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बोझिल पलकें, भाग-19

अंशु तो अपने जीवन की एक तयशुदा धारा में बह रही थी, लेकिन रंधीर की नीच हरकत उसकी पूरी जिंदगी की दिशा ही बदल गई। विशाल के लिए उसका सफर तय था, पर अब अजय के सामने वह क्यों ठिठकने को मजबूर हो गई थी?

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बोझिल पलकें, भाग-18

अजय के पिता अपने बंदीघर में उसकी आंखों के ठीक सामने बेबस से खड़े थे, इतने पास कि अजय उन्हें देख सकता है, लेकिन इतने दूर कि अजय उन्हें छू तक नहीं सकता है। एक बाप और बेटे की तड़प और प्यार से भरा था ये लम्हा। दोनों ही को एक-दूसरे की जिंदगी की फिक्र खाए जा रही थी, लेकिन मजबूर दोनों ही थे।

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सेल्फ़ी-मोड का समाज

बीते साल में हमने बहुत बड़े पैमाने पर देखा कि हर हादसे के साथ बहुत से लोग जुट जाते हैं, लेकिन ये लोग मददगारों की होती है या सेल्फ़ी-मोड में बदलते जा रहे तमाशबीनों की। इस बार इस कॉलम के अंतर्गत हम यही सवाल उठा रहे हैं, आपके लिए भी और अपने लिए भी।

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मां की पुकार

दुनिया की सबसे मीठी होती है वह आवाज, जब एक मां अपने बच्चे को पुकारती है। फिर क्या था इस पुकार में, जिसे सुनकर दिल रो उठता था। दिल को झकझोर कर रख देने वाली एक छोटी सी कहानी।

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बोझिल पलकें, भाग-17

अजय के पिता उसकी कमजोर रग थे और चन्दानी ने अजय की उसी कमजोर रग को बुरी तरह से दबा दिया था, दीवानचन्द को बंदी बनाकर। अंशु को अजय अपनी जिंदगी समझने लगा था, लेकिन जिस पिता ने उसे जिंदगी दी थी, आज उनकी जिंदगी दांव पर लग चुकी थी। क्या अजय के पास अब कहीं, कोई रास्ता बचा था?

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बोझिल पलकें, भाग-16

अजय अंशु के साथ एक नई जिंदगी का सपना देख रहा था, लेकिन जिंदगी उसे कुछ और ही दिखाना चाह रही थी। चन्दानी के अपराध-समूह में शामिल होकर अजय एक ऐसी कीचड़ में धंस चुका था, जहां से जीते-जी निकलना नामुमकिन था। अब क्या होगा अजय की जिंदगी का, उसके सपनों का?

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बोझिल पलकें, भाग-15

एक अपराधी की जिंदगी जीने को मजबूर अजय के लिए अंशु उम्मीद की वह किरण थी, जिसके भरोसे पर वह सोच रहा था कि एक दिन वह इस अपराध की अंधेरी दुनिया को छोड़कर उजालों में सांस लेगा। पर क्या ये इतना आसान था?

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बोझिल पलकें, भाग-14

अजय की मदद से किसी तरह बची अंशु अपने घर पहुंचकर अपनी मां को सारी घटना बताती है। उधर अजय भी पुलिस से फारिग होकर अपने घर पहुंच तो जाता है, लेकिन उसका मन अब भी अंशु के पास ही रह गया है।

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बोझिल पलकें, भाग-13

अंशु ने अपनी जान और चन्दानी की नौकरी खतरे में डालकर अंशु की इज्जत तो लुटने से बचा ली, लेकिन अपने दिल के चैन को लुटने से नहीं बचा पाया। अपराध की इस दुनिया से निकलने के लिए अंशु उसकी ज़िंदगी में एक वजह और उम्मीद की तरह दाखिल हुई थी। कितनी दूर रह पाएगी ये उजाले की सुबह उससे?

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