Love Story in Hindi: अर्पिता एक ऐसे परिवार से संबंध रखती थी जहां लड़कियों की शिक्षा का कोई मोल नहीं था। जहाँ दसवीं तक पढ़ाई कर ली, बस उसके बाद शादी करवा दी जाती थी,
पर अर्पिता के माता- पिता ने उसे बड़े प्यार के साथ पाला, और अपने घर परिवार मोह्हले वालों से लड़ झगड़ कर अर्पिता को कॉलेज पढ़ने भेजा , वो चाहते थे कि उनकी बेटी अपने पैरों पर खड़ी हो सके वो हमेशा अर्पिता को आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते थे। इसलिए अपने परिवार के खिलाफ जाकर भी उन्होंने उसे पढ़ाया लिखाया और आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेजा!
गाँव से निकलकर जब अर्पिता पहली बार शहर में आई थी तो उसे ये स्वतंत्रता, यहाँ का वातावरण खुले विचार बिना रोक टोक की बहुत पसन्द आ रही थी। क्योकिं लड़के भी कॉलेज में में पढ़ते थे, अमित से उसकी मुलाकात दूसरे मन्जिल से नीचे उतरते हुए हुई थी, वो फाइनल ईयर में था। और अर्पिता फस्टीयर में, ये पहली दोस्ती जो हुई वो अर्पिता को अमित का दीवाना कर गई.
फाइनल एग्जाम आते आते तो दोनों शादी के सपने देखने लगे थे, अमित का तो वैसे भी आगे पढ़ने का मन नहीं था, उसको तो वैसे भी अपने पापा का बिजनेस संभालना था , इसलिए उसके लिए ग्रेजुएट होना ही बड़ी बात हो गई थी, लेकिन इधर अर्पिता पर तो अमित के प्यार का ऐसा नशा चढ़ा था कि उसे ये तक समझ नहीं आ रहा था कि उसके माता-पिता पर क्या बीतेगी, उसका एक कदम उसके घर में आने वाली हर लड़की की शिक्षा को रोक देगा अमित ने उसे सपने भी रंगीन ऐसे ही दिखाए थे। वो तो अक्सर उससे यही कहता था,
” आखिर इतना पढ़कर तुम्हें कौन सा नौकरी करनी है , अरे तुम तो एक बिजनेस फैमिली में जा रही हो हमारे यहाँ तो नौकर काम करते हैं तुम्हें तो वैसे भी शादी के बाद आराम करना है”
अर्पिता धीरे-धीरे उसकी बातों में आने लगी थी। गाँव में पली-बढ़ी लड़की को शहर का आराम अपनी ओर खींचने लगा था उसे अमित पर अपने से ज्यादा विश्वास हो चला था पर वो जानती थी कि उसके माता-पिता शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, तैयार तो अमित के माता-पिता भी नहीं थे। आखिर अर्पिता उनके स्टैंडर्ड से मैच भी नहीं खाती थी तो उन्होंने भी अमित को शादी के लिए मना कर दिया, लेकिन अमित तो अर्पिता के साथ शादी की जिद पर अड़ा हुआ था उधर पता नहीं गाँव में कैसे अर्पिता के माता-पिता को पता चल गया और वो उसे यहाँ से वापस गांव ले गए,
एक रात अर्पिता सबको नींद में सोता हुआ छोड़कर गाँव से भाग आई। पर गांव से आने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे, तो आते समय अपनी माँ की अलमारी में से सोने के गहने और पैसे चुरा लिए थे.
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अमित तो उससे शादी करने के लिए वैसे भी तैयार था। तो दोनों ने मंदिर में जाकर शादी कर ली। पर अमित के माता-पिता ने तो शुरू में उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया। तो उन्होंने सोने के गहनों को बेचकर उन्होंने अपने रहने खाने पीने की व्यवस्था की।
जब तक प्यार का खुमार था और जेब में पैसे थे, तब तक समीर भी उसकी हाँ में हाँ मिलाता था। लेकिन धीरे धीरे जब प्यार का नशा उतरा और पैसे भी खत्म हो गए तो दोनों का आटे दाल के भाव पता चल गए। दोनों पति पत्नी में लडाई होने लगी
लेकिन दोनों की समस्या ज्यादा दिन नहीं रही। क्योंकि अमित अपने माता पिता का अकेला बेटा था, बाकी तो दोनों बेटियाँ थी। बुढ़ापे में बेटा ही सब कुछ संभालेगा ये सोच कर कुछ दिनों बाद वो खुद अमित को लेने आ गए और मजबूरन उन्हें अर्पिता को ले जाना पड़ा.
आज घर में काफी रौनक थी। छोटी नन्द शिवानी की शादी पांच दिन बाद ही थी तो सब उसकी तैयारियों में लगे हुए थे। बड़ी ननद बिल्लो और उसके पति भी घर आए हुए थे। सब लोग पिता जी के कमरे में बैठकर इसी बारे में बात कर रहें थे, जबकि घर की बहू अर्पिता सबके लिए चाय नाश्ते की तैयारी कर रही थी, जैसे ही चाय नाश्ता तैयार हुआ वो सबका चाय नाश्ता लेकर उनके कमरे में गई। लेकिन उसके कमरे में प्रवेश करते ही सब लोग नाराज होने लगें, अर्पिता को ये बात बहुत खराब लगी पर फिर भी उसने सबको चाय नाश्ता दिया और खुद भी अपना चाय नाश्ता लेकर बैठ गई, लेकिन तभी मम्मी जी ने उसके पति अमित से अर्पिता को बाहर भेजने का इशारा किया। जिसे अर्पिता ने देख भी लिया लेकिन अनजान होने का नाटक करती हुई वो चुपचाप बैठी रही।
अन्त में अमित ने अर्पिता से कहा,
“हम लोग कुछ जरूरी बात कर रहे हैं। प्लीज तुम अपने कमरे में जाकर नाश्ता कर लो”
अर्पिता ने प्रश्न भरी नजरों से अमित को देखा। जैसे कह रही हो कि मैं भी तो इस घर की सदस्य हूं। भला मेरे सामने बात क्यों नहीं हो सकती। मुझे भी तो इस घर में क्या चल रहा है वो सब बातें जानने का हक है।
शायद उसकी ये बात उसकी ननद ने समझ ली इसलिए वो अर्पिता से बोली,
“भाभी वो क्या है ना कि जब आपके लायक कोई काम होगा तो हम आपको जरूर बुलाएंगे। अभी तो आपका कोई काम है नहीं, तो आप नाश्ता करके अपने काम खत्म कर लो वैसे भी आपको पता है शादी के घर में बहुत से काम होते हैं , और आप घर की बहू हो तो आपको ही सब कुछ संभालना हैं”
उसकी बात सुनकर अर्पिता ने मन ही मन सोचा
‘ हाँ ” मैं तो घर के काम करने के लिए ही हूँ बाकि तो मुझे पता भी नहीं कि कौन कब चला आ रहा है और कहाँ क्या खर्च हो रहा है, घर में क्या सामान आया और क्या नहीं। बाजार से भी सामान लाकर सीधे अलमारी में रख दिया जाता है। मुझे तो कुछ भी बताया नहीं जाता’
पर इतने लोगों के बीच बोल कर अपनी क्या बेइज्जती करें, इसलिए चुपचाप उठकर अपने कमरे में आ गई। काफी देर तक तो उससे कुछ खाते ही नहीं बना पर भूखे क्यों रहना इसलिए अपना नाश्ता खत्म किया और प्लेट रखने रसोई में जा ही रही थी तो देखा सब लोग तैयार होकर निकल रहें,
नंदोई जी तो अपनी चाबी उठाकर पिताजी के साथ बाहर निकल लिए वहीं दोनों ननदें अपना बैग लहराती हुई बाहर आई और भाभी को बाय कह कर निकल गई। सासू माँ जी भी बाहर आई और अर्पिता को काम बता दिया,
” बहू हम लोग जरूरी काम से बाहर जा रहे हैं। तुम दोपहर का खाना तैयार कर लेना।
उसे काम बता कर वो भी बाहर निकल गई। समीर बाहर आया और कमरे में अपना पर्स और बाइक की चाबी लेने चला गया।
“अमित तुम सब लोग कहीं जा रहे हो क्या?” अर्पिता ने पूछा,
उसकी बात को सुना अनसुना कर अमित बोला,
” अभी मम्मी ने बताया तो सही कि जरूरी काम से जा रहे हैं”
” हाँ, पर कहाँ जा रहे हो , तुम लोगों ने ये तो बताया ही नहीं”
” अब जरूरी है क्या हर बात तुम्हें बताना? बता तो दिया कि जरूरी काम से जा रहे हैं। और मम्मी ने तुम्हें जो काम बताया वो कर लेना,
कहता हुआ अमित अपना चाबी लेकर वहाँ से निकल गया , अर्पिता उसके पीछे पीछे दरवाजे तक आई तो देखा सब लोग कार में बैठे थे।
पर पता नहीं क्यों, ये लोग अभी भी गए नहीं थे, अर्पिता वही दरवाजे पर खड़ी उन लोगों को देख रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो लोग किसी का इंतजार कर रहे हैं।
दस मिनट बाद उसे घर में काम करने वाली मेड आती दिखी, उनके आने पर अमित की माँ का उन्हें अपने पास बुलाया और उन्हें कुछ समझा कर वो लोग वहाँ से निकल गये,
मेड घर में आ गई तो अर्पिता ने दरवाजा बंद किया और आकर सोफे पर बैठ गई। मेड अपने काम में लग गई। सबसे पहले उन्होंने अमित की माँ के कमरे की सफाई की और फिर बाहर निकल कर उस कमरे के दरवाजे पर ताला लगा दिया। उन्हें ताला लगाता देखकर अर्पिता ने पूछा,
” अरे काकी, ताला क्यों लगा रही हो?”
उसकी बात सुनकर मेड ने उसकी तरफ देखा और बोली,
” मैडम ने कहा है कि उनके कमरे की साफ सफाई करके ताला लगा देना”
अर्पिता ने उसके आगे कुछ नहीं कहा, पर उसे हैरानी तब हुई जब मेड ने चाबी उसे देने की जगह अपनी कमर में खोस ली और घर के बाकी के कमरों की सफाई करने लगी,
एक नौकरानी पर भी आंख मूंद कर विश्वास था, पर अपनी बहू पर नहीं। माना कि मेड यहाँ कई सालों से काम कर रही है, पर वो भी तो इस घर की इकलौती बहू है आज नहीं तो कल उसे ही तो सब कुछ संभालना है।
खैर अर्पिता ने देखा कि जैसे-जैसे मेड सफाई करती जा रही थी, वैसे वैसे सब कमरों पर ताला लगाती जा रही थी। उन्होने सिर्फ नित्या का कमरा, रसोई और हॉल ही छोड़ा था, जहाँ ताला नहीं लगा था।
” काकी आप तो जा रही हो। अब सारे कमरों को ताला लगा दिया तो चाबी भी दे दो। नहीं तो जब वो लोग आएंगे तो दरवाजा कैसे खोलेंगे”
उसकी बात सुनकर मेड बोली,
” माफ करना बहुरानी, पर मेम साहब ने मना किया है आपको चाबी देने से। उन्होंने कहा है कि ताला लगाकर चाबी पड़ोस वाली तिवारी जी को दे जाना”
कहकर मेड घर से निकल गई, जबकि अर्पिता सोफे पर बैठी एकटक उन्हें जाती देखती रह गई।
अर्पिता कहाँ ऐसे सपने देखे थी की बहुत खुश हाल जीवन जियेगी उसका पहला प्यार उसको मिल गया है, पर अब ससुराल वालों से पाला पड़ रहा था। कि कहाँ तो घर में नौकर चाकर काम करते थे। अब ले देकर के एक मेड रह गई, जो भी घर की साफ सफाई के लिए आती थी। बाकी रसोई का सारा काम अर्पिता के हिस्से में डाल दिया गया अब तो अमित भी पूरी तरह से अपने माता-पिता के कहे में रहता था अर्पिता के हिस्से सिर्फ जिम्मेदारी आई थी, उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया था। आज उसे पछतावा होता था कि क्यों उसने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। अपने माता-पिता का दिल दुखा कर वो यहाँ कहाँ खुश है, दोपहर के 3:00 बज गए। तब तक सब लोग घर आ गए। अमित पड़ोस वाली ऑन्टी जी के यहां से चाबियां ले आया। हमेशा की तरह सामान सीधे सब सासू जी के कमरे में गए
अभी सब लोग सामान के साथ सासू के कमरे में ही थे कि अर्पिता उन लोगों को खाने के लिए बुलाने आई। उस समय छोटी ननदअपने सोने के गहने पहन कर दिखा रही थी, जिसकी शॉपिंग शायद आज ही की गई थी। एकदम से अर्पिता को वहां देख कर उसने फटाफट ज्वेलरी निकालकर बैग में रख दी। वही सासू जी अर्पिता को देखकर गुस्से में बोली,
” बहू, तुम्हें बिल्कुल तमीज नहीं है कि किसी कमरे में कैसे जाया जाता है? तुम यहां मेरे कमरे में क्या कर रही हो?”
अचानक सास जी के सवाल से हड़बडाती हुई अर्पिता बोली,
” जी मैं वो.. वो दरअसल….आपको खाने के लिए बुलाने आई थी”
उसकी बात सुनकर अमित नाराज होकर बोला,
” खाना क्या भाग कर जा रहा था? आ कर खा तो रहे थे, यूँ एकदम से मम्मी कमरे में आने की हिम्मत कैसे हुई?”
अमित ने जिस तरीके से दुत्कारते हुए अर्पिता से कहा, उसे अर्पिता बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाई, उसकी आंखों में आंसू आ गए और वो बोली,
” ये आप मुझसे किस तरह से बात कर रहे हैं। मैं भी तो इसी घर के सदस्य हूं। मैं भला इस कमरे में क्यों नहीं आ सकती?”
” नहीं आ सकती तुम मेरे कमरे में। मुझे नहीं पसंद है तुम्हारा यहां आना। यहां सारा कीमती सामान रखा होता है”
अचानक से सास बोली। उनकी बात सुनकर अर्पिता को ऐसा लगा जैसे कोई उस पर चोरी का इल्जाम लगा रहा हो।
” आपको मुझसे ज्यादा मेड पर विश्वास है, जबकि मैं आपके घर की बहू हूँ, मैं घर में मौजूद थी, फिर भी आपने मेड से कमरों में ताला लगवाया और चाबी आंटी के घर पर दे दी। आपको मुझ पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है”
आपको माजी अर्पिता बोली…
” हां नहीं है मुझे तुझ पर भरोसा। भला हम तुझ पर भरोसा क्यों करें? अरे जो अपने मां-बाप की नहीं हुई, वो हमारी क्या होगी। तू तो तेरे ही माँ के गहने चुरा के भागी थी ना। याद है की भूल गई फिर तेरा क्या भरोसा हो कि तू हमारे गहने नही चुराएगी”
यह सुनकर अर्पिता बिल्कुल हैरान रह गई उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने आईने के सामने खड़ा कर उसे शर्मिदा कर दिया हो। अपनी इस प्रतिबिंब को तो वो देख भी नहीं पा रही थी और ना ही कुछ कह पा रही थी। इसलिए अपने आंसू लेकर कमरे के बाहर निकल गई और अपने कमरे में जाकर बैठ गई।
आज सचमुच उसके माता-पिता का चेहरा उसे याद आ रहा था। उनके विश्वास को तोड़कर आज जो कुछ उसे मिल रहा था, शायद वो उसी के लायक थी। आखिर रात ही हो गई।
