Movie Review: अनुपम खेर नीना गुप्ता की फिल्म ‘शिव शास्त्री बल्बोआ’ में दोनों कलाकारों ने उम्र महज एक नम्बर फैक्टर है। इस बात को साबित कर दिया है। फिल्म की कहानी परिवार के उन सदस्यों के बारे में बात करती है जो घर का हिस्सा तो होते हैं लेकिन उनकी चाहतों और छोटी छोटी बातों पर ध्यान देने का वक्त लोगों के पास कम होता है। जिंदगी के इसी दौर के इर्द गिर्द डायरेक्टर अजयन वेणुगोपालन ने कहानी गढ़ी है।
जीवन के दुखों को खशियों से जीतने की कहानी
‘सवाल ये नहीं है कि तुम कितनी जोर से गिरते हो, सवाल ये है कि तुम गिरकर उठते हो या नहीं।’ फिल्म के इस डायलॉग में जिंदगी के हर मोड पर आगे बढने और जीने का जज्बा शामिल है। फिल्म की कहानी परिवार के बुजुर्गों और उनकी चाहतों और जीवन के प्रति नजरिए पर आधारित है। खासतौर पर भारत से विदेश में अपने बच्चों के पास जाकर रहने वाले पेरेंट्स जो वहां के संस्कृति और जीवनशैली से तालमेल बिठाने की जद्दोजहदऔर परिवार के साथ होते हुए भी अकेलापन महसूस करते हैं। वैसे ऐसा पहली बार नहीं है कि इस तरह की कहानी दर्शकों के सामने आई हो। लेकिन इसे एक नए और अलग अंदाज में कहने का काम अजयन वेणुगोपालन ने किया है।
फिल्म की कहानी अनुपम खेर और नीना गुप्ता के किरदारों के आसा पासा घूमती है। अनुपम खेर जो खुद बॉकसर नहीं बन पाए लेकिन उन्होंने कई बॉक्सरों को ट्रेन किया। रिटायर होने के बाद अपने बेटे और पोते के साथ अमेरिका जाते हैं। अमेरिका में उनकी मुलाकात नीना गुप्ता से होती है। अपनी हमउम्र एक साथी के साथ उन्हें वहां अच्छा लगने लगता है। नीना वहां कई सालों से रह रही हैं लेकिन वे वहां खुश नहीं हैं। नीना भारत वापस जाना चाहती हैं। लेकिन वह अमेरिका में फंस चुकी हैं। अपने नए साथी के जीवन के दुख और उसकी ख्वाहिश को जानने के बाद अनुपम उसे पूरा करने के लिए उनका साथ देते हैं। अनुपम उन्हें देश वापस भेजने का वादा करते हैं। यहीं से शुरू होती हैं दोनों की अलग कहानी। वे अपने घरों से बिन बताए निकल लेते हैं। दोनो भारत वापस आने के लिए कई मुश्किलों का सामना करते हैं। यही नहीं नीना गुप्ता का पासपोर्ट भी चोरी हो जाता है। उसके बाद भी वे हार नहीं मानते। जिंदगी जीने और अपने लिए लडने के आडे उम्र नहीं आ सकती। अस जज्बे को फिल्म में देख जा सकता है।
कैसी रही परफॉर्मेंस
जब कलाकार इतने मंझे हुए हों तो एक्टिंग कमाल की होना लाजमी है। अनुपम खेर ने हमेशा की तरह ही अपने इस किरदार को भी बखूबी निभाया है। वहीं नीना गुप्ता ने भी एक बार फिर अपनी अदाकारी और एनर्जी से दर्शकों का दिल जीत लिया। काफी समय बाद पर्दे पर नजर आए जुगल हंसराज और नरगिस फखरी भी उनके किरदारों की ममांग के अनुसार अमेरिकन एक्सेंट में अच्छे लगे हैं। शारिब हाशमी कि उम्दा अदाकारी फिल्म में देखने को मिली है। बात करें फिल्म के डायरेक्शन की तो वो अजयन वेणुगोपलन ने कहानी के साथ न्याय किया है। हालांकि कहीं कहीं फिल्म में प्लॉट ढीला नजर आया है। फिर भी फिल्म कुला मिलाकर अच्छी बनी है। अजयन ने भले ही बॉक्सर के इर्द गिर्द फिल्म बनाई है लेकिन बॉक्सर की इस फिल्म को बिना एक्शन के अलग अंदाज में बखूबी पेश किया है। कुल मिलाकर इस फिल्म में इसकी कहानी ही मेन हीरो साबित हुई है।
क्यों देंखें
परिवार और उससे जुड़ी बातें भारतीय लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती ही हैं। परिवार में जहां हम आज ज्यादातर एकल परिवार के रूप में रहते हैं ऐसे में हमारे साथ बडों के आने पर होने वाले बदलावों और उनके जीवन की परेशानियों को फिल्म के जरिए दर्शाया गया है। ऐसे में परिवार की जद्दोजहद को ‘शिव शास्त्री बल्बोआ’ के जरिए समझने और ऐसी समस्याओं से रूबरू होने का मौका है। इस पारिवारिक फिल्म का परिवार के साथ एक बार तो देखना बनाता ही है।
