Gestational Diabetes: जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes) गर्भावस्था में महिलाओं को होने वाली डायबिटीज है। गर्भावस्था के दौरान शूगर का मेटाबॉलिज्म गडबड़ा जाता है और एक स्वस्थ महिला भी इसका शिकार हो जाती है। गर्भवती महिला को प्रेगनेंसी में प्लेसेंटल लैक्टोजन, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रॉन जैसे हार्मोन की वजह से उसका कार्बोहाइड्रेट मेटाबॉलिज्म गड़बड़ा जाता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस डेवलप हो जाता है और ब्लड शूगर लेवल बढ़ने लगता है। आमतौर पर गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद चेकअप के दौरान इसका पता चलता है। 2019 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ डायबिटीज के आंकड़ों के हिसाब से भारत में 77 मिलियन लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं। इनमें से 50 प्रतिशत महिलाएं हैं और तकरीबन 5 मिलियन से ज्यादा महिलाएं जेस्टेशनल डायबिटीज से ग्रसित हैं।
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महिला को क्या है खतरा

ध्यान न देने पर कई मामलों मे प्रेगनेंसी आगे नहीं बढ़ती, गर्भपात हो जाता है या शिशु की गर्भाशय में मौत भी हो सकती है। बच्चे का भार ज्यादा होने से प्रसव के दौरान महिला को नॉर्मल डिलीवरी में परेशानियां हो सकती हैं यानी सिजेरियन डिलीवरी की संभावना बढ़ सकती है। प्रसव के 4-5 महीने बाद महिला को डायबिटीज दोबारा होने और 4-5 साल बाद टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना रहती है। वे मोटापे से ग्रसित हो सकती हैं। हार्ट अटैक, स्ट्रोक जैसी कार्डियोवेस्कुलर डिजीज और फैटी लिवर डिजीज होने का रिस्क दोगुना हो जाता है।
गर्भस्थ शिशु पर क्या होता है असर
गर्भावस्था में शूगर लेवल अनियंत्रित होने पर शिशु पर दो तरह से प्रभाव पड़ता है-शार्ट टर्म और लांग टर्म।
- शार्ट टर्म में शिशु को कई तरह की समस्याएं होती है और उसे एनआईसीयू में भी भर्ती कराने की नौबत आ सकती है। महिला का ब्लड शूगर लेवल बढ़ने से मैक्रोसोमिक शिशु होने का खतरा रहता है। मां का ब्लड शिशु तक पहुंचने से उसका शूगर लेवल ज्यादा हो जाता है। शिशु का पैनक्रियाज ज्यादा इंसुलिन का निर्माण करने लगता है और उसका वजन बढ़ने की संभावना रहती है। प्रसव के तुरंत बाद वे हाइपोग्लाइसिमिक हो जाते हैं। उनका शूगर लेवल एकाएक कम हो जाता है और उनमें दौरे आने की संभावना भी रहती है।
- गर्भावस्था पूरी होने के बाद भी शिशु के फेफडों का विकास ठीक तरह नहीं हो पाता और उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। शिशु पॉलीसाइकीमिया का शिकार हो जाते हैं। ब्लड शूगर लेवल बढ़ने से शिशु के रेड ब्लड सेल्स का निर्माण ज्यादा मात्रा में होने लगता है। प्रसव के तुरंत बाद ये सेल्स तेजी से टूटने लगते हैं। शिशु को जॉन्डिस होने की संभावना दोगुनी हो जाती है जिसके उपचार के लिए फोटो थेरेपी करनी पड़ती है। कई शिशुओं को कम उम्र में टाइप-1 डायबिटीज होने का खतरा रहता है। कार्डियोमायोपैथी होने की संभावना रहती है यानी उसके हार्ट के फंक्शन में दिक्कते आ सकती हैं।
- जेस्टेशनल डायबिटीज से होने वाले लांगटर्म प्रभाव में किशोरोवस्था में बच्चों में चाइल्डहुड ओबेसिटी, टाइप 2 डायबिटीज होने और लडकियो को पीसीओडी होने का रिस्क रहता है।
क्या है कारण

इन महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज होने का रिस्क रहता है जिनकी डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री हो और जो बड़ी उम्र में मां बनने जा रही हों, जो महिलाएं मोटापे से ग्रसित हों, पहले हुई प्रेगनेंसी में महिला को जेस्टेशनल डायबिटीज, प्री-डायबिटीज, पीसीओडी की समस्या रही हो, जिनका ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रॉल का लेवल अधिक हो, पहली प्रेगनेंसी में 3 किग्रा से अधिक वजन वाले बच्चे को जन्म दिया हो, जिन्हें अनहैल्दी जीवन शैली और खान-पान की आदत हो,यानी फिजीकल एक्टिविटी न कर आरामपरस्ती की आदत हो या आहार में सेचुरेटिड फैट और एडिड शूगर ज्यादा लेती हों।
कैसे होता है डायग्नोज
रिस्क कैटेगरी में आने वाली महिलाओं की ब्लड शूगर कम से कम तीन बार 75 ग्राम ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट से स्क्रीनिंग की जाती है-गर्भधारण होने पर चेकअप के लिए जाने पर, प्रेगनेंसी के 24-28वें सप्ताह में और 32-34वें सप्ताह में। उनका फास्टिंग ब्लड शूगर 94मिग्रा/डीएल से कम और ग्लूकोज लेने के बाद 120 मिग्रा/डीएल से कम होना चाहिए।
उपचार
माइल्ड जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर महिला मेडिकल न्यूट्रीशनल थेरेपी यानी बैलेंस डाइट और फिजीकल एक्टिविटी से शूगर कंट्रोल कर सकती हैं। वरना रेगुलर इंसुलिन दी जाती है जो डिलीवरी के बाद धीरे-धीरे बंद कर दिया जाता है।
बचाव के लिए क्या करें

- रिस्क कैटेगरी में आने वाली महिलाओं को प्रेगनेंसी प्लानिंग से पहले डॉक्टर को कंसल्ट करना बेहतर है। गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर ब्लड शूगर की जांच करानी जरूरी है और डॉक्टर की हिदायतों को पूरी तरह फोलो करना चाहिए।
- महिलाओं को अपनी जीवन शैली में बदलाव लाकर वजन और शूगर लेवल को कंट्रोल में रखना जरूरी है। खान-पान संयमित और संतुलित होना चाहिए। संतुलित और पौष्टिक भोजन करना जरूरी है। डाइट में साबुत अनाज, मल्टीग्रेन आटा, छिलके वाली दालें, स्प्राउट्स, हरी सब्जियां, हरी पत्तेदार सब्जियां, 100-150 ग्राम फल, नट्स जैसी हाई फाइबरयुक्त और कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट जरूर शामिल करनी चाहिए। मैदा, चीनी जैसी रिफाइंड चीज़ें, वसायुक्त भोजन और हाई कैलोरी वाले खाद्य पदार्थ खाने से परहेज करना चाहिए।
- जहां तक हो सके पूरे दिन एक्टिव रहना चाहिए। एरोबिक एक्सरसाइज, योगा, वॉक कर सकती हैं। खासकर खाना खाने के बाद 15-20 मिनट जरूर टहलना चाहिए।
(डॉ संजय कालरा, डायबिटीज एक्सपर्ट, एंडाक्राइन सोसाइटी ऑफ इंडिया)
