पुलिस वाले चले गए तो अजय एक नई सिगरेट जलाकर अपने रास्ते की ओर चल पड़ा। रास्ते में वह सोच रहा था, आज उसने अंशु की इज्जत बचाई- बहुत आड़े समय में। क्या वह इस समय उसे याद कर रही होगी? क्या उसने उसके दिल में थोड़ा-सा स्थान प्राप्त कर लिया होगा? काश! ऐसा हो जाए। काश, अंशु उसे अपने दिल में थोड़ा-सा स्थान दे दे तो उसे अपने जीवन को बदलने का अटूट सहारा मिल जाएगा। चन्दानी को छोड़ने का साहस प्रबल हो उठेगा। अंशु के योग्य वह जरा भी नहीं, इसलिए अंशु से प्यार करे या न करे, फिर भी वह उसे प्यार करता रहेगा। अपने दिल में इस नए जन्मे तथा अनूठे प्यार के लिए वह अंशु की प्रसन्नता पर बलि चढ़ जाएगा, क्योंकि अंशु की सुंदरता ने उसे अपनेआपको पहचानने की प्रेरणा दी थी। उसके अंदर एक नई आत्मा फूंककर उसका जीवन-मार्ग बदल दिया था।

अंशु अपने बंगले पर पहुंची। राय साहब फैक्टरी गए हुए थे। वह अपनी मम्मी से लिपटकर फूट-फूटकर रो पड़ी, मानो मृत्यु के चंगुल से बचकर आ रही हो। रो-रोकर उसने आज की सारी घटना अपनी मम्मी को सुनाई तो उन्होंने अपनी बेटी को और भी सख्ती से छाती में समेट लिया। उनकी बच्ची को कुछ हो जाता तो निश्चय ही उसका कुटुंब किसी को मुंह दिखाने योग्य नहीं रहता। अपराध पुरुष का ही हो, परंतु सारी बदनामी लड़की वालों के भाग्य में आती है।

उन्होंने उस व्यक्ति को दिल से आशीर्वाद दिया, जिसने उनका कुटुंब बर्बाद होने से बचा लिया था। इज्जत लुट जाने के बाद यदि उनकी लड़की किसी को मुंह दिखाने की बजा आत्महत्या कर लेती तो निश्चय ही उनके घर पर आकाश बरस पड़ता। एक ही तो संतान है उनकी, जिसकी हर प्रसन्नता स्थिर रखने के लिए उन्होंने क्या-क्या नाज नहीं उठाए रंधीर को सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए उनका चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। कमबख्त को एक बार छोड़ दिया तो पर निकल आए। उन्होंने तुरंत राय साहब से बात करने के लिए फोन मिलाया, परंतु उनसे बात नहीं हो सकी। उनके सेक्रेटरी से ज्ञात हुआ कि वह एक आवश्यक मीटिंग में शहर गए हैं। शाम छ बजे तक खाली हो सकेंगे। मीटिंग के बाद वे सीधे बंगले ही पहुंचेंगे। अंशु की मम्मी ने चन्दानी तथा रंधीर को कोसते हुए फोन रख दिया और फिर बेटी को सांत्वना देने लगीं।

अंशु सोच रही थी कि यदि आज वह नवयुवक उसकी इज्जत नहीं बचाता, तब क्या होता? हां, तब क्या होता? सोच-सोचकर अंशु कांप जाती थी। सिसकियों से उसका सारा शरीर कांप जाता था। 

जारी…

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