ज्यूरी न्यायालय में चार बजे लौटी। उसे निर्णय लेने में बीस मिनट लगे।
पिछला दरवाजा खुला और अपना गाउन पहने जज तथा जिले के प्रमुख अधिकारियों का एक छोटा-सा दल अंदर आ गया। जज साहब के हाथों में सफेद दस्ताने थे।
 वह कैदी सीढ़ियां चढ़कर कटघरे में आ खड़ा हुआ। एलिस उसकी ओर देखने का साहस न कर सका। उसे देखने का अर्थ था आईने में स्वयं को देखना।

 बीस मिनट केवल इस बात का तय करने में बीत गए कि इस अपराधी को मौत की सजा दी जाए या नहीं। इस बीच एलिस की आंखों के सामने रोष का सुर्ख कुहरा छाया रहा।
 मोटी औरत ने सान्त्वना देने के लिए एलिस के कंधे पर अपना हाथ रखकर कहा, ‘साहस से काम लो। इस देशद्रोही के लिए इससे उपयुक्त सजा और क्या हो सकती है।’
 और जज साहब ने उसे मौत की सजा सुना दी।
 क्रोध से एलिस के दांत भिच गए। वह सोचने लगा कि उसने अपने देश के साथ कोई विश्वासघात नहीं किया लेकिन अगर वह पकड़ लिया गया तो उसे भी फांसी पर लटका दिया जाएगा। अगर देश की सरकार ने उसकी बात मान ली होती तो यह गोलाबारी न होती। उसने बार-बार कहा था कि चर्चिल को प्रधानमंत्री के पद पर से हटा दो और जर्मनी से मित्रता कर लो। लेकिन उसकी बात किसी ने भी नहीं मानी। और अब लंदन बर्बादी की ओर जा रहा है और वे उसे देशद्रोही कहकर पुकार रहे हैं।
 जब कचहरी की कार्रवाई समाप्त हो गई तो वह मोटी औरत के साथ भीड़ से गुजरता हुआ बाहर निकल आया।
 वह अपने आप पर और अधिक काबू नहीं रख सका और उत्तेजित होकर चिल्लाने लगा, ‘यह तो हत्या है-मर्डर है।’ वह इतना क्रुद्ध और उत्तेजित था कि वह अपनी सामान्य आवाज में ही बोल रहा था।
 वह मोटी औरत निराशा से उसे घूरने लगी। उसने महसूस किया कि यह आवाज वह पहले भी कई बार सुन चुकी है।
 एक पुलिस कर्मचारी ने भी उस आवाज को सुना। उसने चौंककर चारों ओर देखा। उसे विश्वास था कि ये शब्द एडविन कुसमन के हैं, जिसे न्यायालय फांसी की सजा सुना चुका था।
 वह हिचकिचाते हुए खड़ा रहा। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिये। तभी पुराने भूरे रंग का सूट पहने एक आदमी दरवाजे से निकला और तेजी से बरामदे से निकलकर आंखों से ओझल हो गया।
 सख्त गर्मी पड़ रही थी लेकिन उस बिल्डिंग में अंधेरे के साथ-साथ ठंडक भी थी। वहां पर जितनी शांति थी उतनी ही गंदगी और अस्त-व्यस्तता भी थी। उस बिल्डिंग में लिफ्ट नहीं थी। इसलिए लकड़ी की सीढ़ियों पर चढ़कर ही ऊपर जाना पड़ता था।
 बिल्डिंग की दीवारों पर उन कम्पनियों के बड़े-बड़े साइनबोर्ड लगे हुए थे जिनके ऑफिस इस बिल्डिंग में थे।
 एलिस को दूसरी मंजिल की ओर जा रही लड़की की टांगों की झलक दिखाई दी। वह उनके पीछे-पीछे तेजी से सीढ़ियां चढ़ने लगा। वह लड़की ऊपर तक के मौजे पहने हुए थी। उसकी भूरे रंग की स्कर्ट की गोट और उसके नीचे पहने हुए सफेद अंडरवियर की चमक स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
 उसने अपनी चाल तेज कर दी। उस समय उस विशाल बिल्डिंग में केवल वे दोनों ही दिखाई दे रहे थे और उस शांत बिल्डिंग में केवल लड़की की लकड़ी की हीलों की खटखट की आवाज ही सुनाई दे रही थी।
 तीसरी मंजिल पर पहुंचने पर उसे उस लड़की की हल्की सी झलक दिखाई दी और वह घूमकर बरामदे में चली गई। लड़की की एक झलक देखते ही एलिस ने अनुमान लगा लिया कि वह किसी बहुत ही निर्धन परिवार की लड़की है।
 तीसरी मंजिल पर पहुंचकर वह एक दरवाजे के सामने जा खड़ा हुआ जिसके शीशे पर काले रंग की पर्त के ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था-‘मूक-बधिर मैत्री संघ’ और उसके नीचे छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा था-‘मैनेजर एच. ह्विट कोम्ब।’ दरवाजा खोलकर वह उसे छोटे से तंग कमरे में चला गया। उस कमरे में दो खिड़कियां थीं। एक ओर टाइपराइटर की पुरानी जर्जर मेज़ थी। अलमारियों में धूल से अटी फाइलें भरी हुई थीं। खिड़कियां पर पर्दे नहीं थे। फर्श पर कालीन बिछा था जिसके धागे जगह-जगह से टूटे हुए थे।
 एक पार्टीशन ने उसे कमरे को दो भागों में विभाजित कर रखा था। वह फोल्डिंग पार्टीशन लकड़ी के चार पर्दो में बंटा हुआ था। उसे देखकर एलिस को पान ब्रोकर्स की दुकान की याद आ गई।

 
 भूरे रंग की स्कर्ट वाली वह लड़की कमरे के एक भाग में खड़ी थी। उसकी पीठ एलिस की ओर थी। उस लड़की के कंधे छोटे थे। पीठ सीधी थी और उसकी टांगें बहुत ही सुन्दर थी। पुराने जर्जर कपड़ों में भी उसके शरीर का सौन्दर्य और सुडौलता स्पष्ट दिखाई दे रही थी। लेकिन वह उस लड़की का चेहरा नहीं देख पाया। क्योंकि वह कमरे के भीतरी भाग की ओर मुंह करके खड़ी थी।
उस कमरे में एलिस और उस लड़की के अतिरिक्त और कोई नहीं था। वह लड़की पार्टीशन के पीछे जा खड़ी हुई। एलिस को अब केवल उसके हाथ दिखाई दे रहे थे। हाथ छोटे-छोटे होते हुए भी काफी मजबूत दिखाई दे रहे थे। उंगलियां लम्बी थीं और नाखून बादाम की शक्ल के थे। एलिस ने अपने हाथों पर नजर डाली। उसके हाथों की उंगलियां छोटी-छोटी थीं। उंगलियों के जोड़ भी भद्दे और कुरूप थे। उसका अपना चेहरा भी भद्दा और कुरूप ही था।
 तभी दफ्तर के अंदर वाला दरवाजा खुला और एक अधेड़ उम्र का आदमी कमरे में आया। वह काला सूट पहने हुए था। कोट के सीने पर भागों का भीतरी मोड़ ऊंचा था और कोट के बहुत से बटन नीचे की ओर लगे हुए थे। कभी वह आदमी शायद काफी मोटा रहा होगा लेकिन अब उसका मोटापा समाप्त हो चुका था और उसकी खाल ढीली होकर नीचे लटक आई थी। वह बौखलाए शिकारी कुत्ते की तरह दिखाई दे रहा था। उसकी भारी-भारी भौहों के नीचे उसकी तेज काली आंखें बाईं और दायीं ओर को झपटती दिखाई दे रही थीं। उसने पहले लड़की के सामने सिर हिलाया और उसके बाद सिर हिलाकर एलिस का अभिवादन किया।
 शायद वह लड़की से जल्दी छुटकारा पा लेना चाहता था। उसने लड़की की ओर बढ़कर कहा, ‘अभी तो मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया हूं। शायद अगले सप्ताह कुछ कर सकूं। इस तरह एक दिन छोड़कर दूसरे दिन आने से कोई लाभ नहीं। नौकरियां पेड़ के ऊपर तो उगती नहीं है।’
 ‘मैं अगले सप्ताह तक इंतजार नहीं कर सकती। मेरे पास अब एक भी पैसा नहीं है।’ लड़कि ने रूखी लेकिन नर्म आवाज में कहा।
 एलिस ने अन्दाजा लगा लिया कि यह अधेड़ आदमी ही मैनेजर ह्विट कोम्ब है। उसे लगा जैसे ह्विट कोम्ब को लड़की की कहानी में कोई दिहचस्पी नहीं है। उसने बड़ी उपेक्षा से कहा, ‘अभी तो मेरे पास तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है। तुम्हारा नाम और पता मेरे पास है। जैसे ही मुझे तुम्हारे लिए कोई काम दिखाई देगा मैं पत्र द्वारा तुम्हें सूचित कर दूंगा।
 ‘आज तीन सप्ताह बीत चुके हैं। मैंने तुम्हें चालीस शिलिंग दिए थे। तुम्हें मेरे लिए कुछ-न-कुछ तो करना ही चाहिये था। जब तुमने पैसे लिए थे तो कहा था कि मैं कुछ दिनों बाद ही तुम्हें नौकरी दिला दूंगा।’ लड़की ने कुछ अप्रसन्नता और झुंझलाहट के साथ कहा।
 
 
 मिस्टर ह्विट कोम्ब के चेहरे का रंग बदलने लगा। उसने चोरी-चोरी एलिस की ओर देखा जो लड़की की ओर पीठ किए खड़ा था। उसने धीमी आवाज में कहा, ‘तुम्हें सोच समझकर बोलना चाहिये। चालीस शिलिंग? मैं समझ नहीं पाया कि तुम्हारा मतलब क्या है? कौन-से चालीस शिलिंग?’
 ‘मैंने तुम्हें नौकरी तलाश करने के लिए चालीस शिलिंग दिए थे।’ लड़की के स्वर में सहसा उत्तेजना पैदा हो गई थी, ‘मैंने तुमसे उसी समय कह दिया था कि इन पैसों के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं है। और तुमने यह रकम उधार के रूप में ली थी।’
 ‘लगता है तुम कोई सपना देख रही हो।’ मिस्टर ह्विट कोम्ब ने आकुलता से कहा, ‘एक मिनट ठहरो। मुझे पहले यह देखने दो कि यह सज्जन कौन हैं और यहां क्यों आए हैं? तुम्हें दूसरों के सामने यह बात नहीं कहनी चाहिये थी।’
 यह कहकर वह पार्टीशन से निकलकर एलिस के सामने आ खड़ा हुआ और बड़े ध्यान से एलिस को देखने लगा।
 ‘मुझे काम चाहिए।’ एलिस ने गूंगे की तरह इशारों से बताया।