Take Care in Winter: दस्तक देता सर्दी का मौसम अपने साथ लाता है, सुबह-शाम धीरे-धीरे बढ़ती हल्की ठंड, दिन में ह्यूमिडिटी और हवा शुष्क होती जाती है। जो वातावरण में मौजूद जहरीली गैसों, डस्ट पार्टिकल्स, फूलों का परागकणों, पराली के धुएं के कारण प्रदूषित भी हो जाती है। वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस हमारे शरीर में पहुंच कर हमारे इम्यून सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। सर्दी-जुकाम, गले में खराश, डायरिया, डिहाइड्रेशन, वायरल, फ्लू, निमोनिया जैसी संक्रामक बीमारियां देखने को मिलती हैं। डेंगू, स्वाइन फ्लू, चिकनगुनिया जैसी जानलेवा बीमारियां भी बड़ी तादाद में लोगों को अपना शिकार बनाती हैं। जिनसे अस्थमा दमा जैसी सांस संबंधी बीमारियों, डायबिटीज, हृदय रोग, ऑस्टियोपोरोसिस, थाॅयरायड जैसी क्राॅनिक डिजीज के मरीजों को इस दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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सर्दी-जुकाम या फ्लू

वातावरण में मौजूद वायरस से या फिर संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से किसी व्यक्ति को होता है। जैसे राइनोवायरस से वायरल राइनाइटिस इंफेक्शन। आम सर्दी-जुकाम जहां एक सप्ताह में ठीक हो जाता है, वहीं वायरल राइनाइटिस लंबे समय तक रहता है और हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है। अचानक बुखार आना, नाक ब्लाॅक होने से सांस लेने में तकलीफ, नाक से पानी बहना, बलगम में पीलापन होना, गले में खराश, सिर दर्द, बदन दर्द हो सकता है।
वायरल के लिए पेशंट को पैरासिटामोल, एस्पिरीन जैसी दवाइयां दी जा सकती हैं, लेकिन तकलीफ ज्यादा होने पर डाॅक्टर से परामर्श लेना ही बेहतर है। फ्लू या निमोनिया वैक्सीन लगाया जाता है। पर्सनल हाईजीन और स्वच्छता का ध्यान रखने, डिस्पोसेबल नेपकिन से नाक साफ करने, खाना बनाने या खाने से पहले हाथ धोने, प्रोटीन, मिनरल्स से भरपूर डाइट लेने के लिए कहते हैं।
डायरिया
वातावरण में ह्यूमिडिटी होने से इस मौसम में पनपने वाले रोटावायरस और नोरोवायरस खाने.पीने की चीजों को दूषित कर देते हैं। ऐसा भोजन या पानी पीने से पेट में गैस्ट्रोइंटरराइटिस इंफेक्शन यानी डायरिया हो जाता है। मरीज को दिन में 4-5 बार पतले दस्त या उल्टियां आती हैं, डिहाइड्रेशन हो जाता है। पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द, मरोड़ के साथ दस्त, तेज बुखार, टाॅयलेट में खून आना, बहुत कमजोरी होना जैसी समस्याएं होती हैं।
पीड़ित व्यक्ति केा ओआरएस का घोल या नमक-चीनी की शिकंजी लगातार देते रहे। प्रोबाॅयोटिक्स दही लें। उल्टी रोकने के लिए डाॅमपेरिडाॅन और दस्त रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल दवाई दी जाती है। पेट में मरोड़ के लिए मैफटल स्पास दवाई दे। आधा-एक घंटे के गैप में नारियल पानी, नींबू पानी, दाल का पानी के साथ-साथ खिचड़ी, दलिया जैसा हल्का-फुल्का खाना ले सकते हैं। ठंडा पानी पीने, बाहर की आइसक्रीम खाने या बाहर का खाना खाने से बचें। हाइजीन का विशेष ध्यान रखें।
श्वास संबंधी बीमारियां

बदलते मौसम में रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़नेे से अस्थमा या दमा , ब्रोंकाइटिस जैसी श्वास संबंधी क्राॅनिक बीमारियां ज्यादा देखी जाती हैं। कमजोर फेफड़ों वालों या बहुत ज्यादा ध्रूमपान करने वाले व्यक्तियों पर ज्यादा असर होता है। सांस की नली में सूजन होने और सांस की नली में सिकुड़न होने से सांस लेने में तकलीफ होती है। इसे क्राॅनिक एलमेरी डिजीज कहा जाता हैै। बार-बार खांसी आना, सांस लेने में तकलीफ होना, दम फूलना, पसीना आना, बेचैनी होना, सिर भारी होना जैसे लक्षण होते हैं।
अस्थमा के अटैक से बचने के लिए ध्रूमपान और धुएं से बचें। इन्हेलर हमेशा पास में रखें ताकि जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकें। ब्रोंकोडाइलेटर जैसी दवाएं दी जाती हैं जिन्हें इन्हेल किया जाता है।
हृदय रोग
बदलते मौसम में हार्ट पेशंट को सुबह 4-5 बजे के करीब ज्यादा खतरा रहता है। सुबह के समय टेम्परेचर काफी कम होता है जिसका सबसे ज्यादा असर हृदय की कोरोनरी धमनियों या मांसपेशियों पर पड़ता है। धमनियां सिकुड़ कर ब्लाॅक होने लगती हैं जिससे ऑक्सीजन, ब्लड और पोषक तत्वों की सप्लाई में रुकावट आती है। ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए हार्ट पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है जिससे उन्हें चेस्ट पेन और हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ जाता है। एनजाइना कहलाने वाला यह दर्द छाती के अलावा हाथों, कंधों, गर्दन, जबड़ों-कहीं भी हो सकता है। यह भी जरूरी नहीं कि बजुर्गों को किसी तरह का दर्द ही हो। उन्हें सांस लेने में परेशानी हो सकती है, जरूरत से ज्यादा कमजोरी आ सकती है, चक्कर, घबराहट, उल्टी, दिल का जोर-जोर से धड़कना जैसे लक्षण भी हो सकते है।
हृदय रोग के खतरे से बचने के लिए जरूरी है, एक्टिव रहें। नियमित तौर पर रोजाना धूप निकलने पर या शाम के समय 30 मिनट वाॅक करें। घर पर योगा या हल्का-फुल्का व्यायाम कर सकते हैंैं। समय-समय पर अपना ब्लड प्रेशर चेक कराएं। सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 140 मिमी से और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर 90 मिमी से कम होना चाहिए। नियमित रूप से अपना कोलेस्ट्राॅल चेक कराएं जो 200 मिग्रा से अधिक नहीं होना चाहिए। नियमित रूप से मेडिसिन लेते रहें। फाइबर से भरपूर संतुलित और पौष्टिक भोजन लें। ऑयली भोजन खाने से बचें। कच्चे फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज, सूखे मेवे और ताजी जड़ी-बूटियों को अपने भाोजन में शामिल करें।
जोड़ों का दर्द या ऑस्टियो आर्थराइटिस

इस मौसम में अक्सर बाहर वाॅक पर जाना कम हो जाता है जिसका असर पड़ता है हमारे जोडों पर। वो स्टिफ हो जाते हैं और उनमें दर्द रहने लगता है। जिसकी वजह से व्यक्ति मूवमेंट नहीं कर पाते। इससे उनके शरीर के जोड़ और उनके आसपास की मांसपेशियों का कमजोर पड़ जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है।
जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए पेनकिलर मेडिसिन दी जाती हैं। दर्द और सूजन कम करने के लिए सिंकाई की जाती है। मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए फिजियोथेरेपी करने की सलाह दी जाती है। नियमित रूप से करने पर ही आराम मिलता है।
(डाॅ जे रावत, फिजीशियन, दिल्ली)
