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Hindi Kahaniyan: उर्मिला जी ने पति को प्यार से देखा, ‘आप निर्देशक थे तो हीरो कैसे पीछे हट जाता, हीरोइन के बिना?दोनों की आंखों में बीता हुआ समय आकर ठहर गया था।

उर्मिला जी चहकती हुई अपने पति आनंद के पास आई। आनंद उस समय ऑफिस में अकेले ही बैठे थे, किसी केस के कागज उलट-पलट रहे थे। ‘आज सुधीर और सुनीता का फोन आया था। उर्मिला जी ने बिना किसी भूमिका के कहा। आनंद ने उनकी ओर शरारत भरी मुस्कान से देखकर पूछा, ‘फिर से कोई पटकथा लिखवानी है उन्हें? उर्मिला जी को पति का यह मजाक अच्छा नहीं लगा लेकिन फिर भी उन्होंने बात को बहस में नही बदला। ‘नहीं, ऐसा नहीं है। दरअसल उनकी शादी को पच्चीस वर्ष पूरे होने वाले हैं तो एक सहभोज रख रहे हैं। बस चुने हुए लोगों को ही बुलाया है। दो दिन बाद ही है। आपको भी साथ में चलना चाहिए इसलिए मैं फोन रखकर सीधे आपके पास ही आई हूं। प्लीज, मना मत करना।

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आनंद तब तक कागज वापिस फाइल में रख चुके थे। ‘जब तुम निश्चय कर चुकी हो तो जरूर चलेंगे। लेकिन एक बात तो बताओ, तुम्हारी भाभी भी आ रही हैं या नहीं? उन्होंने कुर्सी से उठते हुए उर्मिला जी से प्रश्न किया। उर्मिला जी बहुत उत्साह से बोली, ‘अरे वही तो। इसलिए पार्टी हो रही है। भाभी ने अब गुस्सा छोड़ दिया है। आनंद आश्चर्य से बोले, ‘वाह। तब तो पार्टी नहीं, जश्न होना चाहिए। जरूर जाएंगे। जिस फिल्म की पटकथा हमने लिखी थी उसकी सिल्वर जुबली पार्टी में जाना ही पड़ेगा। उर्मिला जी खुशी-खुशी अपने काम में लग गई और आनंद नहाने चले गए।
कचहरी जाने का समय हो गया था। आनंद शहर के नामी वकील थे। घर पर भी उन्होंने अपना एक ऑफिस बना रखा था। आनंद के कचहरी चले जाने के बाद उर्मिला जी जाने की तैयारी करने लगी। उन्हें पच्चीस साल पहले का वो समय याद आ रहा था जब उनके भतीजे सुधीर की शादी हुई थी। सुधीर की सरकारी नौकरी
लगते ही उनके भाई भाभी ने एक बहुत ही सुंदर और सुशील लड़की से उसकी शादी कर दी थी। लड़की के माता-पिता नहीं थे बस दो बड़े भाई थे। दोनों भाइयों ने अपनी लाडली बहन की बहुत मन से शादी की थी। शादी के बाद गौना नहीं किया गया था।

सुधीर चाहता था कि उसकी नौकरी पक्की होने के बाद ही गौना किया जाए ताकि वह अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभा सके। शादी के साल भर बाद गौना होना तय हुआ। सुधीर की पत्नी सुनीता अपने मायके चली गई। कुछ दिनों बाद किसी रिश्तेदार ने बताया कि सुनीता पागल हो गई है। उर्मिला जी के भाई ने सुनीता के भाई को घर पर बुलाकर इसके बारे में पूछा। उसने इतना ही बताया कि सुनीता को शादी के बाद लंबा बुखार आया था जिससे वह उबरने की कोशिश कर रही है और धीरे-धीरे ठीक हो रही है। उर्मिला जी की भाभी इस बात को मानने को तैयार नहीं थी। पता नहीं किसने उनके दिमाग में बैठा दिया कि अभी बस फेरे ही हुए हैं, लड़की वालों का सामान और शादी का खर्च वापिस करके सुधीर का पीछा एक पागल लड़की से छुड़ा लेना चाहिए। भाभी किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं थी और उन्होंने सुधीर को बताए बिना ही सुनीता के भाई को कहलवा भेजा कि रिश्ता तोड़ रहे हैं। एक पागल लड़की के साथ अपने बेटे की जिंदगी बर्बाद नहीं कर सकते हैं। एक शानदार शादी कुछ ही दिनों के बाद टूटने के कगार पर पहुंच गई।

शाम हो गई थी। आनंद कचहरी से वापिस आ गए थे। उन्होंने आते ही पूछा, ‘गुड्डू और दीपू को भी बुलाया है क्या? उर्मिला जी ने हंसकर जवाब दिया, ‘जी, बुलाया है। वो दोनों भी तो आपकी पटकथा के किरदार थे। फिर बुलाते कैसे नहीं? आनंद भी हंस पड़े, ‘क्या समय था वो भी।
लेकिन सुधीर की सुनीता से ऐसी लगन लगी थी कि पीछे हटा ही नहीं था। उर्मिला जी ने पति को प्यार से देखा, ‘आप निर्देशक थे तो हीरो कैसे पीछे हट जाता, हीरोइन के बिना? दोनों की आंखों में बीता हुआ समय आकर ठहर गया था।

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गुड्डू उर्मिला जी का बेटा और दीपू उसकी मंगेतर। दीपू के घर वालों से आनंद ने बात की। उन्हें सब समझा दिया। इतनी सुंदर और पढ़ी लिखी लड़की का रिश्ता जब सुधीर के लिए आया तो भाभी की खुशी का ठिकाना नहीं था। लेकिन सुधीर को जैसे ही पता चला वह गुस्से में फूफाजी के पास ही आया सबसे पहले। ‘फूफाजी
आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मम्मी को समझाने के बजाए आपने तो दूसरी लड़की का रिश्ता भेज दिया। लेकिन आप बुरे बन जाओगे दोनों तरफ से। मैं सुनीता के सिवा किसी दूसरी लड़की से शादी नहीं करूंगा। अच्छे से अच्छे डॉक्टर से उसका इलाज कराऊंगा। उॢमला जी सब जानती थी लेकिन पति ने बताने से मना किया था इसलिए चुप रही। सुधीर ने सीधे बुआ से पूछा, ‘बुआ सुनीता को भी आपने ही पसंद किया था ना? बीमार होना क्या अपने हाथ में है? क्या इलाज से लोग ठीक नहीं होते हैं? मेरी तो आप लोग दूसरी शादी कर दोगे लेकिन सुनीता का क्या होगा? आनंद ने सुधीर के दिल को और झटका दिया।

‘उससे हमें क्या? हो सकता है लड़की पहले से ही बीमार हो और उसके भाइयों ने छुपाया हो। सुधीर गुस्से में खड़ा हो गया। ‘फूफाजी आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मैं सुनीता से शादी नहीं तोडूंगा। आप कुछ भी कर लें। बेहतर होगा आप गुड्डू की शादी कर दें उस लड़की से। आनंद भी यही चाहते थे लेकिन भाभी को कैसे समझाया जाए यही समझ नहीं पा रहे थे। इसलिए सुधीर और सुनीता के मिलन की पटकथा लिखी गई। भाभी को दीपू से मिलवा दिया और समझा दिया कि सुधीर की नौकरी पक्की होने तक इस बारे में किसी से चर्चा नहीं करें। उधर सुधीर ने शहर के सबसे अच्छे मनोवैज्ञानिक से सुनीता का इलाज शुरू करवा दिया। कुछ महीनों में ही सुनीता एकदम ठीक हो गई। लेकिन फिल्म का क्लाइमेक्स अभी बाकी था।

जिस दिन सुधीर और सुनीता का गौना तय हुआ था उसी दिन परिवार के लोगों की उपस्थिति में दीपू से उसकी शादी रखी गई। आशा के अनुरूप सुधीर भड़क गया और उसने शादी से मना कर दिया। उर्मिला जी ने उसे अलग बुलाकर सब समझाया। एक बार फिर से सुनीता के साथ उसने फेरे लिए। भाभी को फेरों के समय उर्मिला जी ने बाहर नहीं आने दिया। सुनीता फिर से ब्याह कर ससुराल आ गई। भाभी को जैसे ही पता लगा वो बिफर पड़ी। सारा गुस्सा फूटा उर्मिला जी और आनंद के ऊपर। सुधीर को अपनी अलग गृहस्थी बसाने का फरमान जारी किया गया। गुड्डू और दीपू की शादी में भी भाभी शामिल नहीं हुई। सुधीर के घर पर भी कभी नहीं गई। सुधीर के घर पहुंचे तो बाकी लोग पहले ही आ चुके थे। गुड्डू और दीपू भी।

सुनीता के दोनों भाई और उनका परिवार। भाभी और भैया भी। उर्मिला जी देखकर हैरान थी कि भाभी खुशी-खुशी मेहमानों का स्वागत कर रही थी। सुनीता पच्चीस साल बाद भी किसी नई दुल्हन से कम नहीं दिख रही थी। भाभी ने उर्मिला जी को देखते ही गले से लगा लिया। ‘यह सब वैभव, खुशी आपके और आनंद भाई साहेब के कारण नसीब हुई है दीदी। सुनीता ने मेरे सुधीर और दोनों बच्चों को इस तरह संभाला है कि मेरा सिर ऊंचा कर रखा है। मैं तो स्वार्थी हो गई थी लेकिन आप दोनों ने सही निर्णय लिया और मेरा घर खुशियों से भर दिया। हो सके तो मेरे व्यवहार के लिए मुझे माफ कर देना।

उर्मिला जी की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। ‘बस करो भाभी। सुधीर मेरा भी बेटा है और दीपू आपकी भी बहु है। निर्णय तो सुधीर का ही था। हमने तो बस उसका साथ दिया था। सुनीता और सुधीर ने आकर दोनों के पैर छुए तो दोनों वर्तमान में लौट आई।

“आनंद के कचहरी चले जाने के बाद उर्मिला जी जाने की तैयारी करने लगी। उन्हें पच्चीस साल पहले का वो समय याद आ रहा था जब उनके भतीजे सुधीर की शादी हुई थी। सुधीर की सरकारी नौकरी लगते ही उनके भाई भाभी ने एक बहुत ही सुंदर और सुशील लड़की से उसकी शादी कर दी थी। लड़की के माता-पिता नहीं थे बस दो बड़े भाई थे। दोनों भाइयों ने अपनी लाडली बहन की बहुत मन से शादी की थी। शादी के बाद गौना नहीं किया गया था।”