बात दो साल पुरानी है। मेरे ससुराल में इनके चचेरे भाई की शादी थी। बच्चों को अगले दिन स्कूल भी जाना था। किंतु वहां डीजे लगा रखा था। मैं अपनी जेठानियों व देवरानी के साथ नाचने में व्यस्त थी। इतने में मेरे पति ने मुझे इशारा किया और कहने लगे, जल्दी करो, घर नहीं जाना क्या? तो मेरे मुंह से अचानक निकल पड़ा रात तो अपनी है। यह सुनते ही पास खड़े जेठ-जेठानी मेरे पति सहित ठहा्का मारकर हंसने लगे। असल में मेरे कहने का मतलब था कि अभी कुछ समय बाद चलेगें। इतनी रात नहीं हुई, किंतु सभी लोगों ने उसका दूसरा ही अर्थ लगा लिया। जब मुझे अपने कहे गए शब्दों का अहसास हुआ तो मैं झट से बच्चों को लेकर दूसरे कोने में चली गई। सबकी हंसने की आवाज सुनकर मैं शर्म से लाल हो गई।

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