फागुन शुरू होता है तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगता है। इस बार दिल अतिरिक्त उत्साह से भरा था, सो मैंने मोहल्ले की भाभियों की बैठक बुलाई और होली खेलने का प्रस्ताव रखा। इसपर भाभियां भी उछल पड़ीं। आप जानते ही हैं कि भाभियां कितनी प्यारी होती हैं- मिसरी की डली-सी। मेरा प्रस्ताव सुन चम्पा भाभी बोली, ‘देवरजी, यह मुंह और मसूर की दाल। अब आपके बच्चे होली खेलने वाले हो गये, थोड़ा स्कोप उन्हें भी तो दो लल्ला।

मैं बोला, ‘देखो चम्पा भाभी, आप मुंह पर मत जाओ। रहा सवाल बच्चों का, तो वे भी होली खेल रहे हैं। मैं चाहता हूं कि आप होली पर ऐसे रंग तैयार करें कि मैं पूरे साल उतारता रहूं, तो भी उतरे नहीं। चमेली भाभी ने पैंतरा बदला, ‘देखो लालाजी, होली तो हम खेल लेंगे लेकिन रंग महंगे हो गये हैं, इसलिए रंग की व्यवस्था आपकी ओर से होनी चाहिए। ‘देखो भाभी, देवर पर आपका खुद का खरीदा रंग जो खिलेगा, वैसा मेरा लाया नहीं खिलेगा। मैं बोला। ‘देखो लाला समझो! रंग खरीदना हमारे बस की बात नहीं। रही पिचकारियों की बात, हमारे पास दबी-धचकी अवस्था में गत वर्षो की पड़ी हैं, निकाल लेंगे। भी हम ही कर लेंगे। विमला भाभी ने कहा।

मैं बोला, ‘मेरा प्रोग्राम है कि मैं आपके रंगों की मार से भीगता रहूं और बदले में एक धार भी आप पर न मारूं। मेरा मतलब, मैं एक कौड़ी का भी रंग नहीं खरीद सकूंगा। गुलाब जामुनों की आप चिन्ता न करें। इस बार कमला भाभी चहकीं, ‘गुलाब जामुन! क्या मतलब? ‘मतलब यह कि गुलाब जामुन होली के बाद निशुल्क मेरी ओर से। यही नहीं, आप सबके अलावा भाई साहबों के लिए भी दो-दो गुलाबजामुन घर पहुंचा दूंगा। गुलाब जामुनों की सर्विस और सह्रश्वलाई में कोई शिकायत नहीं होगी। मेरी एक शर्त और है! ‘शर्त, कैसी शर्त? एक साथ भाभियां बोलीं। मैंने कहा, ‘होली मैं पुरानी साडिय़ों में नहीं खेल पाऊंगा। साड़ी नई हो अथवा ठीक हालत में हो। यह नहीं कि फटी-पुरानी साड़ी पहनकर आ जाओ। यह मेरी होली का पेंच है, आपको पूरा करना है। ‘अरे वाह लालाजी, बड़े चतुर निकले। साडिय़ां भी पहनें और वह भी नई, ना बाबा ना। हमसे होली खेलने को ज्यादा मन करता है तो सबको साडिय़ां ला दो। हम नई पहनकर खेल लेंगे। चम्पा भाभी बोली। मैं बोला, ‘समझा करो भाभी! साड़ी की तैयारी आप स्वयं करोगी, तो होली खेलने का आनन्द और होगा तथा मैं लाकर दूं तो और। इसलिए साड़ी का दायित्व तो आपका ही होना चाहिए। विमला भाभी ने कहा, ‘लेकिन लालाजी मेरे पास तो जैसी साड़ी है, वह पहन सकती हूं? ‘आप होली मेरे साथ मत खेलो। मेरे साथ खेलने में एक्सपेंडीचर ज्यादा है विमला भाभी। खेलोगी तो याद रखोगी।

विमला भाभी चुप हो गई। परन्तु कमला भाभी भभकीं, ‘ठीक है, हम तो आपके साथ होली खेल लेंगे लेकिन आपकी श्रीमतीजी किसके साथ खेलेंगी होली? ‘देखो कमला भाभी यह उसका अपना ‘आउटलुक है। मैं क्यों चिन्ता करूं उसकी। मुझे मेरी होली की चिंता है- इसलिए मीटिंग कर ली है। लो, कलुवा गर्म समोसे ले आया, बात आगे बढ़ाओ। कोई और समस्या हो तो बताओ। ‘समस्या’ के नाम पर भाभियां एक-दूसरे का मुंह देखने लगीं-चम्पा भाभी हंसी और बोली, ‘देखो लालाजी आपका प्रिय रंग बता दें। वरना काले रंग का प्रयोग तो हम करेंगी ही। मैं बोला, ‘आप मेरा मुंह काला क्यों करना चाहती हैं? ‘इसलिए कि होली पर कोई शर्त न रख सको। होली पर रंग भी हमारा, साड़ी भी हमारी और पानी भी हमारा तथा आप खड़े-खड़े भीगते रहें। वाह रे चतुर सुजान देवर! काले रंग से होली खेलो तो खेलो वरना पड़े रहो घर में।

इस बार धर्म संकट मेरा था। मैंने फिर वही पैंतरा मारा- ‘लेकिन गुलाब जामुन तो मेरे हैं न। ‘हमें नहीं खाने ऐसे गुलाब जामुन। होली खेलकर यदि कुछ खिलाते हो तो क्या अहसान है। हम भी होली पर होली नहीं खेलने की हड़ताल कर देंगी-तब पता चलेगा, यह फागुन कैसे बरबाद होता है आपका। भाभियां दहाड़ीं और चल दीं। मैं हाथ बांधकर बोला, ‘क्या अनर्थ कर रही हैं आप! ठीक है, गुलाबी रंग का इंतजाम मैं करता हूं। ‘अब आई न अक्ल ठिकाने! अरे लाला, बहुत से देवर होली खेलने को तरसते हैं। होली खेलनी है तो परम्परा मत छोड़ो। ‘मैंने बिगाड़ी परम्परा? मैं बोला। ‘होली पुरानी साड़ी में खेली जाती है। मैं बोला, ‘चलिये नई साड़ी की भी बात खत्म जैसी भी हो, पहन लेना, मैं रंग तैयार रखूंगा- बस अपनी खाली पिचकारियां ले आयें। ‘अब आये न लाइन पर! होली की हड़ताल का असर पूरा है आप पर। अब एक काम और करो, होली खेलने आओ तो कमीज न पहनना। कमला भाभी का प्रस्ताव आया। मैं लपक कर बाहर हो गया। भाभियां हंस पड़ीं और घर चली गईं।

होली आ गई है। आज धुलेण्डी है और मेरी हिम्मत नहीं है कि बाहर भाभियों की चुनौती का सामना कर सकूं। मैंने पत्नी से कह दिया कि चम्पा, चमेली, विमला और कमला भाभी आएं तो कहना कि मैं घर में नहीं हूं। पूरे दिन मकान के किवाड़ों के पीछे से होली का माहौल देखने को तरसता रहा-लेकिन होली किसी ने नहीं खेली। होली की हड़ताल जो थी।