एक दिन एक महिला ने एक महात्मा जी से कहा, “मैं बहुत दुखी हूं, आप मुझे सुखी बना दीजिए।”

“साधु ने उससे पूछा, “तुम दुखी क्यों हो, क्या तुम्हारे पास खाने को रोटी नहीं है?”

“है महाराज, मेरे पास रोटी ही क्या दाल, चावल, सब्जी और मिठाई भी है।”

“तो क्या तुम्हारे पास बच्चे, घर और कपड़े नहीं हैं? महात्मा जी ने फिर पूछा,

“मेरे पास ये सब हैं”

“क्या किसी चिंता की वजह से तुम्हें नींद नहीं आती?”

“महाराज, मैं तो बिस्तर पर पड़ते ही सो जाती हूं” महिला ने कहा,

“फिर तुम दुखी क्यों हो!” महात्मा जी ने आश्चर्य से पूछा।

“मेरे दुख का कारण ये दुनिया और उसमें रहने वाले लोग हैं। मेरे पास जो भी हैं, दूसरे लोगों के पास उससे अधिक है, मैं उनसे खुद को छोटा महसूस करती हूं”

“तब तुम बेकार में ही दुखी हो. तुम्हारे पास खाने को रोटी, पहनने को कपड़े, रहने को घर है, दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं, और सबसे बड़ी बात, तुम चैन की नींद सोती हो तो बेकार दुखी हो रही हो, दुनिया में सबसे जरूरी रोटी. कपड़ा और मकान है,”

‘पर वो मेरे पड़ोस में……….

“बस-बस यह नजरिया ही तुम्हारे दुख का असली कारण है, तुम अपने देखने-समझने का नजरिया बदल दो, तुम सुखी हो जोओगी,”

अपने मन को निर्मल बना्कर, पड़ोसियों को अपना मानकर उनके दुख में दुखी होना सीख लो, अपने जीवन से दुखी होने को ये नकली आवरण उतार फेंको।

अगर सभी लोग- एक -दुसरे के सुख-दुख को अपना लें तो पूरी दुनिया सुखी हो जाएगी और चारों ओर खुशियां ही खुशियां फैल जाएंगी।

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