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बोझिल पलकें, भाग-30

आज अजय ने इस अपराध की दुनिया से बाहर निकलने के लिए आर या पार की जिस लड़ाई का दांव खेला था, उसमें सिर्फ़ उसी की जान का जोखिम नहीं था, बल्कि उसके पिता भी खतरे से बाहर नहीं था, पर वे खतरे से बाहर थे ही कब। फिर भी क्या अंजाम होने जा रहा था आज इस सब का?

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बोझिल पलकें, भाग-29

आज जिस ढंग से अजय चन्दानी के बंगले में दाखिल हो रहा था, वह मौत के मुंह में दाखिल होने से कम नहीं था, लेकिन अजय तो जैसे इस सच को जानकर भी झुठला रहा था। चन्दानी के चीतों को कई दिनों से किसी इंसान का मांस नहीं मिला था। कौन बनने वाला था आज उनका निवाला?

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बोझिल पलकें, भाग-28

आज अजय ने मानो तय ही कर लिया था कि या तो वह इस मौत जैसी जिंदगी से छुटकारा ही पा लेगा या फिर सीधा मौत को ही चुनेगा। इस रास्ते पर उसका एक-एक कदम उसे सीधा मौत के मुंह के पास ले जा रहा था। क्या था ये कदम?

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बोझिल पलकें, भाग-27

चन्दानी की कैद में बंद दीवानचन्द अजय की वह दुखती हुई रग थे, जिसके चलते अजय चन्दानी के इशारों पर न सिर्फ आपराधिक कामों को करने पर मजबूर था, बल्कि उसे ये अपराध भी हंसते-मुस्कुराते करने थे। ऐसा ही मौका इस बार भी उसके सामने आ खड़ा हुआ था। अब आगे अंजाम क्या होने वाला था इन सब का?

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बोझिल पलकें, भाग-26

बदले हालात के साथ जहां चन्दानी की नजरों का घेरा अजय पर तंग होता जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ अजय और अंशु के छिपे हुए दिली जज़्बात भी बदल रहे थे। अजय समझ नहीं पा रहा था कि क्या अब भी किस्मत कहीं उस पर रहम कर रही है या खिलवाड़। क्या छिपा था अजय की जिंदगी के अगले मोड़ पर?

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बोझिल पलकें, भाग-24

सच को सबूत की जरूरत नहीं होती और आज अंशु भी बिना कहे अजय की सारी सच्चाई के करीब पहुंच चुकी थी। ऐसे में अजय की खुद्दारी और सच्चाई ने उसे मजबूर कर दिया कि वह भी अपने प्यार के आगे कुछ भी न छिपाए। फिर क्या परिणाम रहा इस सच्चाई का?

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बोझिल पलकें, भाग-23

जिस अंशु को अजय अपनी जिंदगी में उम्मीद की किरण मान बैठा था, वही अंशु आज अजय के अपराधी होने की सारी सच्चाई जानकर उससे मुंह फेरे बैठी थी। तो क्या अजय औऱ अंशु का प्यार पैदा होने से पहले ही दम तोड़ने वाला था?

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बोझिल पलकें, भाग-22

एक अपराधी की जिंदगी जीने को मजबूर अजय के साथ समय हर कदम पर एक नई चुनौती रख रहा था। नाउम्मीदी से भरी इस जिंदगी में अंशु उसकी एकमात्र उम्मीद थी, लेकिन क्या आज ये उम्मीद भी कोई मोड़ लेने वाली थी?

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बोझिल पलकें, भाग-21

जिस उम्मीद का दामन थामकर अजय अंशु के साथ अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत चाहता था, वह उम्मीद खत्म हो चुकी थी। अब अजय एक बार फिर अपराध की दुनिया के उसी अंधेरे में लौट चुका था और अगला गुनाह अंजाम देने जा रहा था, लेकिन क्या वह इस बार भी उतना ही सौभाग्यशाली था, जितना ही हमेशा हुआ करता था या फिर किस्मत उसे पूरी तरह से निराश कर देने पर उतारू थी?

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बोझिल पलकें, भाग-20

अगर उम्मीद ने अजय का साथ छोड़ दिया था तो अजय ने भी उम्मीद का साथ छोड़ दिया था और अपनी उसी पुरानी अपराध की दुनिया को अपना लिया था, जिससे वह हमेशा भागना चाहता था। वह मजबूर था, अपने फर्ज के हाथों, क्योंकि वह अपने पिता दीवानचन्द को चन्दानी के खूंखार चीतों का निवाला नहीं बनते देखना चाहता था।

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