Thyroid and pregnancy
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Thyroid and Pregnancy: गर्भावस्था के दौरान मां और शिशु, दोनों के स्वास्थ्य के लिए हार्मोन संतुलन बेहद जरूरी होता है। इसी संतुलन में ज़रा-सा भी उतार-चढ़ाव कई जटिलताएं पैदा कर सकता है, जिनमें से एक है थायराइड डिसॉर्डर। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब इसे समय पर पहचाना न जाए। कई बार महिलाएं गर्भावस्था के लक्षणों को ही सामान्य मानकर अनदेखा कर देती हैं, जबकि थायराइड असंतुलन मां और शिशु दोनों के विकास पर गहरा असर डाल सकता है। इसलिए समय पर जांच कराना न सिर्फ जटिलताओं को रोकने में मदद करता है, बल्कि गर्भावस्था को स्वस्थ और सुरक्षित बनाए रखने के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण साबित होता है।

थायरॉइड ग्रंथि का कार्य और महत्व

डॉ मधुरा जोगवार, लैब चीफ, मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड (मुंबई), के मुताबिक थायरॉइड ग्रंथि हमारे मेटाबोलिज़्म के लिए जरूरी हार्मोनों का उत्पादन करती है। यह मुख्य रूप से दो हार्मोन बनाती है – ट्राइआयोडोथायराइरोनिन (T3) तथा थाइरॉक्सिन (T4), जिन्हें सामूहिक रूप से थायरॉइड हार्मोन्स कहा जाता है। ये हार्मोन शारीरिक विकास के साथ-साथ हृदय, मांसपेशियों, पाचन प्रक्रियाओं, मस्तिष्क विकास और हड्डियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। थायरॉइड ग्रंथि हमें आहार से मिलने वाली आयोडीन सप्लाई पर निर्भर करती है और इसकी गतिविधियां पिट्यूटरी ग्रंथि से विनियमित होती हैं, जो थायरॉइड को उत्प्रेरित करने वाले हार्मोन (थायरॉइड-स्टिमुलेटिंग हार्मोन – टीएसएच) का उत्पादन करती है, जिससे थायरॉइड हार्मोन उत्पादन नियंत्रित होता है। 

प्रेग्नेंसी में थायरॉइड की भूमिका

प्रेग्नेंसी के दौरान थायरॉइड का स्वस्थ रहना खासतौर से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह मां और गर्भ में पल रहे भ्रूण की सेहत के लिए जरूरी होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान, मेटाबोलिक जरूरत बढ़ने और शिशु के विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने, खासतौर से ब्रेन और नर्वस सिस्टम के विकास के लिए थायरॉइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है। प्रेग्नेंसी की शुरुआती अवस्था में, भ्रूण पूरी तरह से मां के थायरॉइड हार्मोनों पर निर्भर होता है, हालांकि कुछ समय बाद शिशु की थायरॉइड कार्यप्रणाली भी चालू हो जाती है, लेकिन मां की थायरॉइड हेल्थ पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान महत्वपूर्ण रहती है। 

हाइपोथायरॉइडिज़्म और हाइपरथायरॉइडिज़्म

प्रेग्नेंसी में थायरॉइड संबंधी गड़बड़ी हाइपोथायरॉइडिज़्म (थायरॉइड का कम सक्रिय होना) या हाइपरथायरॉइडिज़्म के रूप में सामने आती है। ये दोनों कंडीशंस मां और भ्रूण की सेहत के लिए काफी जोखिम पैदा करती हैं, और यही वजह है कि समय पर जांच तथा प्रबंधन करना महत्वपूर्ण है। 

थायरॉइड ग्रंथि द्वारा हार्मोन का अपर्याप्त उत्पादन करने पर, जो कि आयोडीन की कमी, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, या पहले से थायरॉइड को नुकसान पहुंचने के कारण हो सकता है, हाइपोथायरॉइडिज़्म होता है। इसके लक्षणों में थकान, वज़न बढ़ना, ठंड को सहन न कर पाना, त्वचा का शुष्क होना, बालों का पतलापन, आवाज़ भारी होना और आंखों के आसपास सूजन शामिल हैं। 

अध्ययनों से यह पता चला है कि 2-4% प्रेग्नेंट महिलाओं को सबक्लीनिकल या ओवर्ट हाइपोथायरॉइडिज़्म की शिकायत होती है। यदि हाइपोथायरॉइडिज़्म का उपचार नहीं किया जाता तो इसकी वजह से फर्टिलिटी, गर्भपात और प्लेसेंटा संबंधी समस्याएं, प्री-एक्लेम्पसिया, प्रीटर्म डिलीवरी, पोस्टपार्टम डिप्रेशन और भ्रूण का मानसिक विकास प्रभावित होने का खतरा रहता है। कई बार गंभीर मामलों में, इसकी वजह से इंट्रायूटराइन मृत्यु, लो बर्थ वेट, प्रीटर्म बर्थ और पोस्टपार्टम हेमेरेज का भी खतरा होता है। नवजातों के मामले में, मांओं में हाइपोथायरॉइडिज़्म की वजह से कॉग्निटिव, न्यूरोलॉजिकल और डेवलपमेंट संबंधी विकारों का खतरा बढ़ सकता है। भ्रूण के मानसिक विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में थायरॉइड हार्मोन स्तर का होना जरूरी होता है, यही वजह है कि शीघ्र जांच, निदान और प्रबंधन महत्वपूर्ण होता है। 

हाइपोथायरॉइडिज़्म अक्सर ग्रेव्स रोग की वजह से होता है, जिसका कारण थायरॉइड हार्मोन का अधिक उत्पादन है। इसके लक्षणों में, वज़न कम होना, गर्मी सहन न कर पाना, ओर हाइ ब्लड प्रेशर शामिल हैं। हाइपोथायरॉइडिज़्म का इलाज नहीं किया जाए तो यह फीटल टैकीकार्डिया, जन्म के समय सामान्य से कम वज़न, या मृत शिशु के जन्म का कारण बन सकता है। इसी तरह, यह कंडीशन निरंतर हाइपोथायरॉइडिज़्म के रिस्क को भी बढ़ाती है। 

पोस्टपार्टम थायरॉइडाइटिस

पोस्टपार्टम थायरॉइडाइटिस, थायरॉइड ग्रंथि की एक प्रकार की अस्थायी सूजन है जो प्रसव या गर्भपात के बाद होती है। इसकी शुरुआत आमतौर से हाइपोथायरॉइडिज़्म के साथ होती है, और इसके बाद हाइपोथायरॉइडिज़्म का चरण आता है। यदि इसका उपचार न किया जाए, तो यह कंडीशन गंभीर होकर निरंतर हाइपोथायरॉइडिज़्म में बदल जाती है। 

जांच का महत्व 

प्रेग्नेंसी की पूरी अवधि के दौरान, TSH, T3, और T4 लेवल्स की जांच करना थायरॉइड डिस्फंक्शन के लिहाज से महत्वपूर्ण होता है। प्रेग्नेंसी में, ट्रांसपोर्ट प्रोटीन के लेवल में बदलाव होने से टोटल T4 और T3 की माप में परिवर्तन होता है, जिससे T4 थायरॉइड फंक्शन का अधिक भरोसेमंद संकेतक बनता है। इसके अलावा, TSH की ट्राइमेस्टर संबंधी विशिष्ट रेंज का उपयोग, जैसे कि अमेरिकन थायरॉइड एसोसएिशन द्वारा जारी गाइडलाइंस के अनुसार, सही प्रकार की व्याख्या के लिए किया जाना चाहिए। थायरॉइड ऑटोएंटीबडीज़ की जांच शुरुआत में ही ऑटोइम्यून कार्यप्रणाली में गड़बड़ी का पता लगाने में मददगार हो सकती है। थायरॉइड डिसऑडर्र का तुरंत डायग्नॉसिस और सही उपचार जटिलताओं से बचाव करने और हेल्थी प्रेग्नेंसी सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

प्रेग्नेंसी के दौरान थायरॉइड संबंधी विकारों की वजह से मां और भ्रूण की सेहत पर काफी असर पड़ता है। समय पर थायरॉइड फंक्शन टेस्टिंग के महत्व और डायग्नॉसिस तथा उपचार संबंधी गाइडलाइंस को अपनाने से मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर परिणाम सुनिश्चित किए जा सकते हैं। 

मेरा नाम सुनेना है और मैं बीते पाँच वर्षों से हिंदी कंटेंट लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हूं। विशेष रूप से महिला स्वास्थ्य, मानसिक सेहत, पारिवारिक रिश्ते, बच्चों की परवरिश और सामाजिक चेतना से जुड़े विषयों पर काम किया है। वर्तमान में मैं...