मेरे दादा और चाचू (दादाजी के भाई) पटना में रहते थे। जब कभी भी वो दिल्ली आते तो हमारे घर महीना भर तो रहते ही थे। वह टोका-टाकी बहुत करते थे। मेरे दादा जी ने मेरी मां को कभी सिर ढकने को नहीं कहा था लेकिन चाचाजी तो छोटा सा घूंघट निकालने के लिए मजबूर करते। हमारे खाने को लेकर भी मीन-मेख निकालते रहते। बच्चों को देसी घी खिलाओ, फास्ट फूड ज़हर है। उनके आने से सभी परेशान हो जाते थे। एक दिन दोपहर की बात है चाचा-दादू सो रहे थे, तभी मेरे भाई और मैंने दादा जी के खुले हुए मुंह में चैरी डाल दी (वो बड़ा सा मुंह खोलकर सोते थे)। उसी वक्त उन्होंने जोर की सांस ली होगी और ना जाने कैसे चैरी उनके गले में अटक गई। उनकी सांस रुकने लगी और आंखें लाल हो गई। उठकर उन्होंने मेरे चाचा जी की मदद से वो चैरी निकाली, उसके बाद मेरे भाई और मेरी जो पिटाई हुई वो कभी भूली नहीं जा सकती।

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