Dada dadi ki kahani : एक शहर की एक छोटी-सी गली के आखिर में एक घर था। उसमें रहते थे शैतानराम। अपने नाम की तरह ही उनके काम भी थे। हर समय सबको सताने में उन्हें बड़ा मज़ा आता था। उनके घर के लोग उन्हें समझाते थे। लेकिन आदत से मजबूर शैतानराम समझते ही नहीं थे। वैसे उनका असली नाम तो ‘सुंदर’ था। लेकिन अपनी आदतों के कारण उनका नाम शैतानराम ही पड़ गया था।
एक बार की बात है, उनके घर के सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे। शैतानराम घर में अकेले थे।
गली के एक घर में एक मुर्गा-मुर्गी और उनके कुछ दोस्त रहते थे। शैतानराम उन्हें अक्सर परेशान किया करते थे। कभी मुर्गी को उठाकर कमरे में बंद कर देते थे तो कभी मुर्गे की गर्दन में रस्सी बाँधकर उसे घुमाते थे।
मुर्गा-मुर्गी ने सोचा कि शैतानराम को सबक सिखाया जाए। उन्होंने अपने कुछ साथियों से बात की। सब उनकी मदद करने को तैयार हो गए।
तो मुर्गा-मुर्गी ने अपने कुछ दोस्तों को साथ लिया-वे बिल्ली, चूहा, अंडा, कैंची, सुई और गुलदस्ता को लेकर शैतानराम के घर पहुंचे।
वे सब धीरे-से घर के अंदर चले गए। घर में कोई भी नहीं था। शायद शैतानराम कहीं गए हुए थे।
‘हम लोग शैतानराम का इंतज़ार करेंगे।’ सब एक साथ बोले। बिल्ली उनकी रसोई में जाकर छिप गई। चूहा उनके हाथ-मुँह धोनेवाले . नल के ऊपर बैठ गया। अंडा उनकी तौलिया में लेट गया। कैंची सोफे के ऊपर आराम करने लगी। सुई ने उनके तकिए में अपने लिए जगह बना ली। गुलदस्ता दरवाज़े के ऊपर जाकर बैठ गया। मुर्गा और मुर्गी दरवाजे के ठीक बाहर खड़े हो गए।
जैसे ही शैतानराम दूर से आते हुए दिखाई दिए, मुर्गा कुकहूं- करता हुआ घर के अंदर की तरफ़ भागा। उसकी आवाज़ सुनकर उसके सभी साथी सावधान हो गए। मुर्गी भागी मुर्गे के पीछे और उनके पीछे भागे शैतानराम। मुर्गा दौड़कर रसोई की ओर गया। शैतानराम उसके पीछे-पीछे जैसे ही रसोई में पहुँचे अँधेरे में बिल्ली उनके ऊपर कूदी। वे घबराकर आटे के डिब्बे में गिर पड़े।
मुँह धोने के लिए वे नल की ओर भागे। आँखों में आटा चला गया था, उनको ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा था। जैसे ही नल खोलने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ाया, चूहे ने ज़ोर से उनकी उँगली में काट लिया। दर्द से चीखते हुए और अपनी आँखें साफ़ करते हुए वे तौलिया ढूँढने लगे। और जैसे ही उन्होंने तौलिए से मुँह पोंछा, अंडा उनके पूरे मुँह पर घूम गया। वे थककर सोफे पर जाकर बैठ गए। पर यह क्या, वहाँ तो कैंची पहले से ही उनका इंतज़ार कर रही थी। ज़ोर से चुभी तो शैतानराम उछल गए और सीधे बिस्तर पर गिरे। उनके तकिए में लगी हुई सुई उनके गाल में चुभी।
शैतानराम की हालत खराब थी। वे घबराकर दरवाज़े की ओर भागे। जैसे ही उन्होंने दरवाज़ा खोला, पीतल का गुलदस्ता टक से उनके सिर पर गिरा। शैतानराम बेहोश होकर वहीं गिर पड़े।
जब उन्हें होश आया तो उनका पूरा घर बिखरा हुआ पड़ा था। आज उन्हें समझ में आया था कि किसी को परेशान करने पर उसे कैसा लगता होगा।
उस दिन के बाद शैतानराम ने किसी को कभी परेशान नहीं किया। धीरे-धीरे सब उनकी शैतानियाँ भूलने लगे।
आज भी वे उसी शहर की उसी गली में रहते हैं। लेकिन अब उन्हें सब ‘सुंदर’ कहकर ही पुकारते हैं, शैतानराम नहीं।
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