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Parenting Tips in Hindi : बच्चों का शारीरिक-मानसिक तौर पर स्वस्थ होना जरूरी है और इसके लिए उनके खाने-पीने पर शुरू से ही ध्यान दिया जाना चाहिए। और हां, स्वस्थ होने का मतलब मोटा होने से बिलकुल भी नहीं है, बल्कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए बच्चों का आहार पौष्टिक एवं संतुलित होना चाहिए।

कल मैं अपनी सहेली गीता के घर गई तो उस समय वह अपने पांच वर्षीय बेटे मनु को खाना खिला रही थी, मैंने देखा मनु का पेट भर जाने के कारण वह खाने के लिए मना कर रहा था परन्तु गीता उसे डांटकर खिलाये जा रही थी।

आखिरकार ज़बरदस्ती खाने की वजह से मनु ने उल्टी तो कर ही दी, साथ ही उसके पेट में भी दर्द होने लगा। कुछ देर बाद पेट दर्द कम होने पर जब वह ठीक हो गया तो मैंने गीता से कहा कि बच्चे के मना करने के बावजूद उसे और नहीं खिलाना चाहिए, इस पर वह कहने लगी आजकल तो मेरा मनु कुछ खाता-पीता ही नहीं है इसलिए कमज़ोर भी होता जा रहा है, यदि थोड़ा-सा भी ज़्यादा खिलाना चाहती हूं ताकि वह स्वस्थ दिखे, तो इसी तरह उल्टी कर देता है और चिड़चिड़े स्वभाव का व जि़द्दी भी होता जा रहा है। ऐसा सिर्फ गीता के साथ ही नहीं, वरन उन सभी महिलाओं के साथ होता है जिनको हमेशा यही वहम रहता है उनके बच्चे कुछ खाते-पीते नहीं हैं।

वे डांट-डपटकर जब बच्चे को खाना खिलाती हैं तो उस समय तो सहमकर चुपचाप खा लेते हैं परन्तु अधिक खा लेने के कारण पचा नहीं पाते हैं और तबियत खराब हो जाती है। वैसे तो हर मां चाहती है उसका बच्चा खूब खाए-पिए, स्वस्थ और सेहतमंद दिखे परन्तु इसके लिए यह ज़रूरी नहीं है कि दिन भर बच्चे को ठूंस-ठूंस कर खिलाया जाये।

कुछ महिलाएं ऐसा सोचती हैं यदि हमारा बच्चा मोटा होगा तभी वह तंदुरुस्त माना जायेगा किन्तु यह सिर्फ भ्रम है, मोटे बच्चे कभी भी शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं रह पाते हैं, उनकी कार्य करने की क्षमता भी अन्य बच्चों की अपेक्षा कम होती है, इससे धीरेधीरे मन में हीन भावना आती है तथा शारीरिक-मानसिक विकास भी कम होने लगता है।

हर मां का यह $फज़र्ब नता है कि बचपन से ही अपने बच्चों को संतुलित आहार दे, संतुलित आहार से तात्पर्य ऐसे भोजन से है जिसमें सभी पोषक तत्व (प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन्स, खनिज लवण) मौजूद हों क्योंकि इनकी शरीर को अत्यधिक आवश्यकता होती है।

ऊर्जा की प्राप्ति भी इनके माध्यम से होती है, जो कि शरीर की वृद्धि व समुचित विकास के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, अत: ऐसे ही भोज्य पदार्थ खाने चाहिए जिनमें ये अधिक मात्रा में उपस्थित हों।


बच्चों को दें प्रोटीन युक्त आहार

बाल्यावस्था में प्रोटीन की अधिक ज़रूरत शरीर को होती है क्योंकि एक तो इससे ऊर्जा मिलती है साथ ही यह शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए भी जरूरी है इसलिए अपने बच्चों को प्रोटीन युक्त आहार अवश्य ही दें। जिन भोज्य पदार्थों में प्रोटीन की अधिकता रहती है वे हैं- दूध व दूध से बने उत्पाद, अनाज, दालें, मीट, मछली, अंडा तथा सूखे मेवे इसके अतिरिक्त भूनी हुई मूंगफली व भुने चने सस्ते होने के साथ-साथ प्रोटीन प्राप्ति के अच्छे स्रोत हैं तथा इन्हें बच्चे भी खुशी से खाते हैं।

प्रोटीन की ही भांति कार्बोहाइड्रेट व वसा का सेवन बच्चों के लिए लाभदायक होता है, इससे भी ऊर्जा की प्राप्ति होती है। कार्बोहाइड्रेट आसानी से आलू, शकरकंद, चावल, मीठे फल (आम-केला- चीकू-अंगूर आदि) व शक्कर-गुड़ से मिलता है तथा वसा घी-तेल इत्यादि से प्राप्त होती है।

बच्चों के भोजन में सब्जियों तथा फलों को भी अवश्य शामिल करें, इससे कई ज़रूरी पोषक तत्त्वों की शरीर को पूर्ति हो जाती है, सदैव फलों का जूस ही न देकर साबुत फल भी छिलके सहित काटकर बच्चे को खाने को दें।

सब्जि़यां पकाते हुए भी इस बात का ध्यान रखें कि एक तो सब्जि़यों को काटने से पहले धोएं, बड़े टुकड़ो में काटें और धीमी आंच पर कम पानी में ढककर पकायें व पकाने के पश्चात बार-बार गर्म भी ना करें, इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने से इनमें मौजूद विटामिन्स तथा मिनरल्स नष्ट नहीं
होते हैं। संतुलित भोजन के साथ-साथ बच्चों को सदैव पानी भी साफ व उचित मात्रा में पिलाना
चाहिए और जहां तक संभव हो बच्चों को बाज़ार के बने भोज्य पदार्थ खिलाने से परहेज करना चाहिए तथा घर पर तैयार किए हुए भोजन को खिलाने की आदत डालनी चाहिए।

समय और स्वाद का भी रखें ख्याल

पौष्टिक भोजन खिलाने के साथ-साथ यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाये तो निश्चित ही आपका
बच्चा बिना कोई आनाकानी किये हुए खुश होकर मन से भोजन करेगा।

01. बच्चों को सदैव भोजन निश्चित समय पर तथा उचित अंतराल पर दें, इससे एक तो उनमें बारबार
खाने की आदत नहीं पड़ती है और पाचन क्रिया भी सही रहती है।

02. अधिक खाना खाने के लिए बच्चों के साथ कभी भी ज़बरदस्ती न करें, यदि आपको ऐसा लगता है कि कहीं बच्चा भूखा न हो तो इसके लिए अपने मन को समझाएं कि बच्चा कभी भी भूखा नहीं रहता है। कभी बीमार होने पर या पेट भर जाने के कारण ही वह खाने से इंकार करता है अन्यथा वह अपनी उम्र व भूख के अनुसार खा ही लेता है। अत: जब भी बच्चा खाने के लिए इंकार करे तो ज़बरदस्ती करने की बजाय उसके ना खाने के कारण को जानने की कोशिश करें।

03. कई बार बच्चे एक ही तरह का भोजन करते-करते ऊब जाते हैं व खाने के प्रति अरुचि दिखाते हैं, अत: भोजन के रंग में व उसके प्रकार में विभिन्नता लानी अत्यंत आवश्यक है। जैसे यदि बच्चा दूध पीने में आनाकानी कर रहा है तो आप दूध में मिलाने वाला कोई भी पौष्टिक पाउडर (बॉर्नविटा या कॉम्ह्रश्वलान) मिलाकर पीने को दें, इससे कई बार दूध का रंग व स्वाद बदलने से बच्चा खुश होकर पी लेता है, इसके अलावा दलिया, खीर, कस्टर्ड या आइसक्रीम बनाकर भी दे सकती हैं।

इस प्रकार रोज नाश्ते में अंडा या खाने में दालसब्ज़ी खाना भी पसंद नहीं करता है तब इनसे भी विभिन्न व्यंजन बनाकर खिला सकती हैं। कहने का तात्पर्य है, कभी-कभी थोड़ी सी सूझबूझ से किसी भी खाद्य पदार्थ में विविधता ला कर बच्चे को खाने को देती रहें, बच्चा भी खुश आप भी खुश।

04. यदि आप बच्चे को कोई विशेष भोज्य पदार्थ खाने को दें और वह ना खाए तब भी डांटकर खिलाने का प्रयत्न ना करें। बच्चा क्यों नहीं खा रहा है यह मालूम करने की कोशिश करें क्योंकि कई बार बच्चों को स्वाद नहीं अच्छा लगता है तथा कई बार नमक या अन्य मसालों के ज्यादा होने पर भी वह नहीं खा पाता है, हर बार ज़बरदस्ती खाना खिलाने की आदत ना डालें सेहत की दृष्टि से भी यह लाभदायक नहीं है।

05. बच्चों को खाना भी साफ-सुथरे, शांत व मधुर वातावरण में ही खिलाएं तथा यह भी ध्यान रखें कि खाना खाते हुए बच्चा व स्वयं आप भी तनावग्रस्त न हों। कभी-कभी बच्चों को रंग-बिरंगे बर्तनों में और कहानी या कविता आदि सुनाते हुए भी खाना खिलाएं तथा जिस जगह बच्चा खाना खाए वहां पर प्रकाश की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

उम्र के अनुसार हो आहार

यदि आपका बच्चा स्कूल जाता है तो उसे शारीरिक व मानसिक रूप से अधिक श्रम करना पड़ता है, इस उम्र में उसे अधिक पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है, इसलिए बच्चे के भोजन पर ध्यान देना अनिवार्य हो जाता है। स्कूल जाने वाले बच्चों को भूख भी अधिक लगती है क्योंकि एक तो पढ़ाई का दबाव उन पर हावी होने लगता है और अन्य बच्चों को खाते देख वे भी खाने में रुचि लेने लगते हैं।

अत: बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पूरे दिन में क्या-क्या खाने को दें, इसकी एक आहारतालि का बना सकती हैं। हफ्ते में कोई एक दिन बच्चे को जंक फूड पिज्जा, बर्गर दे सकती हैं, इसके अलावा साउथ इंडियन रेसिपी डोसा-साम्भर या इडली भी देती रहें तो अच्छा है क्योंकि दाल अनाज व सब्ज़ी
सब एक साथ बच्चे के खाने में आ जाते हैं। यदि आप अपने बच्चों को स्वस्थ रखना चाहती हैं तो उनके साथ खाने में ज़बरदस्ती न करें और संतुलित आहार ही खिलाकर बच्चों की खाने के प्रति रुचि उत्पन्न करें, इन्हीं सब छोटीछोटी बातों को ध्यान में रखकर जहां आप आदर्श व ह्रश्वयारी मां कहलाएंगी वहीं आपका बच्चा भी सेहतमंद रहेगा।

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