kaliyug ka aagaman
kaliyug ka aagaman

Bhagwan Vishnu Katha: पाण्डवों के स्वर्ग जाने के पश्चात् राजा परीक्षित ऋषि-मुनियों के आदेशानुसार धर्मपूर्वक शासन करने लगे । उनके जन्म के समय ज्योतिषियों ने जिन गुणों का वर्णन किया था, वे समस्त गुण उनमें विद्यमान थे । उनका विवाह राजा उत्तर की कन्या इरावती से हुआ । उससे उन्हें जनमेजय आदि चार पुत्र प्राप्त हुए । इस प्रकार वे समस्त ऐश्वर्य भोग रहे थे । एक बार दिग्विजय करते हुए परीक्षित सरस्वती नदी के तट पर पहुँचे । वहाँ उन्होंने देखा कि एक राजवेषधारी शूद्र हाथ में डंडा लिए एक पैर वाले वृषभ (बैल) और एक अति दुर्बल गाय को निर्दयता से पीट रहा है । वह वृषभ भय से काँपता हुआ एक पैर पर खड़ा था और गाय उस शूद्र के पाँवों के पास गिर कर उसकी ठोकरें खा रही थी ।

यह वीभत्स दृश्य देखकर परीक्षित क्रोधित होकर बोले – “ठहर जा दुष्ट ! तू कौन है, जो इन निर्दोष और दुर्बल प्राणियों पर अत्याचार कर रहा है? यद्यपि तूने राजा का वेष धारण कर रखा है, किंतु तेरा कर्म तेरे शूद्र होने की बात कह रहा है । तूने मेरे राज्य में यह कार्य कर घोर अपराध किया है । इसलिए तेरा वध ही तेरे लिए उचित दण्ड है ।”

तभी एक दिव्य आकाशवाणी हुई – “राजन ! राजवेषधारी यह शूद्र वास्तव में कलियुग है और उसके हाथों वृषभ-रूप में धर्म तथा गाय-रूप में पृथ्वी कष्ट भोग रही है । सतयुग में धर्म के-पवित्रता, तप, दया और सत्य-ये चार चरण थे । किंतु कलियुग में गर्व, मोह और मद के कारण इसके तीन चरण नष्ट हो गए हैं । अब यह सत्य नामक चरण पर ही स्थिर है । भगवान् श्रीकृष्ण के जाने के साथ ही पृथ्वी पर कलियुग का आगमन हो गया था । इस युग में प्राणी पापाचार में लिप्त हो जाएँगे । यही सोचकर पृथ्वी अत्यंत दु:खी है । अब आप इनके कष्टों का निवारण कीजिए ।”

परीक्षित ने धर्म और पृथ्वी को सांत्वना दी और म्यान से तलवार निकालकर आगे बड़े । कलियुग ने देखा कि अब परीक्षित
उसे मार ही डालेंगे तो उसने अपना राजसी वेश त्याग दिया और भय से व्याकुल होकर उनके चरणों में मस्तक झुका दिया । परीक्षित परम दयालु थे । जब उन्होंने कलियुग को अपनी शरण में देखा तो उनका मन दया से भर आया ।

उन्होंने उसके रहने के लिए ये स्थान बता दिए-जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और स्वर्ण (सोना) । इनके साथ-साथ मिथ्या, मद, काम, हिंसा और वैर-ये पाँच वस्तुएँ भी कलि को दे दीं ।

राजा एक दिन आखेट करने गए तब कलि उनके मुकुट में, जो स्वर्ण का था, सुशोभित हो गया । कलियुग राजा परीक्षित के सिर पर सवार था ही । उन्होंने क्रोधवश भूखे और प्यासे होने के कारण एक मौनी ऋषि के गले में मरे सर्प की माला पहना दी । क्योंकि ऋषि ध्यानमग्न थे, अतः परीक्षित का स्वागत नहीं कर सके थे । मुनि के श्रृंगी नामक पुत्र ने जब यह सुना तो परीक्षित को तक्षक नाग द्वारा डसे जाने का शाप दे दिया । राजा परीक्षित ने बहुत बचने का प्रयास किया, लेकिन अंततः वे तक्षक का शिकार बन गए ।

इस प्रकार पृथ्वी पर कलियुग का आगमन हुआ और इसका पहला शिकार इसे शरण देने वाले परीक्षित ही बने । कलियुग की आयु 4,32,000 वर्ष कही गई है । इसका आरंभ 3102 वर्ष ईसा पूर्व से हुआ ।

ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)