कम्बाइंड स्क्रीनिंग टेस्ट में अल्ट्रासाउंड और रक्त की जांच, दोनों ही दर्द रहित हैं इससे आपको या शिशु को कोई खतरा नहीं होता। आपको इसे अच्छी क्वालिटी के उपकरण से ही करवाना चाहिए। ऐसे  डॉक्टर व सोनोग्राफर का चुनाव करें जो प्रशिक्षित हों।

यह क्या है? :- पहली तिमाही की कंबाइंड स्क्रीनिंग में अल्ट्रासाउंड, शिशु के साथ रक्त की जांच भी होती है। पहले अल्ट्रासाउंड, शिशु की पीठ के पिछले हिस्से में एकत्र, द्रव्य की हल्की-सी परत को मापता है। यदि यह द्रव्यन्यूकल ट्रांसलूसेंसी की मात्रा अधिक हो तो,क्रोमोसोमल असामान्यताओं (डाऊन सिंड्रोम, कॉनजेननिटल हार्ट डिफेक्ट) व दूसरे जेनेटिक डिसआर्डर का खतरा बढ़ जाता है।फिर रक्त की जांच पीएपीपी-ए और एचसीजी (भ्रूण द्वारा उत्पादित दो हार्मोन, जोमां के रक्तप्रवाह में शामिल होते हैं) का पता लगाया जाता है। इन स्तरों को एनटी की माप और मां की आयु से जोड़ा जाता है और डाऊन सिंड्रोम के खतरे की जांच की जाती है। कई मेडिकल सेंटर, इस अल्ट्रासाउंड में भ्रूण की नेसल बोन की भी जांच करते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि यदि पहले अल्ट्रासाउंड में इस बोन का पता न चले तो डाऊन सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है। कुछ अध्ययन इसके खिलाफ हैं। नतीजन यह मामला अभी विवादित है।

हालांकि एक साथ होने वाली इस स्क्रीनिंग से आपको वे नतीजे नहीं मिल सकते जो‘इन्वेसिव डायग्नॉस्टिक टेस्ट’ से मिलते लेकिन इसकी मदद से आप फैसला ले सकते हैं कि आपको ‘डायग्नॉस्टिक टेस्ट’ कराना चाहिए या नहीं? यदि आपको इन नतीजों से पता चलता है कि शिशु में क्रोमोसोमल विकार हो सकते हैं तो सी.वी.एस.(कोरिआनिक विल्लससैम्पलिंग) या एमनियो सेंटेसिस) जांच करने को कहा जायेगा। यदि टेस्ट में ज्यादा खतरे का संकेत नहीं मिलता तो डॉक्टर आपको दूसरी तिमाही में क्वैड स्क्रीन टेस्ट कराने की सलाह देंगे ताकि न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट पता लग सके। चूंकि यह चीज़ हृदय रोगों या विकारों से भी जुड़ी है इसलिए बीसवें सप्ताह के दौरान फैटलइको कार्डियोग्राम कराने की सलाह भी दी जा सकती है ताकि हृदय के विकारों का पता लगा सके। एन टी की जांच सही न होने पर प्रीटर्म लेबर का खतरा भी बढ़ सकता है इसलिए आपको उसके लिए भी ध्यान देना होगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

यह कब होता है? :- पहली-तिमाही कंबाइंड स्क्रीनिंग, गर्भावस्था के 11 से 14 सप्ताह के बीच की जाती है।

यह कितनी सही होती है?:- यह स्क्रीन टेस्ट,प्रत्यक्ष रूप से क्रोमोसोमल परेशानियों की जांच नहीं करता और न ही किसी निश्चित स्थितिका निदान करता है। केवल इतना अंदाज हो जाता है कि शिशु को कोई तकलीफ हो सकती है। असामान्य नतीजे का मतलब यह नहीं कि उसे कोई क्रोमोसोमल रोग ही होगा,केवल खतरे का संकेत हो सकता है। आमतौर पर असामान्य नतीजों वाली स्वस्थ महिलाएं भी सामान्य व स्वस्थ शिशुओं को जन्म देती हैं। सामान्य नतीजे भी इस बात की गारंटी नहीं देते कि स्वस्थ शिशु का ही जन्म होगा, यह भी हो सकता है कि वह क्रोमोसोमल विकार से ग्रस्त हो। इस कंबाइंड स्क्रीन टेस्ट से 80 प्रतिशत डाऊन सिंड्रोम तथा 80 प्रतिशत ट्राईसोमी समस्याओं का पता चलता है।

यह कितना सुरक्षित है? :- अल्ट्रासाउंड और रक्त की जांच, दोनों ही दर्द रहित हैं (यदि आप सुई चुभोने का दर्द सह लें तो) इनमें आपको या शिशु को कोई खतरा नहीं होता। बस एक ही बात है, इस तरह के स्क्रीन टेस्ट के लिए काफी बढ़िया अल्ट्रासाउंड तकनीक की जरूरत पड़ती है इसलिए आपको इसे विशेष उपकरण(अच्छी क्वालिटी) से ही करवाना चाहिए। डॉक्टर व सोनोग्राफर भी प्रशिक्षित हों, तो ठीक रहेगा। याद रखें कि हल्की मशीनों से टेस्ट करवाने पर झूठे-सच्चे नतीजे भी निकल सकते हैं, जो आगे चलकर खतरा बन जाएंगे। इन नतीजों के हिसाब से कोई भी अगला फैसला लेने से पहले इन्हें, जेनेटिक सलाहकार या अनुभवी डॉक्टर को दिखा लें यदि कोई संदेह हो तो इसकी राय भी अवश्य लें।

ये भी पढ़ें –

गर्भावस्था की पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड स्कैन है जरूरी

टेस्ट व स्क्रीनिंग से जानें बच्चे की हैल्थ

प्रेगनेंट होना चाहती हैं तो फुल बॉडी चेकअप करवाएं

आप हमें फेसबुकट्विटरगूगल प्लस और यू ट्यूब चैनल पर भी फॉलो कर सकती हैं।