेल का मैदान। बच्चे हवा दीदी को घेरकर खड़े हैं और उससे बातें कर रहे हैं।)
हवा दीदी : तो देखा बच्चो, तुमने कि क्या कर डाला बंदर ने?
निक्का : (गुस्से में) नाश…सर्वनाश!
निक्की : (दुखी होकर) ओह, मुझे तो रोना आ रहा है। बेचारा राजा कैसे मारा गया।
हवा दीदी : (गंभीर होकर) ऊपर से देखा जाए तो लगेगा कि राजा का कोई कसूर नहीं था। जो भी मूर्खता की, वह बंदर ने ही की, जिसने एक छोटी सी मक्खी को भगाने के लिए गुस्से में आकर तलवार चला दी।
निक्का : हाँ-हाँ, और मारा गया राजा।
निक्की : पर असली बात तो यह है हवा दीदी, कि राजा ने बंदर को अपना सलाहकार बनाया ही क्यों? क्या उसे पता नहीं था कि बंदर में ज्यादा अक्ल नहीं है?
हवा दीदी : (धीरे से सिर हिलाते हुए) बिल्कुल ठीक बात कही तुमने निक्की, बिल्कुल ठीक। राजा ने मूर्ख बंदर को दोस्त तो बनाया, पर यह नहीं सोचा कि यह दोस्त बनाने के लायक है भी कि नहीं। लिहाजा थोड़ी मूर्खता तो राजा ने भी की।
निक्का : सचमुच मूर्ख दोस्त भी बड़ा खतरनाक होता है।
निक्की : वह तो नासमझी में अपने दोस्त की भी जान ले सकता है।
हवा दीदी : तभी तो कहा जाता है कि मूर्ख मित्र से तो बुद्धिमान शत्रु कहीं अच्छा है।…अच्छा, अब विदा दो। मुझे दूर, बहुत दूर जाना है ताकि जंगलों से तुम्हारे लिए कोई और बढ़िया नाटक ढूँढ़कर ला सकूँ।
सब बच्चे : अलविदा हवा दीदी, अलविदा।
(हाथ हिलाती हुई हवा दीदी विदा लेती है। बच्चे हाथ हिलाकर विदा कर रहे हैं। निक्का और निक्की के चेहरे सबसे अलग नजर आ रहे हैं।)
(परदा गिरता है।)
