Grehlakshmi Ki Kahani: ‘ये तुम्हारा आखिरी फैसला है? अमित ने पूछा।
‘हां, मैं नौकरी छोड़ना चाहती हूं। सरला ने बिना लागलपेट के बोला।
‘सोच लो पच्चीस लाख का पैकेज है। दो साल में 40 लाख हो जाएगा, अमित ने लालच दिया।
‘पैसा-पैसा-पैसा। आपको सिर्फ पैसा सूझता है। अपने बेटे की कोई फिक्र नहीं? सरला बिफरी।
‘बेटे को क्या हुआ है? अमित ऐसे मासूमियत से बोला मानो कुछ जानता ही न हो।
‘क्या नहीं हुआ। देखते नहीं कितना दुबला-पतला हो गया है?
‘हर मां को अपना बेटा कमजोर दिखता है।
‘आपको नहीं दिखता। सरला ने तंज कसा।
‘पांच साल के बच्चे ऐसे ही दिखते हैं। उसके बाद सब ठीक हो जाएगा।
‘मैं पांच साल रूकने वाली नहीं। सरला ने साफ कहा। वह कहती रही, ‘आपको अपने बेटे पर जरा भी तरस नहीं आता? रोज बेटे को क्रैच में छोड़कर ऑफिस जाती हूं। शाम सात बजे ऑफिस से लौटती हूं तब जाके उसके दर्शन होते हैं। कितना रोता है जब मैं उसे छोड़कर ऑफिस जाती हूं। उस पर उसका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन खराब होता जा रहा है। पता नहीं क्रैच वाले कैसे बच्चे को रखते हैं? सरला का मन भीग गया।
‘सबके बच्चे वहीं पल रहे हैं। उन्हे तो कोई शिकायत नहीं?
‘सबका मैंने ठेका नहीं ले रखा है। मैं अपने बच्चे को जानती हूं। उसका स्वास्थ्य गिर रहा है। उसे मां की जरूरत है।
‘डेढ़ करोड़ का फ्लैट लिया है, उसकी किश्त हम दोनो मिलकर भरते हैं। नौकरी छोड़ दोगी तो सारा बोझ मेरे कंघे पर आ जाएगा। कैसे मैनेज करूंगा? अमित लाचार था।
‘दस साल और बढ़ जाएगा किश्त का प्रीमियम। मगर आज बेटे को समय नहीं दिया तो सारी जिंदगी पछताना पड़ेगा। सरला अमित की ही तरह सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी। कई रिश्ते नकारने के बाद अमित ने सरला को जीवनसंगिनी बनाने का फैसला लिया। सिर्फ इसलिए कि उसका अपना करियर है। समान करियर होने के नाते दोनों को सहूलियत होगी। दोनों मिलकर कमाएंगे तो वह हर ख्वाहिशें पूरी कर सकेंगे जिसके लिए उन्होनें दिन-रात मेहनत करके पढ़ाई की। बच्चे की परिवरिश कैसे होगी इस पर किसी ने नहीं सोचा। तब की तब देखी जाएगी। अमित ने शादी कर ली। शादी के चार साल अच्छे से कटे। दोनों के ऑफिस एक ही शहर में था। दोनों ने एक फ्लैट ले लिया। साथ में कार भी। सब कुछ बैंक से फाइनेंस कराकर लिया।
आजकल के युवाओं में धैर्य का अभाव है। वे सब कुछ तुरंत पाना चाहते हैं। भोगविलास की सुविधाएं जुटा लेने के बाद बच्चे के बारे में सोचते हैं, शादी के छ: साल गुजरने के बाद सरला ने परिवार बढ़ाने की सोची। वह 32 की चल रही थी। वह बच्चे को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती थी।
6 महीने तक तो उसे ऑफिस से छुट्टी मिल गयी। उसके बाद कुछ दिन उसके सास-ससुर ने संभाला। फिर अपनी मां को बुला लिया। चंदन डेढ़ साल का हुआ तो उसे उसकी चिंता हुई। सास-ससुर, मां सब अपने-अपने घरों को लौट गए। किसी ने राय दी तो उसे एक क्रैच में छोड़कर जाने लगी। चंदन बड़ी मुश्किल से सरला का आंचल छोड़ता। दूर तक उसके रोने की आवाज सुनाई देती तो उसका दिल डूबने लगता।
किसी तरह मन मानकर वह काम पर जाती। धीरे-धीरे उसने खुद को मना लिया। मगर चंदन को कैसे मनाएं? वह तो अबोध था। चंदन को मां की जरूरत थी। वह हर दिन उसे रोता हुआ छोड़कर विदा होती। उसका दिल कचोटता। 6 महीने क्रैच में गुजारने के बाद सरला ने महसूस किया कि चंदन का जो ग्रोथ होना चाहिए था वह नहीं हो रहा था। उसने संचालिका से शिकायत की तो कहने लगी वह हर संभव बच्चे की देखभाल करती है। खानपान से लेकर सोने के बिस्तर तक। आया सीने से लगाकर बच्चों को सुलाती है। जब बच्चा सो जाता है तब वे बच्चों को छोड़ती है।
‘फिर क्यों नहीं मेरे बच्चे की तंदुरूस्ती बन रही? वह हर वक्त रोता रहता है सरला को रंज हुआ।
‘मैडम, जैसा आप सोच रही हैं वैसा नहीं है। हर बच्चे को मां जैसा ही प्यार-दुलार मिलता है। सफाई देने के बाद भी सरला का मन नहीं माना। उसे लगा कि आदमी धन-दौलत लेकर करेगा क्या जब बच्चे की सही परवरिश न हो पाये। बच्चे की परवरिश मां ही कर सकती है। काफी समझाने-बुझाने के बाद भी जब सरला अपने फैसले से डिगी नहीं तब अमित ने एक रास्ता सुझाया।
‘क्यों न मम्मी-पापा को हमेशा के लिए यहीं बुला लिया जाए।
‘यदि ऐसा होता है तो मैं नौकरी कर सकती हूं। सरला को विश्वास था कि दादा-दादी के संरक्षण में चंदन का सही विकास हो पायेगा। वैसे भी बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी से काफी लगाव होता है। अमित किसी भी सूरत में सरला की नौकरी नहीं छुड़ाना चाहता था। शादी की उसकी थी कि लड़की नौकरीशुदा होनी चाहिए। जो उसे सरला के रूप में मिली। अमित ने अपनी मां को फोन लगाया।
‘मम्मी, आप चाहेगी तो मेरी समस्या का समाधान हो जाएगा।
‘बेटा, जब तेरे पापा तैयार होंगे तब न, मम्मी बोली।
‘पापा को आप समझाइये कि बेटा-बहू से बढ़कर कोई नहीं है। अमित ने भावनात्मक दांव खेला। मां ने किसी तरह का आश्वासन नहीं दिया। बस इतना कह पायी कि पापा से बात करूंगी।
‘उससे कह दो कि उसका बेटा है। वही संभाले। हम कोई झंझट नहीं चाहते। पापा ने दो टूक सुना दी।
‘इसमें झंझट की क्या बात है। जैसे लखनऊ में है वैसे बैंगलौर में रहेंगे मां बोली।
‘यहां मेरी जिंदगी है जैसे चाहे वैसे रहूं। बेटा बहू के साथ बंधकर रहना पड़ेगा। जो मैं नहीं चाहता।
‘एक न एक दिन वहां जाना ही पड़ेगा मां बोली।
‘तब की तब देखी जाएगी। अभी क्यों अपने पैरो में जंजीर डालें। सारी जिंदगी तो इन्हीं लोगों के लिए जीया। अब जब रिटायर होकर कुछ साल सुकून से जीने को मिला तो पोता-पोती संभालने बेटा बहू के पास चले जाएं? यानि मरते दम तक परिवार ही संभालते रहें पापा तिक्त मन से बोले।
‘बेटा बहू के सुख में ही हमारा सुख है मां ने आगे कहा।
‘तुम चाहो तो जा सकती हो मगर मैं जाने से रहा। फ्लैट की जिंदगी कोई जिंदगी है। एक कमरे में बेगानो की तरह पड़े रहो। न कोई बोलने वाला न किसी से मिलना-जुलना।
‘अपना पोता रहेगा न। उसी के साथ समय कट जाएगा। मां के लाख तर्क के बावजूद पिता का मन नहीं पिघला। बेहद निराश मन से मम्मी ने अमित से पापा के फैसले से अवगत करा दिया।
‘मम्मी, आप ही चले आओ अमित बोला।
‘कैसी बात कर रहे हो। इन्हे अकेला छोड़कर चली आऊं? इन्हे संभालेगा कौन?
‘भले ही हम बर्बाद हो जाएं? अमित उखड़ा।
‘मैं कुछ नहीं कहूंगी। तुम्हें जो फैसला लेना हो लो। गुस्से में अमित ने फोन काट दिया। उसे अपने मां-बाप से ऐसी उम्मीद न थी। उसे अपने मां-बाप खुदगर्ज लगे।
अमित का लटका मुंह देखकर सरला समझ गयी कि बात नहीं बनी। काफी माथापच्ची के बाद अमित ने दूसरा रास्ता सुझाया।
‘क्यों न तुम्हारी मां को बुला लें।अमित को यह सबसे आसान लगा। बेटी से मां को अतिश्य लगाव होता है। अगर सरला अपनी मां से भावुक अपील करे तो वे बेटी के आग्रह को ठुकरा न सकेंगी।
‘मां को क्यों बुलाऊं? जब तुम्हारी मां नहीं आ सकती तो वे क्यों भला आयेंगी? सरला फट पड़ी।
‘जैसे बनारस वैसे बैंगलोर। उन्हें यहां कोई तकलीफ नहीं होगी।
‘अमित, बेशर्मी कोई तुमसे सीखे। तुम लड़के वालों की यही खामी है। हर तरीके से लड़की पक्ष को ही भावनात्मक ब्लैकमेल करते हो।सरला ने तेवर कड़े कर लिए।
‘इसमें ब्लैकमेल की क्या बात हो गयी?
‘क्यों नहीं है। मेरी मां का अपना परिवार नहीं है? वे क्यों अपने बेटे-बहू का घर छोड़कर बेटी का घर संभालने आयेंगी?
‘उन्हे कौन-सा पति की सेवा करनी है?
‘तमीज से बात करो सरला बिफरी। ‘मेरे पिता नहीं रहे इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारे घर नौकरानी बनकर खटे।
‘नाती को संभाल लेंगी तो क्या नौकरानी बन जाएंगी?
‘नौकरानी ही समझ रहे हो। वर्ना तुम्हारी मां नहीं आ जाती? वे सिर्फ इसलिए नहीं आ रही हैं कि यहां उनको खटना होगा। दिनभर पोते की चैकसी रखनी होगी। जो वे करना नहीं चाहतीं।
कोई हल निकलता न देखकर अमित ने दूसरा रास्ता निकाला।
‘क्यों न एक फुलटाइम आया रख लेते हैं। जब तक हम ऑफिस से नहीं आ जाते वह घर पर ही उसे संभालती रहेगी।
‘फर्क क्या पड़ा?
‘क्यों नहीं पड़ा। क्रैच में रहने से अच्छा है अपने घर में पले। उसे घर में अपनेपन का एहसास होगा।
‘तुम्हारी बुद्धि को क्या कहें? सरला ने माथा पीट लिया। ‘वह क्या जाने कि घर की फीलिंग। उसे तो बस मां चाहिए। सरला किसी भी तरह से टस से मस नहीं होना चाहती थी।
‘घर ही संभालना था तो फिर पढ़ाई-लिखाई क्यों की? नौकरी क्यों की? अमित बोला।
‘नौकरी तब की जब कोई जिम्मेदारी नहीं थी। आज जिम्मेदारी बढ़ गयी है। मैं मां भी हूं और तुम्हारी पत्नी भी। वह किंचित भावुक हो गयी।
‘एक बच्चे के लिए लक्ष्मी को लात मार रही हो?
‘बच्चा महत्वपूर्ण नहीं है? है तो फिर पैदा क्यों किया? सरला की त्यौरियां चढ़ गयीं।
‘तमाम औरतें नौकरियां भी कर रही हैं बच्चे भी पाल रही हैं, अमित बोला।
‘उनके यहां जरूर कोई न कोई घर का सदस्य होगा संभालने के लिए। हमारी तरह लावारिसों की तरह नहीं पल रहा होगा?
‘क्रैच में क्या खामी है? आज के जमाने में तमाम महिलाएं क्रैच में अपना बच्चा छोड़कर इत्मीनान से नौकरियां कर रही हैं। तुम्हीं बच्चे के लिए मरी जा रही हो। अमित दांत पीसते हुए बोला।
‘क्यों न मरूं। मेरा बच्चा है। दर्द मुझे होगा क्योंकि मैं उसकी मां हूं। मुझे उसकी दुर्दशा नहीं देखी जाती।
‘जिसे तुम दुर्दशा कह रही हो वह आज की संस्कृति है। आज धन के आगे सब गौण है।
‘धन हमारी जरूरत है मगर बच्चे की कीमत पर नहीं। जब मेरा बच्चा स्कूल जाने लायक हो जाएगा तब मैं फिर से काम शुरू कर दूंगी।
‘तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
‘नहीं करूंगी। यही न होगा। तुम किस लिए हो। अपनी बीवी बच्चों को खिला नहीं सकते? अमित के सीने में नश्तर की तरह चुभ गया सरला का यह कथन। मानो उसके गैरत को चुनौती दी हो सरला ने।
अमित ने जैसा सोचा था वैसा हुआ नहीं। सरला से शादी की पहली शर्त यही थी कि वह नौकरी वाली हो। अब जबकि सरला नौकरी छोड़कर बच्चे और परिवार को वक्त देना चाहती है तो वह खुद को ठगा सा महसूस करने लगा। प्रतिस्पर्धा के जमाने में जहां दूसरे दंपति 50 लाख के पैकेज में कमा रहे हैं वही सरला के नौकरी छूटने पर उसकी तनख्वाह आधी रह जाएगी। तब वह कैसे उनके बीच खुद को बीस साबित कर पायेगा। इस चिंता ने उसे बेचैन कर दिया। उसे लगा सरला एक बेकार की महिला बनकर रह जाएगी। ऐसी बीवी को कौन पसंद करेगा जो घर पर बैठकर आया का काम करे। अमित का मन कसैला हो गया। सरला के फैसले ने उसके अहं को चोट पहुंचाई। एक तरह से विश्वासघात किया। यही करना था तो शादी के पहले ही बता देती वह शादी से इनकार कर देता। सामान्य कद-काठी रूप रंग वाली लड़की से वह विवाह के लिए इसलिए राजी हुआ था क्योंकि वह उसकी तरह ही साफ्टवेयर इंजीनियर थी। विचार प्रक्रिया आगे बढ़ी।
‘वह महिला कैसे पत्नी का दर्जा पा सकती है जो पति के खिलाफ जाए? पत्नी का कर्तव्य होता है पति के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चले। उसकी भावनाओं को समझे। वक्त की नजाकत को समझे। इससे उलट सरला ने दूसरा रास्ता अपनाने का फैसला लिया। जो उसके लिए असहाय था।’ काफी सोचविचार कर अमित ने मन ही मन एक बहुत बड़ा फैसला ले लिया। यानि सरला से तलाक। सरला ने सुना तो हतप्रभ रह गयी। अमित इतनी जल्दी बदल जाएगा। वह सोच भी नहीं सकती थी। शादी जैसे पवित्र बंधन को एक झटके से तोड़ने का फैसला ले लिया? मानो शादी नहीं कोई मजाक हो। जिस रिश्ते को वह भावनाओं के साथ जी रही थी वह धन के आगे खोखला था? उसका मन भीग गया।
‘अमित, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम इस कदर गिर जाओगे? तुम्हें पत्नी बच्चे से ज्यादा रुपयों की फिक्र है? सरला बिफरी।
‘तुम्हें जो सोचना है सोचो। मैं भी तुम्हारी तरह अपने फैसले से पीछे नहीं हटूंगा। अमित ने ढिठाई की।
‘तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हें आसानी से छोड़ दूंगी। अगर मेरी और मेरे बच्चे का भविष्य बर्बाद होगा तो तुम्हें भी कहीं का नहीं छोडूंगी। सरला भी अड़ गई।
‘क्या भरोसे के लायक हो सकता है? उसके मम्मी पापा में हमेषा वैचारिक टकराव होते रहे परंतु दोनों के बीच तलाक का ख्याल कभी नहीं आया। अमित अपनी भड़ास निकाल सकता था। मगर तलाक के लिए कहना या सोचना यह दर्शाता है कि वह कितना गैरजिम्मेदार है। सुलझे हुए पति-पत्नी में मतभेद हो सकते हैं मगर अलगाव की बात वे कभी नहीं सोचते क्योंकि वे जानते हैं कि तलाक कोई समस्या का हल नहीं। अमित ने सरला से बोलचाल बंद कर दी। उसने भरसक उसे समझाने की कोशिश की। यहां तक कहा कि कुछ सालों की बात है जैसे ही चंदन स्कूल जाने लायक हो जाएगा वह फिर से नौकरी शुरू कर देगी। थोड़े पैसे कम ही तो मिलेंगे। कोई बात नहीं। इस बात का संतोष तो रहेगा कि मैंने बच्चे पर बेहतर ध्यान दिया। इसके बावजूद वह अपने अहं पर कायम रहा।
एक रोज अमित ने अपना दुखड़ा अपने एक मित्र से की। तब उसने समझाया कि सरला जो कर रही है वह ठीक है। उसने खुद अपना अनुभव साझा किया। कैसे उचित देखभाल न हो पाने के कारण उसका बेटा मरते-मरते बचा। उस रोज मैंने कान पकड़ लिया कि जब तक मेरा बच्चा समझदार नहीं हो जाएगा अपनी पत्नी से नौकरी नहीं करवायेगा। पत्नी भी मान गई। अब वह खुशी-खुशी अपने बेटे को पाल रही है। वह कहता रहा, ‘जब हम मां-बाप बनते हैं तब हमारा उद्देश्य हमारी संताने होती हैं। उनकी सही देखभाल न हो तो वे हमारे प्रेम से वंचित हो जाते है, जो उनके मानसिक विकास को अवरूद्ध कर देती है। वे बिगड़ भी सकते हैं। मित्र की बातों का अमित पर गहरा असर पड़ा। अमित में आये परिवर्तन से सरला बेहद खुश थी। उसे लगा उसका मातृत्व लौट आया। किसी तरह मन मानकर वह काम पर जाती। धीरे-धीरे उसने खुद को मना लिया। मगर चंदन को कैसे मनाएं? वह तो अबोध था। चंदन को मां की जरूरत थी। वह हर दिन उसे रोता हुआ छोड़कर विदा होती।
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