अपने काम में कम्मो का साथ उसे एक बार पहले भी मिल चुका था फिर भी वह उससे बात करने के मूड में जरा भी नहीं था।

‘सुना है, बॉस तुमसे नाराज हैं।’ सहसा कम्मो ने ही एक मोड़ पार करने के बाद बात छेड़ी।

‘हुआ करे। मुझे उससे क्या लेना?’ अजय ने लापरवाही से उत्तर देते हुए एक सिगरेट निकालकर जलाई।

‘मून भी यही कहता है।’

‘मून कौन?’ अजय ने कुछ चौंककर सिगरेट का अगला कश लेने से पहले पूछा।

‘है एक।‘ कम्मो ने कहा, ‘मैं उसके साथ तो कई बार काम कर चुकी हूं। उसकी मां सदा बीमार रहती थी। मून को नौकरी नहीं मिली तो वह इस गैंग में फंस गया। तीन वर्ष तक उसने इस गैंग की सेवा की, परंतु जब एक दिन उसकी मां को ज्ञात हो गया कि उसका बेटा एक अपराधी है तो उसने उसे अपनी सौगंध देकर इस गैंग को छोड़ देने पर राजी कर लिया। मून ने जब बॉस का काम करने से इंकार किया तो बॉस ने उसकी मां को किसी बहाने अपने यहां बुलाकर तुम्हारे पिता समान बंदी बनाया। फिर उसने मून को बुलाना चाहा, परंतु इसी मध्य मून की बीमार मां की मृत्यु हो गई। यह बात मून को ज्ञात हो गई तो अब उसने न आने में ही अपनी भलाई समझी।

‘उसे यह बात कैसे ज्ञात हुई?’ अजय ने पूछा।

कम्मो एक बार झिझकी, फिर बोली, ‘मैंने उसे सचेत कर दिया था।’ कम्मो यह बात अजय को कभी नहीं बताती, यदि अजय तथा अपने बॉस के मध्य वह तनाव नहीं देखती।

‘क्यों?’

‘क्योंकि बॉस की आज्ञा न होते हुए भी मैं उसे…’

‘और वह?’

‘वह भी मुझे प्यार करता था, शायद अब भी करता है, परंतु अपनी मां से उसे अत्यधिक प्यार था। उसका विचार है कि यदि उसकी मां बॉस की बंदी नहीं बनाई जाती तो उसकी मृत्यु नहीं होती।’

कार शहर की भीड़ छोड़कर एक खुली सड़क पर आ गई थी। अजय ने पीछे से एक दूसरा सूटकेस उठाया। उसमें से दाढ़ी, मूंछ, लंबी लटों की विग, कौड़ियों की माला तथा चश्मा निकालकर वह आती-जाती गिनी-चुनी कारों की दृष्टि बचाकर अपना भे बदलने लगा।

कम्मो ने बात जारी रखी।

वह कह रही थी, ‘मून इसीलिए बॉस को कानून के हाथों सौंपने का प्रयत्न करता रहता है। उसे बॉस के अड्डों का पता नहीं है फिर भी उसके चलते बॉस को स्मगल करती हुई कितनी ही वस्तुएं पकड़ी जा चुकी हैं और बॉस जानता है कि इसके पीछे केवल मून का ही हाथ है। उसने अपने आदमियों को उसकी हत्या करने की आज्ञा दे रखी है, परंतु वह छिपा-छिपा फिरता है। मेरी अंतिम भेंट भी फोन द्वारा उससे तब हुई थी, जब मैंने उसे उसकी मां की मृत्यु की सूचना दी थी।’

‘तुम इस गैंग में क्यों सम्मिलित हो?’ अजय ने सामने के दर्पण में अपनी नकली मोटी मूंछ ठीक करते हुए पूछा।

‘हर मानव के साथ कुछ न कुछ तो विवशता होती है।’ कम्मो ने गंभीर स्वर में कहा, ‘बॉस के इशारे पर एक लड़की ने मुझे इस गैंग में सम्मिलित किया था। अब मैं इसमें इस प्रकार फंस चुकी हूं कि इच्छुक होकर भी नहीं निकल सकती। मेरे दो छोटे भाई-बहन हैं। उन्हें पढ़ा-लिखाकर अब पैरों पर खड़ा कर देना चाहती हूं, ताकि मेरे समान वे अपराधी न बन सकें।

पूर्णतया अपना भे बदलने के बाद अजय ने अपनी आंखों पर गोल बड़ा चश्मा चढ़ाया और फिर अंतिम बार सामने दर्पण में देखा, परंतु तभी चौंक गया। सड़क सीधी थी और इस सड़क पर बहुत दूर एक कार कुछ अधिक ही गति के साथ उनका पीछा कर रही थी। इसके साथ ही अजय के कानों में पुलिस सायरन भी हल्के-हल्के सुनाई देने लगा, जिसकी ध्वनि धीमे-धीमे तेज होती जा रही थी।

अजय ने तुरंत पलटकर पीछे देखते हुए कहा, ‘लगता है मून के ही कारण पुलिस को हमारा भी पता चल गया है। अपने उद्देश्य के पीछे उसने तुम्हारे प्यार की भी चिंता नहीं की।’

‘शायद।’ कम्मो भी पुलिस सायरन सुन चुकी थी।

उसने सामने का शीशा अपनी ओर करके पीछे का दृश्य देखते हुए कहा, ‘उसे मुझसे अधिक मां प्यारी थी।’

कम्मो ने जैसे ही महसूस किया कि पुलिस उसका पीछा कर रही है, एक्सीलेटर पर उसके पग का दबाव और बढ़ गया।

सहसा एक मोड़ आया। अजय के इशारे पर कम्मो ने तुरंत ब्रेक जाम करके कार रोक दी। इस बीच अजय अपनी जिम्मेदारी का सूटकेस उठा चुका था। वह तुरंत नीचे उतरा।

कम्मो ने कार स्टार्ट ही रखी थी। वह बिना एक पल गंवाए आगे निकल गई।

अजय लपककर वहीं सड़क के किनारे झाड़ी की ओट में दुबक गया।

पुलिस सायरन बहुत तेजी के साथ समीप आ रहा था।

 जारी…

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