नवजात बच्चे में पीलिया के खतरे को कैसे करें कम, जानिए ये जरूरी बातें: Newborn Jaundice
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Newborn Jaundice: नवजात बच्‍चे जब पैदा होते हैं तो उन्‍हें कई छोटी-छोटी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं घेर लेती हैं। ऐसी ही एक समस्‍या है पीलिया, जिसे जॉन्डिस भी कहा जाता है। बच्‍चे के जन्‍म के बाद आंखे पीली होना, नाखूनों में पीलापन या त्‍वचा का पीला होना पीलिया के सामान्‍य लक्षण माने जाते हैं। प्रत्‍येक 10 में से 6 शिशुओं में पीलिया विकसित होता है, जिसमें गर्भावस्‍था के 37वें सप्‍ताह से पहले पैदा हुए 10 में से 8 बच्‍चों को इस स्थिति का सामना करना पड़ता है। हालांकि हेल्‍थ एक्‍सपर्ट्स का मानना है कि 20 में से केवल 1 बच्‍चे को उपचार की आवश्‍यकता होती है। ये गंभीर समस्‍या नहीं है लेकिन किसी भी प्रकार की लापरवाही बच्‍चे को नुकसान पहुंचा सकती है।  आखिर नवजात शुशिओं को क्यों होता है पी‍लिया और इससे कैसे बचा जा सकता है चलिए जानते हैं इसके बारे में।

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नवजात शिशुओं में पीलिया के कारण

Newborn Jaundice
Causes of jaundice in newborns

नवजात शिशुओं को आमतौर पर फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस होता क्‍योंकि वह एक अडल्‍ट की तुलना में अधिक ब्‍लड सेल्‍स के साथ पैदा होते हैं। ब्‍लड सेल्‍स अधिक समय तक जीवित नहीं रह पातीं और कमजोर होकर टूटने लगती हैं, जिससे बॉडी में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है। जन्‍म के 3-4 दिन में बच्‍चे को ये समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है, जो सामान्‍यतौर पर 2 हफ्ते में ठीक हो जाती है। इसका एक कारण यह है कि जन्‍म के बाद नियमित रूप से स्‍तनपान न कराने से भी बच्‍चे को पीलिया हो सकता है। इसके अलावा इसके लिए कई अनुवांशिक कारण भी जिम्‍मेदार हो सकते हैं।

नवजात शिशु में पीलिया के संकेत

पीलिया का मुख्‍य संकेत है कि बच्‍चे की स्किन नॉर्मल से अधिक पीली नजर आने लगती है। इसकी शुरुआत उसके चेहरे और आंखों से होती है। शरीर में बिलीरुबिन का लेवल बढ़ने से शिशु को अधिक नींद आती है और वो चिड़चिड़ा भी हो सकता है। कई बार डार्क स्किन पर पीलिया की पहचान करना चुनौतीभरा हो सकता है। इसके लिए पेरेंट्स बच्‍चे की स्किन को दबाकर पीलिया का पता लगा सकते हैं।

पीलिया के खतरे को कैसे कम करें

reduce the risk of jaundice
reduce the risk of jaundice

नवजात शिशुओं में पीलिया के खतरे को कम करने के लिए मुख्‍य आधार है बच्‍चे की पर्याप्‍त डाइट। स्‍तनपान करने वाले बच्‍चों को शुरुआती दिनों में प्रतिदिन 8-12 बार दूध पिलाना चाहिए। वहीं फॉर्मूला दूध पीने वाले शिशुओं को आमतौर पर पहले हफ्ते में हर दो घंटे में 30 से 60 मिलीमीटर तक दूध पिलाना चाहिए। इसके अलावा जितना हो सके बच्‍चे को सुबह की धूप जरूर दिखाई जानी चाहिए। पर्याप्‍त मात्रा में विटामिन-डी लेने से पीलिया का असर कम हो सकता है।

पीलिया का ट्रीटमेंट

कई बच्‍चों को जन्‍म के साथ ही पीलिया हो जाता है। उन्‍हें विशेष देखभाल और ट्रीटमेंट की आवश्‍यकता होती है।

– पीलिया होने पर बच्‍चों को थोड़ी-थोड़ी देर में फीड कराना चाहिए। इससे यूरिन के जरिए पीलिया के वायरस बाहर निकल सकते हैं। साथ ही बच्‍चे को कमजोरी महसूस नहीं होगी।

– अस्‍पतालों में बच्‍चे को लाइट थेरेपी दी जाती है, जिसमें बच्‍चे को एक विशेष रेडियो रेज बल्‍ब के नीचे रखा जाता है जो नीले-हरे स्‍पेक्‍ट्रम में प्रकाश उत्‍सर्जित करता है।

– कमजोर बच्‍चे को कई बार ब्‍लड की आवश्‍यकता भी हो सकती है।

– बच्‍चे को सुबह की हल्‍की धूप में कुछ देर के लिए जरूर लिटाएं।