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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, यूएस की ओर से की गई यह स्टडी लोगों को सावधान कर रही है कि अगर वे आज नहीं संभले तो आगे उन्हें कई ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसकी उन्होंने शायद कभी कल्पना भी नहीं की हो।
Pollution Effects on Pregnancy: प्रदूषण हमारे आज को ही नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित कर सकता है। आपको यह बात पढ़ने में भले ही बहुत ही अजीब और डरावनी लगे। लेकिन यह कड़वी सच्चाई है, जिसका खुलासा हाल ही में हुई एक स्टडी में हुआ है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, यूएस की ओर से की गई यह स्टडी लोगों को सावधान कर रही है कि अगर वे आज नहीं संभले तो आगे उन्हें कई ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसकी उन्होंने शायद कभी कल्पना भी नहीं की हो। क्या कहती है यह स्टडी, आइए जानते हैं।
गर्भ पर पड़ता है असर

जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित इस स्टडी के अनुसार पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 2.5 प्रदूषण के संपर्क में आने वाली गर्भवती महिलाओं को कई प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं। इस प्रदूषण के कारण सूजन का स्तर बढ़ जाता है। यही सूजन प्रजनन में परेशानियों का कारण बनती है, जिसमें बच्चे का समय से पहले जन्म, विकास संबंधी विकार और वजन कम होने जैसी समस्याएं शामिल हैं। गौरतलब है कि ये सभी समस्याएं बच्चों के भविष्य के लिए भी खतरे से कम नहीं हैं।
यह है सबसे बड़ा कारण
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की इस स्टडी के अनुसार पीएम 2.5 प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है 2.5 माइक्रोमीटर या उससे भी कम आकार के कण। ये कण न सिर्फ वाहनों और औद्वोगिक उत्सर्जन के कारण निकलते हैं, बल्कि धूल और जंगल की आग या ऐसे ही अन्य कारणों से कार्बन में शामिल हो सकते हैं। जब कोई गर्भवती महिला पीएम 2.5 के संपर्क में आती है तो ये कण उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और हिस्टोन के प्रभावित होने का खतरा बढ़ जाता है। हिस्टोन एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो गुणसूत्रों में पाया जाता है। यह डीएनए संरचना और कोशिका कार्यों के लिए बहुत जरूरी होता है। हिस्टोन के प्रभावित होने से साइटोकाइन जीन भी प्रभावित होता है और उसका बैलेंस बिगड़ने लगता है। साइटोकाइन जीन एक महत्वपूर्ण जीन होता है, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सुचारू करता है। ऐसे में गर्भवती महिला और भ्रूण दोनों में सूजन बढ़ने लगती है। यही सूजन आगे चलकर कई परेशानियों का कारण बन जाती है।
इसलिए महत्वपूर्ण है शोध
शोध सहयोगी और सह-लेखक यूं सू जंग का कहना है कि गर्भवती महिलाओं और भ्रूण की सुरक्षा के नजरिए से यह एक महत्वपूर्ण शोध है। ऐसे में बहुत जरूरी है वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं। इससे पहले हुए शोध में मां और शिशु के स्वास्थ्य पर प्रदूषण के असर को लेकर अध्ययन किए गए। लेकिन इस शोध में पहली बार मां और भ्रूण पर प्रदूषण को लेकर अध्ययन किया गया है। इस दौरान हर कोशिका के अंदर होने वाले हिस्टोन और साइटोकाइन के बदलावों की समीक्षा की गई। इससे इंफ्लेमसोम मार्ग और गर्भावस्था में जटिलताएं मिली हैं।
ये महिलाएं हुईं अध्ययन में शामिल
इस अध्ययन में 20 सप्ताह की गर्भवती महिलाओं और गैर गर्भवती महिलाओं को शामिल किया गया है। वहीं पीएम 2.5 के औसत गणना अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी से वायु गुणवत्ता डेटा का उपयोग करके की गई थी।
