National Epilepsy Day: मिर्गी एक क्रोनिक न्यूरोलाॅजिकल डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति को दौरे पड़ने लगते हैं। यह कोई मानसिक समस्या नहीं, बल्कि मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी से है। सामान्य तौर पर दिमाग की न्यूरॉन्स कोशिकाएं निरंतर एक-दूसरे से संपर्क कायम रखते हैं और उनमें इलेक्ट्रिकल करंट या विद्युत तरंगे पैदा होती हैं। इन कोशिकाओं की क्रियाशीलता ही व्यक्ति के कार्यक्षमता को नियंत्रित करती हैं। लेकिन जब किन्हीं कारणवश मस्तिष्क की न्यूरॉन्स कोशिकाओं में विद्युत तरंगों का संचार अचानक और अनियंत्रित होने लगता है, तो व्यक्ति को मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं। दौरा पड़ने पर प्रभावित व्यक्ति का दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है, शरीर में झटके लगने लगते हैं और शरीर लड़खडाने लगता है।
क्या है कारण

हेल्थ लाइन की एक रिपोर्ट के अनुसार 10 में से 6 मरीजों में मिर्गी रोग के वास्तविक कारणों का पता लगाना मुश्किल होता है। इसके कई रिस्क फैक्टर्स होते हैं- दिमाग में चोट लगना,ब्रेन हैमरेज, ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन ट्यूमर के कारण मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति ठीक तरह न होने से विकार आना, मैनिनजाइटिस दिमागी बुखार होना, टेपवर्म,बिना धुली फल-सब्जियों के सेवन से दिमाग में न्यूरोसिस्टिक सरकोसिस कीड़ा होना, प्रीमैच्योर पैदा हुए बच्चे जिनका दिमाग पूरी तरह विकसित न हुआ हो, टीबी, एंजियोफलाइटिस जैसे संक्रमण के कारण गर्भावस्था में शिशु के मस्तिष्क को चोट पहुंचना, प्रसव के दौरान या प्रसवोपरांत चोट के कारण मस्तिष्क को नुकसान, जन्म के दौरान कम ऑक्सीजन की कमी होना । इसके अलावा शरीर में नमक की कमी होना, किसी नशीले पदार्थ या एल्कोहल के सेवन से रिएक्ट होना जैसे सिम्टोमैटिक दौरे पड़ने के कारणों की वजह से भी मरीज को मिर्गी के दौरे पड़ सकते हैं।
फर्स्ट एड से करें मरीज की मदद
हालांकि यह दौरा 1-2 मिनट के लिए ही आता है, लेकिन सांस रुकने की वजह से यह मरीज के लिए काफी खतरनाक होता है। लेकिन समुचित जानकारी के अभाव में मरीज की फर्स्ट एड नहीं कर पाते जिससे उसे नुकसान पहुंचता है। इसके बारे में न केवल मरीज के परिवार के सदस्यों को ही नहीं, हम सभी को पता होना चाहिए, ताकि दौरा पड़ने पर मरीज को समुचित मदद कर सकें।
मिर्गी का दोैरा आने पर कोशिश करें कि मरीज को दाईं या बाईं करवट लेटा दें ताकि मुंह से निकलने वाली झाग या थूक अंदर न ले जा पाए। थूक सांस की नली में जा सकती है जिससे उसे सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
चोट से बचाने के लिए सिर के नीचे मुलायम तकिया या कपड़ा रखें घबराहट कम करने के लिए उसके कपड़े ढीले कर दें। झटके रोकने के लिए हाथ-पैर को न पकड़ें , इससे मरीज को स्लिप डिस्क होने का खतरा रहता है।
मरीज की जीभ कटने से बचाने के लिए उसकेे मुंह में चम्मच, कपड़ा या कोई चीज न डालें क्योंकि चम्मच पेट में जा सकता है या सांस रुक सकती है। पानी वगैरह तभी पिलाएं जब मरीज को पूरी तरह से होश आ जाए जिससे पानी फेफड़ों मे जाने का खतरा न हो।
मिर्गी के पहले दौरे की न करें अनदेखी-

कुछ समय पहले तक माना जाता था कि किसी व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर 2 मिर्गी के दौरे पड़ जाएं, तो उस व्यक्ति को मिर्गी की बीमारी मानी जाती थी। लेकिन वर्तमान में इंटरनेशनल लीग अगेंस्ट एपिलेप्सी (आईएलए) के अनुसार जरूरी नहीं है कि मरीज में मिर्गी का दौरा पड़ने की प्रवृत्ति बहुत ज्यादा हो। संभव है कि मरीज कोे दूसरा दौरा 1-2 साल बाद या किसी भी समय आ सकता है। जरूरी है कि किसी मरीज को जब कभी मिर्गी का पहला दौरा आए, तो फिजीशियन या न्यूरोलाॅजिस्ट डाॅक्टर को तुरंत दिखाना चाहिए। डाॅक्टर मरीज की केस हिस्ट्री जानकर और एमआरआई, सिटी स्कैन, ईईजी जैसे ब्रेन परीक्षण करके मरीज में दौरे की स्थिति का पता लगाते हैं। अगर मरीज को आराम नहीं आता है, तो स्पेशल एपिलेप्सी सेंटर से अपना उपचार करा सकते हैं।
उपचार
मरीज की स्थिति के हिसाब से 3-5 साल तक एंटी-सीजर दवाइयां दी जाती हैं जिससे बिना किसी साइड इफेक्ट के मिर्गी के दौरे नियंत्रित हो जाते हैं। अब नेजल स्प्रे भी दिए जाते हैं जिससे दौरे आने पर मरीज को आराम मिलता है। तकरीबन 70-80 प्रतिशत मरीज दवा से ठीक हो जाते हैं और उनको दी जाने वाली दवादयां 3-4 साल में बंद हो जाती हैं। केवल 15-20 प्रतिशत मरीजों को दवाइयां देने के बावजूद दौरे नियंत्रित नहीं हो पाते हैं तो सर्जरी करनी पड़ती है। डाॅक्टर मरीज के दौरे को वीडियो ईजीजी टेस्ट से रिकार्ड करके देखते हैं कि दौरा मस्तिष्क के किस पाइंट से आ रहा है। सर्जरी करके उस पाइंट को हटा दिया जाता है।
मिर्गी के मरीज को जीवनशैली में परिवर्तन करना है जरूरी-
- नियमित रूप से दवाई लें। डाॅक्टर के परामर्श के बिना अपने-आप काई दूसरी दवा न लें और मिर्गी की दवा बंद न करें।
- आग, पानी और ऊंचाई पर जाने से बचें ताकि इस दौरान मिर्गी का दौरा आने पर मरीज की स्थिति गंभीर हो सकती है।
- मिर्गी का दौरा आने के बाद कम से कम 5-6 महीने तक ड्राइविंग नहीं करें।
कोशिश करें कि माइनिंग, कारखानों में भारी मशीनों के पास काम करने वाले लोग नौकरी बदल लें। - पौषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार लें। उपवास रखने से बचें।
- मिर्गी से जूझ रही और प्रेगनेंसी प्लान कर रही युवा महिलाएं विशेष ध्यान रखें। कम से कम एक साल पहले न्यूरोसर्जन डाॅक्टर को कंसल्ट करें और उनके निर्देशों को फोलो करें।
- जिन मरीजों के दौरे नियंत्रित न हों, वे अपने साथ आई-कार्ड जरूर रखें जिसमें जरूरी फर्स्ट एड निर्देश, घर और डाॅक्टर का फोन नंबर जरूर होना चाहिए। ताकि एमरजेंसी की स्थिति में दूसरे लोग उसकी मदद कर सकें।
- नशीले पदार्थों और एल्कोहल के सेवन से परहेज करें।
(डाॅ अंशु रोहतगी, सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरोलाॅजिस्ट, सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली,से बातचीत पर आधारित)
