Posted inलघु कहानी - Short Stories in Hindi

बारिश की बूँदें…गृहलक्ष्मी की कहानियां

खाना बनाकर बालकनी में गई तो देखा, बारिश हो रही है|एकाएक मिनी की याद आंखों को भिगो गईं, यदि आज हॉस्टल ना जा घर पर होती तो जहांकाले बादल देखना शुरू करती तभी से“माँबाहर आओ…बाहर आओ कह-कहके तंग कर देती|”फिर जब तक बारिश होती रहती, शायद ही कोई काम मुझे सुकून से करनेदेती…किन्तु आज मेरा […]

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अपनी डाइट में रोज शामिल करें प्रोटीन की इतनी मात्रा

एक स्वस्थ व्यक्ति को हर रोज अपने शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम पर 0.8 ग्राम प्रोटीन केसेवन की जरूरत होती है, प्रत्येक ग्राम प्रोटीन से 4 किलो कैलोरी प्राप्त होती है, जिससे शरीर कोऊर्जावान रहने में मदद मिलती है। इसलिए डाइटचार्ट में प्रोटीन की निश्चित मात्रा होनी चाहिए। प्रोटीन एक महत्त्वपूर्ण न्यूट्रिएंट या पोषक […]

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आपके बच्चे ने यह खाया!

Parenting Tips in Hindi : बच्चों का शारीरिक-मानसिक तौर पर स्वस्थ होना जरूरी है और इसके लिए उनके खाने-पीने पर शुरू से ही ध्यान दिया जाना चाहिए। और हां, स्वस्थ होने का मतलब मोटा होने से बिलकुल भी नहीं है, बल्कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए बच्चों का आहार पौष्टिक एवं संतुलित होना चाहिए। कल मैं […]

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बावरा मन-गृहलक्ष्मी की कहानियां

नई पोस्टिंग होने पर वह अपने घरेलू सहायकों के नाम जान रही थी। चूँकि पति प्रशासनिक सेवा में उच्च अधिकारी हैं इसलिए घर के लिए सेवक व ड्राइवर की कमी नहीं होती। आज भी वह नज़र उठाकर सभी के बारे में जान रही थी तभी किसी ने अपना नाम बताने के लिए जैसे ही नज़र ऊपर की एकाएक उसे देखते ही खुद की नज़र नीचे हो गई। खैर! अपने को संयत कर उसने नाम पूछना चाहा। जी राजू …राजू ड्राइवर। 2 साल से यहीं बंगले में काम कर रहा हूँ । अच्छा! कह सबके बारे में जान वह खड़ी हो गई क्योंकि सभी सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था । वह भी तो ठीक-ठाक करना था|  हफ्ते- दस दिन में घर काफी व्यवस्थित हो गया था, सो आज उसने यहीं के बाजार जाने की सोची। गाड़ी में पीछे की सीट पर बैठी हुई वह कुछ असहज सा महसूस कर रही थी क्योंकि ना चाहते हुए भी कनखियों से एक-दो बार उसे देख ही लिया ,शायद इस बार तो उसने भी शीशे में से पीछे देखा तो लगा जैसे बदन में सिहरन सी होने लगी है। अब तो अक्सर ही राजू ड्राइवर के साथ क्लब या बाजार जाने का दिल करता। कोई दूसरा ड्राइवर गाड़ी लगा भी लेता तो आँखें ड्राइवर सीट पर राजू को ही तलाशतीं  उसी को देखना चाहतीं। यदि ड्राइवर सीट पर दिख भी जाता तो नज़रें बचा बार-बार किसी बहाने उसे देखती, शायद स्वयं के दिल पर उसका नियंत्रण कम होता जा रहा था। अपनी सुधबुध खोती जा रही थी।  आज भी लेडीज़ क्लब जाने के लिए गाड़ी लगवाई और तैयार होकर आईने में खुद को निहारते हुए यही सोच रही थी कि आज वही मिले कोई और नहीं।   आशा के अनुरूप राजू ही दिख गया। मन खुश हो प्यार-मोहब्बत के ताने-बाने बुनने लगा, शायद दोनों तरफ ऐसा ही था। यह तो मन है जो किसी का कहा नहीं मानता ना ही किसी के अधीन हो कहेनुसार रह सकता, आज कुछ ज्यादा ही बेचैनी हो रही थी सो क्लब में भी मन नहीं लगा ,जल्दी घर वापिस आ गई। यह भी पढ़ें | मिल गई मंजिल- गृहलक्ष्मी की कहानियां    रात को खाने वगैरह का काम निपटा बैठी ही थी कि दोनों बच्चे आकर उसके गले में बाहें डाल गोदी में लेट गए । तभी अभिषेक भी आ गए ।कहने लगे, “भई हमारी जगह कहाँ है फिर! तुम्हारे इतने विशाल हृदय व मन में तो सिर्फ और सिर्फ हमारी ही जगह है वहां मेरा ही अधिकार है कह प्यार भरी नज़रों से देख हंसने लगे|” ‘इतना प्यार इतना भरोसा…..’           ‘ छपाक’ की आंतरिक आवाज के साथ उसकी तन्द्रा भंग हुई। लगा कहाँ डूब रही थी, कहाँ भंवर में फंसती जा रही थी? लेकिन अब नहीं, मेरा किनारा मेरा जीवन तो यहीं है मेरे अभिषेक और बच्चों के साथ।  यह मैं क्या करने जा रही थी, उनके प्यार की कद्र ना करते हुए मन ही मन कितनी घिनौनी व अशोभनीय सोच के वशीभूत हो रही थी! मेरा बावरा मन कहाँ-कहाँ भाग रहा था और वो भी किसके साथ और क्यों? नहीं बिल्कुल नहीं। मेरा छोटा सा संसार तो मेरे बच्चे मेरे अभिषेक बस! और कुछ नहीं चाहिए कुछ भी तो नहीं|           अगली सुबह तनाव मुक्त प्रसन्नचित्त हो चाय पीने के बाद अभिषेक से बोली मैं ज्यादा कहीं आती-जाती नहीं हूँ इसलिए एक ड्राइवर भी घर के लिए काफी है, तुम ऐसा करो राजू ड्राइवर की ड्यूटी ऑफिस या कहीं भी लगा दो । यहां ज़रूरत नहीं है।  ठीक है तनु, तुम्हें यहां ज़रूरत नहीं है तो इसकी ड्यूटी कहीं और लगा देते हैं। अब मन व्याकुल ना हो शांत था स्थिर था…..

Posted inएंटरटेनमेंट

जल पर निर्भर हर पल

जल हमारे जीवन के लिए क्या महत्व रखता है इस बात को हम सभी बेहतर तरीके से जानते हैं। एक कहावत है जो पूरी तरह से सही है कि ‘जल है तो जीवन है…’ इस बात को हम और आप जितनी जल्दी समझ जाएं, हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए उतना ही बेहतर होगा।

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आप ही से हैं जहां की खुशिया

मां-बाप भले ही बड़े से बूढ़े हो जाते हैं, लेकिन बच्चे मां-बाप के लिए कभी बड़े नहीं होते। थोड़े से प्यार और आपसी साझेदारी से उम्र के आखिरी पड़ाव तक हम इस रिश्ते की मिठास बनाए रख सकते हैं।

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जिएं जिंदगी 60 के बाद भी

जब पूरी जि़ंदगी एक स्वाभिमान और रौब के साथ जीते हुए गुजारी हो तो जीवन-संध्या में क्यों किसी पर इस तरह से निर्भर हो जाएं कि बुढ़ापा बेबसी में बदल जाए। जब तक जिएं, जि़ंदगी से भरपूर रहिए।

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