Thyroid and Pregnancy
Thyroid and Pregnancy

Thyroid and Pregnancy: मां बनना किसी भी महिला के जीवन की सबसे बड़ी खुशी होती है, लेकिन आजकल कई महिलाएं यंग एज में भी इस खुशी से दूर हैं। हाल के शोध से सामने आया है कि ज्यादातर वह महिलाएं संतान सुख से वंचित हैं,
जिन्हें थायरॉइड की समस्या है।

29 वर्षीय सुरभि वर्मा एक कामकाजी महिला हैं। पिछले दो साल से वह गर्भवती होने की कोशिश में लगी हैं लेकिन टेस्ट के बाद जब उन्हें पता चला कि वह मां नहीं बन सकती, तो उन्हें लगा कि अब दुनिया ही खत्म हो गई है। असल में सुरभि को थायरॉइड की शिकायत थी, जिसे उन्होंने,गंभीरता से नहीं लिया। डॉक्टर के कहने पर उन्होंने जब टीएसएच (थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन) ब्लड टेस्ट कराया, तो उन्हें पता चला कि वह हाइपोथायरॉयडिज्म की बीमारी से ग्रस्त हैं। यही वह कारण है कि उन्हें गर्भधारण करने में दिक्कत आ रही है।
संतान का सुख हर कोई लेना चाहता है। कभी-कभी कुछ कारणों और लापरवाही के कारण छोटी सी समस्या बड़ा रूप धारण कर लेती है। उदाहरण के लिए, थायरॉइड होने पर अमूमन दिमाग में यही बात आती है कि
इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति या मोटा होता है या पतला, लेकिन थायरॉयड का संबंध इनफर्टिलिटी से भी होता है। इस बीमारी से ग्रसित होने की प्रवृत्ति महिलाओं में पुरुषों से चार गुना अधिक होती है। चिकित्सकों का मानना है कि इस बीमारी को नजरअंदाज करना सही नहीं है। समय रहते इसका इलाज जरूर कराना चाहिए, ताकि यह
बीमारी बांझपन का रूप न ले सके।

इंडियन थायरॉइड सोसायटी के अनुसार, भारत में करीब 4.2 करोड़ लोग थायरॉयड से जूझ रहे हैं। मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शोभा गुप्ता बताती हैं कि शुरुआत में की गई लापरवाही बाद के लिए जोखिम बन सकती है। उनके पास कई मरीज आते हैं, जो बाद में लापरहवाही की वजह से पछताते हैं। डॉ. शोभा कहती हैं, ’80 फीसदी स्टैंडर्ड थायरॉयड ब्लड टेस्ट भी लो ओवेरियन टिश्यू का लेवल बता पाने में सफल नहीं होते हैं। इसलिए जरूरी है कि प्रेग्नेंसी की कोशिश कर रही महिलाएं सही डॉक्टर के पास जाएं।

अंडरएक्टिव थायरॉयड ग्लैंड एक ऐसी समस्या है, जिससे थायरॉइड ग्रंथि पर्याप्त हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है। थकान, वजन बढ़ना, उदासी और निराशा अंडरएक्टिव थायरॉइड के मुख्य लक्षण हैं।अंडरएक्टिव थायरॉइड का इलाज संभव है।
इससे ऑव्युलेशन प्रक्रिया में बाधा आती है। लक्षण जानना है जरूरी हाइपोथायरॉडिज्म कई प्रकार के होते हैं।
कुछ लोगों में तो इसके लक्षण ही सामने नहीं आते हैं। वहीं कुछ मरीजों में कुछ सामान्य लक्षण भी दिखाई पड़ने लगते हैं। ये हार्मोन की कमी के स्तर पर विकसित होते हैं। शुरुआती दौर में इसका असर तीव्र नहीं होता, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ते जाता है और खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। डॉ. शोभा आगे बताती हैं, ‘सामान्य लक्षणों में वजन बढ़ना, थकान, कब्ज, मांसपेशियां और जोड़ों में दर्द, ठंडे मौसम को सहन न कर पाना, मासिक धर्म का अनियमित होना, नींद न आना, सुस्ती आना, स्किन का ड्राई हो जाना, बालों का पतला हो जाना, खुरदुरा
हो जाना शामिल है।

ऐसे किसी भी लक्षण के दिखाई देने पर तुरंत थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन टेस्ट, चेस्ट एक्सरे, टी-4 और थायरॉक्सिन टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। डॉक्टर महिला की उम्र, थायरॉयड ग्रंथि के लक्षण देखकर इसका इलाज करते हैं। इसके लिए थायरॉइड रिप्लेसमेंट टेस्ट प्रभावकारी है, इसमें इस हार्मोन के सामान्य होने में एक से दो महीने का समय लग जाता है। हर छह महीने पर थायरॉइड की जांच कराना भी जरूरी है।

Thyroid and Pregnancy
what is the treatment

महिलाओं के लिए, थायरॉइड हार्मोन के लेवल को नॉर्मल करने से पीरियड्स या ओवरी (अंडाशय) संबंधी समस्याओं को ठीक करने में मदद मिल सकती है, जो बांझपन (इनफर्टिलिटी) का कारण हो सकती हैं। डॉ. शोभा गुप्ता के अनुसार, आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) जैसे इंफर्टिलिटी इलाज के सफल होने के लिए
आदर्श रूप से थायरॉइड हार्मोन लेवल 2.5-3.00 के बीच होना चाहिए।

treatment is possible
treatment is possible

इसमें कोई संदेह नहीं है कि इंफर्टिलिटी सबसे चुनौतीपूर्ण चिकित्सा समस्याओं में से एक है, जिसका सामना कई बार महिला को अकेले तो कभी अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर करना पड़ता है। यहां तक कि जब
बांझपन के कारणों का पता चल जाता है, तब भी तनाव और लगातार अनिश्चितता उन लोगों के लिए भारी हो सकती है, जो बच्चा पैदा करना चाहती हैं। आपको बता दें कि थायरॉइड इंफर्टिलिटी का कारण है, तो
इसके स्तर को सामान्य के भीतर वापस दवा के जरिए सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है। इलाज के दौरान पति-पत्नी का आपस में एक-दूसरे का सहयोग बनाए रखना बेहद जरूरी है। एक बार जब थायरॉइड का स्तर सामान्य हो जाता है, तो गर्भधारण की संभावना बहुत बढ़ जानी चाहिए, बशर्ते दोनों पार्टनर स्वास्थ्य हों।

thyroid levels are low
thyroid levels are low

आंकड़ों की मानें तो 18 से 20 फीसद दंपती रिप्रोडेक्टिव (प्रजनन) उम्र में भी इनफर्टिलिटी (बांझपन व नपुंसकता) के शिकार हो रहे हैं। थायरॉइड हार्मोन सेल्युलर फंक्शन को नियमित करता है। इसका अनियमित होना प्रजनन को प्रभावित करता है। थायरॉइड का पता चलना और इसका इलाज न कराना इनफर्टिलिटी और
मिसकैरेज का कारण भी बनता है। भारतीय थायरॉइड सोसायटी के मुताबिक, प्रीमेंस्ट्रूअल सिंड्रोम वाली 70 फीसद महिलाओं में थायरॉइड का स्तर कम होता है। इससे ओवरी से होने वाले प्रोजेस्ट्रोन का
स्राव कम होता है।

स्पर्धा रानी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज ने हिन्दी में एमए और वाईएमसीए से जर्नलिज़्म की पढ़ाई की है। बीते 20 वर्षों से वे लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट लेखन में सक्रिय हैं। अपने करियर में कई प्रमुख सेलिब्रिटीज़ के इंटरव्यू...