HIV/AIDS Prevention: एचआईवी (ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस) उन कोशिकाओं पर हमला करने वाला एक वायरस है जो शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करती हैं, जिससे व्यक्ति अन्य संक्रमणों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। यह एचआईवी पीड़ित व्यक्ति के कुछ शारीरिक तरल पदार्थों (ब्लड, बॉडी फ्ल्यूड) के संपर्क में आने से फैलता है। आमतौर पर असुरक्षित यौन संबंध के दौरान या इंजेक्शन दवा उपकरण साझा करने के माध्यम से।
डब्ल्यूएचओ (WHO) के हिसाब से भारत एचआईवी सिंड्रोम के क्षेत्र में दुनिया में तीसरे नंबर पर है। एड्स ने 2030 तक एचआईवी का अंत करने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में भारत में साढ़े 23 लाख से ज्यादा लोग एचआईवी के साथ जी रहे हैं। जिनमें से करीब 10 लाख 15 साल से बड़ी उम्र की महिलाएं हैं। भारत में हर साल तकरीबन 70 हजार नए मामले आते है और एड्स के कारण भारत में हर साल करीब 60 हजार लोगों की मृत्यु होती है।
यूएन एड्स टारगेट : हालांकि सर्वेक्षण के हिसाब से 2010 के मुकाबले 2019 में एचआईवी के नए मामलों में करीबन 37 प्रतिशत और मृत्यु दर में 66 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। यूएन एड्स संस्था ने एचआईवी उन्मूलन के लिए सन् 2030 तक 95-95-95 का टारगेट रखा है। इसके हिसाब से भारत में 95 प्रतिशत लोगों की टेस्टिंग हो और उन्हें अपने एचआईवी स्टेटस का पता होना चाहिए। यानी उन्हें पता होना चाहिए कि वो एचआईवी संक्रमित हैं और वे जाने-अनजाने दूसरों को संक्रमित न करें। डायगनोज हुए एचआईवी स्टेटस वाले 95 प्रतिशत लोगों को एआरटी थेरेपी पर रखा जाएगा और इलाज करा रहे 95 प्रतिशत लोगों में वायरल लोड नॉन-डिटेक्टेबल आए यानी 200 से कम होने पर एक इंसान से दूसरे को नहीं फैलता।

यूएन टारगेट का एक पहलू यह भी है कि पूरी दुनिया में हर साल एचआईवी संक्रमित लोगों की तादाद 2 लाख से कम हो जाए और किसी भी एचआईवी पॉजीटिव व्यक्ति के साथ किसी तरह का भेदभाव न किया जाए। इसके साथ ही यूएन एडस का महिलाओं और बच्चों को लेकर भी 95 वाले टारगेट तय किए गए हैं- 19-45 साल तक की युवा महिलाओं में एचआईवी और स्त्री रोग से जुड़ी चिकित्सा प्रदान करनी हैं। एचआईवी पॉजीटिव गर्भवती और स्तनपान कराने वाली 95 प्रतिशत माताओं का वायरल लोड नॉन-डिटेक्टबल करना है। एचआईवी से एक्सपोज हुए 95 प्रतिशत बच्चों की टेस्टिंग करानी भी जरूरी है।
हालांकि पूरी दुनिया में एचआईवी के मामलों में कमी पाई गई है और माना जा रहा है कि 2030 तक काफी कमी हो जाएगी। देश के कई राज्यों के स्कूलों में एन्डोलोसेंट एजुकेशन और नाम से कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिसमें एचआईवी और रिप्रोडक्टिव हैल्थ के बारे में जानकारी दी जाती है। कॉलेज स्तर पर नाको और नेहरू युवा केंद्र के सहयोग से रेड रिबन क्लब भी एक्टिव हैं जो विभिन्न सोशल एक्टिविटी के जरिये इसका प्रचार करते हैं। पूरे देश के तकरीबन सभी सरकारी अस्पतालों और कम्यूनिटी आईसीटी सेंटरों पर एचआईवी टेस्टिंग की जाती हैं। इसके साथ ही एआरटी सेंटर चलाए जा रहे हैं जहां डायगनोज हुए मरीज की काउंसलिंग और उपचार किया जाता है। सरकारी केंद्रो में एचआईवी टेस्ट और इलाज निःशुल्क किया जाता है। ऐसे केंद्रों पर एचआईवी जांच की रिपोर्ट को गोपनीय रखा जाता है। इसके साथ ही कई प्राइवेट लैब में भी एचआईवी टेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध है और प्राइवेट डॉक्टर उपचार कर रहे हैं।

कैसे होते हैं संक्रमित?
एचआईवी पीड़ित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में एचआईवी संक्रमण मूलतः 3 तरह से पहुंच सकता है- असुरक्षित सेक्स संबंध बनाने से, ब्लड ट्रांसफ्यूजन या एचआईवी पीड़ित व्यक्ति को इस्तेमाल की गई सीरिंज का इस्तेमाल करने से, प्रेगनेंसी या डिलीवरी के समय मां से शिशु को होने वाला संक्रमण। एचआईवी संक्रमण मूलतः इन कारणों से होता है-
- हेट्रोसेक्सुअल सेक्स यानी एचआईवी संक्रमित स्त्री-पुरुष के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने (93 प्रतिशत) पर
- एचआईवी संक्रमित होमो सेक्चुअल व्यक्तियों में यौन संबंध बनाने पर
- एचआईवी संक्रमित ब्लड या उसके अवयव को इस्तेमाल करने से
- ड्रग्स लेने या मेडिकल उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली एचआईवी संक्रमित सीरिंज का इस्तेमाल करने पर
- एचआईवी संक्रमित गर्भवती या स्तनपान कराने वाली मां से बच्चे को संक्रमित सूई या मशीन से नाक, कान छिदवाते समय, टैटू बनवाते समय।
क्या है लक्षण?
संक्रमित होने के बाद वायरस शरीर में सुप्तावस्था में सालोंसाल पड़ा रहता है। धीरे-धीरे इम्यूनिटी को कमजोर करता रहता है। मरीज को 8-10 साल तक एचआईवी के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते। इसे विंडो पीरियड कहते हैं। डायरिया, बुखार, टीबी, गले में खराश, खांसी-जुकाम जैसी कोई भी सामान्य इंफेक्शन या बीमारी जो दो-चार दिन में ठीक हो जाती है, लेकिन एचआईवी संक्रमण में वो बीमारी लंबे समय तक चलती रहती है।
उपचार
मरीज को एचआईवी संक्र्रमण कंट्रोल करने की दवाई दी जाती है। एचआईवी दवा को एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) कहा जाता है। एचआईवी का कोई प्रभावी इलाज नहीं है। लेकिन उचित चिकित्सा देखभाल से आप एचआईवी को नियंत्रित कर सकते हैं। अधिकांश लोग छह महीने के भीतर वायरस को नियंत्रण में कर सकते हैं। डायगनोज होने के बाद जितनी जल्दी हो सके इलाज शुरू कर देना चाहिए।

एचआईवी रोगियों के उपचार में उपयोग की जाने वाली दवाओं को संयुक्त एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी के रूप में जाना जाता है। एचआईवी में पूर्ण प्रबंधन में 3 बुनियादी घटक शामिल हैं। सबसे पहले दवाओं के पालन के साथ-साथ सुरक्षित यौन प्रथाओं का पालन करने के बारे में व्यापक परामर्श। दूसरा, व्यक्ति को होने वाले दूसरे संक्रमणों का निदान और उपचार करने की आवश्यकता है जो एचआईवी के रोगी में देखे जाते हैं। तीसरा, एचआईवी संक्रमण के फैलाव और मृत्यु दर को कम करने के लिए जितनी जल्दी हो सके एआरटी शुरू करना। इलाज के लिए एक ही गोली दी जाती है जिसे व्यक्ति को रात को साने से पहले लेनर होती है।
डब्ल्यूएचओ के हिसाब से एचआईवी से बचने के लिए कुछ दवाइयों की सिफारिश की है, जिनका चलन हमारे देश में अभी कम है-
- एचआईवी संक्रमित होने की आशंका होने पर व्यक्ति को जल्द से जल्द पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीईपी) दवाई दी जानी चाहिए जिसमें एंटी रेट्रोवायरल ड्रग्स के लिए दी जाने वाली तीनों दवाइयां शामिल होती हैं। यह दवाई 28 दिन के लिए दी जाती है। इस बीच में एचआईवी की जांच की जाती है फिर 3 और 6 महीने पर की जाती है। जब मरीज दवाई खाने पर उसे किसी तरह का साइड इफेक्ट न होने पर 3-6 महीने की दवाई भी दी जाती है।
- प्री-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (पीईईपी) सेक्स वर्कर्स, मेडिकल स्टाफ जैसे हाई रिस्क कैटेगरी में आने वाले लोगों को सेक्स से कम से कम 5-7 दिन पहले लेनी शुरू कर देनी चाहिए और पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीईपी) जैसी एचआईवी रोकथाम दवाओं का लाभ उठाने में भी सक्षम हो सकते हैं।
कैसे करें बचाव

- अपने जीवनसाथी के साथ वफादार बनें। सुरक्षित यौन संबध बनाएं।
- ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत हो तो मान्यता प्राप्त ब्लड बैंक से ही ब्लड लें या जानकार व्यक्ति से लेते समय एचआईवी संक्रमण टेस्ट की जांच जरूर करवाएं।
- डिस्पोजेबल या सटर्लाइज सीरिंज का प्रयोग करें।
(डॉ जतिन अहूजा, कंसल्टेंट इंफैक्शियस डिजीज, इंटरनल मेडिसिन, अपोलो अस्पताल, दिल्ली )