विवेक अग्निहोत्री की डायरेक्ट मूवी “द कश्मीर फाइल्स” इन दिनों काफी चर्चा में है। फिल्म ९० के दशक की कहानी को कहती है जहां रातों-रात अपने घर-बार को छोड़ Kashmiri Pandit को विस्थापित होना पड़ा था। उन कश्मीरी पंडितों की कहानी को हम इस मूवी के जरिए समझ और देख सकते हैं।
अपना वतन कश्मीर

इस बड़ी सी दुनिया में हमारी एक छोटी-सी दुनिया होती है। धरती पर स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में भी कश्मीरी पंडितों की भी ऐसी एक खूबसूरत दुनिया थी। जिसे वे अपना वतन कश्मीर कहते थे। लेकिन अफसोस कि कुछ ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए था। उनका वतन, उनकी जमींन उनसे छीन ली गई। इस टीस को कश्मीरी पंडित सालों से अपने दिल में लिए बैठे हैं। इस दर्द को पर्दे पर विवेक अग्निहोत्री ने उतारा है। अक्सर फिल्में रिलीज होने के बाद चर्चा का विषय बनती हैं लेकिन यह वो फिल्म है जो अपने विषय की वजह से विवादों में है। एक ओर यह भी आक्षेप लग रहे हैं कि यह एक विशेष संप्रदाय के खिलाफ एक प्रोपेगंडा है। वहीं पिछले दिनों यह भी विवाद का विषय रहा कि कपिल शर्मा ने अपने शो में इस फिल्म का प्रमोशन नहीं होने दिया। इसके अलावा तमाम और भी अड़चनों के बावजूद बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे मंजूरी दे दी है। ११ मार्च को फिल्म पर्दे पर आ गई है।
क्या बोले कपिल

कपिल ने अपने ट्वीट के जरिए बताया है कि हमने मना नहीं किया। गौरतलब है कि जब विवेक की ओर से बताया गया था कि कपिल शर्मा के शो में उन्हें इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि उनके फिल्म में बड़े स्टार नहीं। इस बयान के बाद बहुत से लोग कपिल शर्मा के शो को बायकाट करने की बात कर रहे थे। लेकिन अब कपिल ने अपना बयान देकर इस मामले को शांत किया है।
क्या है कास्ट
फिल्म का डायरेक्शन और लेखन विवेक अग्निहोत्री ने किया है। फिल्म की कास्ट की बात करें तो इसमें मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, पल्लवी जोशी, दर्शन कुमार, चिन्मय मंडेलकर, आदि हैं।

उस ऐनक से भी देखें
विवेक अग्निहोत्री की पत्नी और फिल्म में प्रमुख रोल निभा रही पल्लवी जोशी का कहना है कि फिल्म किसी के खिलाफ या समर्थन में नहीं बन रही। जो सच है वह बयां किया जा रहा है। हमने हमेशा कश्मीर को एक राजनैतिक चश्में से देखा है। श्रीनगर, गुलमर्ग के अलावा भी एक कश्मीर उन छोटे शहरों और गांवों में सांस लेता है। कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ कैसे हुआ इस पर कभी बहुत चर्चा नहीं हुई है। फिल्म के जरिए आप उस कश्मरी को भी देख पाएंगे। उस तकलीफ को जान पाएंगे कि जब वतन छूटता है तो कैसा लगता है।
१९४७ का बंटवारा
हिंदुस्तान और पाकिस्तान में जब १९४७ का बंटवारा हुआ था। इसे सदी की एक मानवीय त्रासदी में गिना जाता है। बहुत लोगों के यहां घर बने, बिगड़े लेकिन बंटवारे के बाद चाहे कैसे भी अमन हो ही गया। लेकिन कश्मीर वह ऐसी जगह है जहां १९४७ की तकलीफ खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। पल्लवी कहती हैं दुनिया को यही बताया गया कि कश्मीर में चूंकि आतंकवाद जगह पा रहा था ऐसे में पंडित खुद व खुद ही चले गए। यह आधा सच है वह बेशक गए लेकिन खुद की मर्जी से नहीं उन्हें जाना पड़ा। तलवार की नोंक पर, जबरदस्ती।
रो पड़े कश्मीरी पंडित

फिल्म भले ही ११ मार्च को रिलीज हो रही है लेकिन इसकी स्पेशल स्क्रीनिंग कुछ दिन पहले कश्मीरी पंडितों के लिए रखी गई थी। फिल्म को देखकर उनके आंसू और उनकी भावनाएं कुछ अलग ही थीं। कुछ लोग विवेक के कंधों पर सिर रखकर रोए। विवके का कहना है यह आंसू बता रहे थे यह महज एक फिल्म नहीं उन कश्मरी पंडितों का दर्द है। इसे हम लोगों तक ला पाए। यह एक मिशन के पूरा होने जैसा है। यह ३२ साल की तकलीफ है। एक मानवीय त्रासदी है। इन्हें आज भी अपना वतन बहुत याद आता है। वह पंडित जो अब जम्मू में रह रहे हैं उनकी तकलीफ भी कुछ कम नहीं और जो लोग दुनिया के दूसरे कोनों में चले गए उनकी पीड़़ा अलग। अपने-अपने हिस्से का दर्द है। उम्मीद है कि लोग इस फिल्म को हिंदू-मुस्लिम से ऊपर उठकर मानवता के चश्में से देखें।
