gunahon ka Saudagar by rahul | Hindi Novel | Grehlakshmi
gunahon ka Saudagar by rahul

दूसरे दिन शाम को एक छोटे से पार्क में अमर, दीपा और प्रेमप्रताप तथा अमृत इकट्ठे हुए। सबसे पहले दीपा ने अमर और अमृत से पूछा‒“तुम लोग सगाई में क्यों नहीं आए ?”

अमर ने जवाब दिया‒“हम नहीं चाहते थे कि मुझे और अमृत को साथ देखा जाए और हमारा तुमसे किसी प्रकार का सम्बन्ध प्रकट हो, वरना हमारा षड्यंत्र समझा जाता।”

गुनाहों का सौदागर नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

दीपा ने प्रेमप्रताप की तरफ देखा और बोली‒“क्या प्रेमबाबू को सबकुछ मालूम है ?”

“प्रेमबाबू, अब पहले जैसे प्रेमबाबू नहीं हैं। उन्हें जितना मालूम है, उससे आगे हम लोग उन्हें बता देंगे।”

प्रेमप्रताप ने दीपा से कहा‒“मेरे डैडी और शेरवानी चाहते थे कि चेतन की मौत इस सगाई को टालने का बहाना बन जाए और समय के साथ-साथ लोग यह घटना भूल जाएं।”

उसने अमर की तरफ देखा और बोला‒“लेकिन अमर भैया ने अगर मेरे ऊपर एक बहुत उपकार न किया होता तो शायद यह नया प्रेम तुम्हारे सामने न होता। अब यह सगाई सिर्फ एक दिखावे की सगाई नहीं है। मैं अपनी शिक्षा पूरी करते ही इस सगाई को शादी में बदल दूंगा।”

दीपा के होंठों पर अच्छी-सी मुस्कान फैल गई उसने कहा‒“सचमुच अमर भैया जादूगर हैं। अगर उस दिन यह मुझे मंदिर की सीढ़ियों पर न रोकते तो मैं मंदिर के अन्दर जाने के लिए बिरादरी बुला लेती और पता नहीं क्या हो जाता।”

अमर ने कहा‒“अच्छा दीपा। अब तुम घर जाओ। तुमसे कोई काम होगा तो हम खुद तुमसे कांटेक्ट करेंगे।”

“ठीक है भैया। लेकिन मैं चाहूंगी कि प्रेमबाबू के सामने कोई बात गुप्त न रहे। उन्होंने मुझे अपनाने का गम्भीरता से फैसला किया है तो जीवन साथियों के बीच ऐसा कुछ नहीं छिपा रहना चाहिए, जिसका रहस्योद्घाटन शादी के बाद दोनों के बीच कटुता का कारण बने।”

“तुम निश्चिन्त रहो। अब यह मेरी जिम्मेदारी है।”

दीपा के जाने के बाद अमर ने विस्तार से प्रेमप्रताप के बारे में बताया कि उसने किस प्रकार दीपा के द्वारा प्रेम और चौहान को फंसवाया था।

प्रेमप्रताप पर उसका कोई रिएक्शन नहीं हुआ। उसने कहा‒“तुम्हारी इस चाल ने कम से कम मुझे मेरे डैडी की असली सूरत तो दिखा दी। मैं और चेतन अच्छे थे या बुरे‒लेकिन हम दोनों बहुत गहरे दोस्त थे।”

“तुम दोनों का एक तीसरा दोस्त शौकत भी तो था।”

“हां, लेकिन चेतन का मेरा बचपन का साथ था और शौकत हम दोनों को दसवीं क्लास से मिला था। इसके अलावा वे हम दोनों से उम्र में भी छोटा था।

“वह शेरवानी साहब का भानजा और लेपालक बेटा था। उसमें कुछ ऐब भी थे। वैसे, जो कम से कम मुझमें और चेतन में नहीं थे। लेकिन वह अचानक कहां लापता हो गया, कुछ पता नहीं।”

अमर और अमृत ने एक-दूसरे की तरफ देखा। लेकिन प्रेम की आखिरी बात का जवाब नहीं दिया।

अमर ने कुछ पल रुककर पूछा‒“शौकत ने तुम्हारे और चौहान के साथ कुछ लड़कियों को रेप भी किया था ?”

“हां, हम लोगों ने ये पाप किए हैं।”

“सिर्फ वासना से मजबूर होकर ?”

“शराब-कबाब के आदी को शबाब की जरूरत खुद-ब-खुद पड़ जाती है। लेकिन आमतौर पर आसानी से हाथ आ जाने वाली लड़की को इन्डीकेट शौकत ही करता था।”

“ओहो…!”

“एक बार उसने सलमा नामक एक लड़की को इन्डीकेट किया। वह किसी कारखाने के हेड मिस्त्री की बेटी थी, जो डाईयां बनाता था। अब्दुल्ला उसका नाम था। जिस कारखाने में उसने दस वर्ष काम किया, उस कारखाने के मालिक ने दस वर्ष में मिस्त्री की कला से कम से कम एक करोड़ रुपया कमाया।”

‘लेकिन जब सलमा की शादी का समय आया और मिस्त्री ने पच्चीस हजार एडवांस मांगे तो मालिक ने साफ इन्कार कर दिया।”

“अब्दुल्ला को एक-दूसरे कारखानेदार ने पचास हजार एडवांस देकर लपक लिया। अब्दुल्ला ने सलमा की शादी धूमधाम से करने की तैयारियां शुरू कर दीं।”

“अब्दुल्ला के पहले मालिक और शेरवानी साहब के गहरे सम्बन्ध हैं। इसलिए कि शेरवानी साहब के कैन्डीडेट को इलेक्शन लड़ने के लिए शेरवानी साहब को वह भी चन्दा देता था। उसने शेरवानी साहब से कहा कि अब्दुल्ला को सीख मिलनी चाहिए।”

प्रेमप्रताप ने ठंडी सांस ली और बोला‒“और शेरवानी ने सीख देने का काम शौकत को सौंप दिया। शौकत ने मेरे और चेतन के साथ मिलकर सलमा का अपहरण कर लिया।”

“उसकी इज्जत हम तीनों ने मिलकर लूटी, ताकि उसकी शादी ही न हो सके। वह इतनी स्वाभिमानी लड़की थी कि जैसे ही हमने उसे छोड़ा, उसने हमारे सामने ही रेल के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली।”

प्रेमप्रताप की आंखों में यंत्रणा नजर आई और वह बोला‒“शायद पहली बार मुझे किसी लड़की पर तरस आया था, क्योंकि वह लड़की सलमा, उस हरामी शौकत को शौकत भाई कहती थी और शौकत ही उसे बहाने से लाया था।”

अमर और अमृत की आंखों में भी वेदना झलक रही थी।

अमर ने कहा‒“तुम्हें यह कैसे पता चला कि सलमा के साथ जो कुछ हुआ, अब्दुल्ला को दण्ड देने के लिए हुआ था।”

“उस हरामी शौकत ने खुद ही बताया। जब दूसरे दिन हमें मिला तो बहुत खुश था। कहकहे लगा रहा था। मुझे और चौहान को एक बड़े होटल में ट्रीट दी और बताया कि उस ट्रीट कि लिए रकम उसे शेरवानी ने दी थी, जो शेरवानी को अब्दुल्ला के पहले मालिक ने दी थी और अब्दुल्ला, सलमा के रेप और मौत के आघात से पागल हो गया।”

प्रेमप्रताप ने और भी ऐसी कई घटनाएं बताईं, जिनमें अधिकांश ऐसी ही लड़कियों को रेप किया गया था, जिनके घरवालों से किसी न किसी तरह बदला लेना था।

उसने बताया‒“एक लड़की आशा का हम तीनों ने अपहरण किया था। उसे चौहान ने ‘सजेस्ट’ किया था, क्योंकि आशा का बाप अचानक चौहान की पार्टी छोड़कर एक दूसरी पार्टी में जा मिला था।”

“उस दल-बदल के दण्डस्वरूप उसे अपनी बेटी की लाज से हाथ धोने पड़े। उसका रिश्ता टूट गया। फिर उसकी शादी एक रिक्शापुलर से करनी पड़ी।”

अमर ने आखिर में पूछा‒“तुम लोगों ने ऐसी किसी लड़की का मर्डर भी किया था ?”

“एक लड़की का मर्डर करना पड़ा था। लेकिन वह मर्डर शौकत और चेतन ने मिलकर किया था।”

“क्यों…?”

“हम लोग किसी और लड़की को उठाना चाहते थे। भूल से उसे उठा लाए। बाद में पता चला कि वह लड़की चेतन के पिता के दोस्त की बेटी है। दोस्त भी छोटा-मोटा नहीं कारखानेदार, जो शायद कारखानेदार को भी हिलाकर रख देता।”

“ओहो…”

“मजबूर होकर उसे रेप करने के बाद कत्ल करना पड़ा। लेकिन उसके हाथ-पांव चेतन ने पकड़े और शौकत ने उसका गला घोंट। फिर उसे कमर से पत्थर बांधकर एक पुराने निर्जन इलाके के कुएं में फेंक दिया गया।”

“यानी तुम लोगों को मासूम लड़कियों के अपहरण और रेप की खुली छूट तुम लोगों के पिताओं ही की तरफ से थी।”

प्रेमप्रताप ने होंठ सिकोड़कर कहा‒“अब इसमें भी किसी सन्देह की गुंजाइश है।”

“और यह लूटमार…डकैती कर छूट…?”

प्रेमप्रताप कड़वी-सी मुस्कान के साथ अमर की तरफ देखकर बोला‒“जो कुछ मैं बताऊंगा। शायद तुम उस पर विश्वास नहीं करोगे।”

“मैं जानता हूं कि अब तुम झूठ नहीं बोलते।”

“हम लोगों को यानी मुझे, चेतन और शौकत को हरिनगर के पूरे सिविल लाइन का इलाका सौंपा गया था, राह चलते और दिन में या रात में किसी भी समय चाकू की नोक पर यार रिवाल्वर की नोक पर किसी की भी पगड़ी उतार लेना, जेब खाली करा लेना, जरूरत पड़े तो जख्मी तक कर देना।”

“जहां इक्का-दुक्का दुकान खुली मिल जाए, उसे लूट लेना। किसी घर में कोई औरत अकेली हो, उस घर में घुसकर जेवरात, नकदी लूट लेना। जी चाहे तो औरत को भी रेप कर लेना।”

“ओहो…!”

“हम लोगों के खिलाफ पचास रिपोर्टों के बाद एक रिपोर्ट पर औपचारिक कार्रवाई होती और वह भी इस प्रकार खत्म हो जाती, जैसे हम लाला सुखीराम की दुकान लूटने के केस से साफ बचा लिए गए और उल्टे तुम्हें सस्पैंड होना पड़ा।”

“यह छूट किसकी तरफ से थी ?”

“चौहान की तरफ से। हमारे बचाव की जिम्मेदारी भी चौहान और शेरवानी पर थी। शरदपुर थाने का इन्चार्ज इन्स्पेक्टर दीक्षित बाकायदा हर महीने अपनी तनख्वाह से दुगनी रकम शेरवानी के हाथों से प्राप्त करता है।”

“और बाकी स्टाफ ?”

“उन्हें भी कुछ न कुछ मिलता ही होगा।”

“एस॰ एस॰ पी॰, एस॰ पी॰ सिटी और डी॰ एम॰ साहब ?”

“इन लोगों में से कोई कड़क निकल आए तो चौहान ऊपर से टेलीफोन मंगवा लेता है।”

“तो तुम्हें सिविल लाइन से बाहर जाकर कुछ करने की जरूरत नहीं थी ?”

“नहीं। रेवले लाइन पार के पुराने शहर में यही सबकुछ करने का काम शेरवानी ने पांच नौजवान गुण्डों के एक दल को सौंप रखा है।”

“तुम्हें उन पांचों के नाम मालूम हैं ?”

“खुलेआम दनदनाते फिरते हैं। सब जानते हैं। अभी पुराने शहर का एक छोटा कारखानेदार अट्ठारह हजार रुपए वसूल करके ला रहा था। एक गली के मोड़ से उसे खींचकर पांचों अकेले में ले गए।”

“उसके रुपए छीने। उसने बचाव किया तो पेट में चाकू मार दिया। लगभग एक दर्जन लोगों ने वह कांड देखा। किसी ने पुलिस को भी फोन कर दिया। लेकिन पुलिस घायल को उठाने के लिए पूरे दो घंटे बाद पहुंची।”

“किसी ने गवाही दी ?”

“एक मौलाना ने मस्जिद में से देख लिया था। उन्होंने पुलिस आने पर गवाही दे दी कि उन्होंने पांचों को देखा है। पुलिस उन्हें साथ ले गई।”

“उस मोहल्ले की एक औरत ने उन गुण्डों के हेड साबिर के कहने पर मौलाना के विरुद्ध छेड़छाड़ और हाथापाई की रिपोर्ट दर्ज करा दी।”

“वह चालू औरत है। मौलाना की जमानत भी नहीं हुई, जेल में सड़ रहे हैं। और अब कोई साबिर और उसके चारों साथियों के खिलाफ गवाही देने की हिम्मत भी नहीं करता।”

“हूं। यानी हरिनगर के दोनों इलाकों के गुण्डों को दो ग्रुपों में बांट दिया गया है‒“डकैटी, लूटमार, चाकूमारी और बलात्कार के लिए !”

“हां…!”

“इसका मतलब है, जो केस हरिनगर से सम्बन्धित जिलों में हो रहे हैं, उनमें भी अलग-अलग ग्रुप होंगे यह सब करने वाले।”

“यकीनन होंगे।”

“इस सबका उद्देश्य ?”

“हम जवान लोगों को आम खाने से मतलब होता है। पेड़ गिनने के लिए कौन सोचता है ?”

“हूं…और तुम नौजवानों को तुम्हारे ही अभिभावक इस रास्ते पर डालते हैं ?”

“अब तो खुलकर सामने आ गया है।”

“चौहान तो रूलिंग पार्टी का एम॰ एल॰ ए॰ है। इस अराजकता और आंतक से वह अपनी ही पार्टी को बदनाम क्यों कर रहा है ?”

“शायद इसलिए कि वह एम॰ पी॰ बनना चाहता था। लेकिन उसे हाईकमान ने एम॰ एल॰ ए॰ बनवा दिया। एम॰ पी॰ की सीट के लिए एक ऐसे सिख को चुना गया, जो खालिस्तान समर्थक था और अब वह सेंट्रल में मंत्री है।”

“तो चौहान इस बात का बदला ले रहा है ?”

“और क्या सोचा जा सकता है !”

“लेकिन शेरवानी और तुम्हारे डैडी क्यों चौहान का साथ दे रहे हैं।”

“उनका कोई हित होगा, जो मुझे नहीं मालूम। वैसे डैडी एक लट्ठ टाइप के पूंजीपति हैं, कठोर भी। मगर राजनीतिक दांव-पेंच वह शेरवानी या चौहान की तरह नहीं जानते।”

“क्या सचमुच चौहान दीपा और चेतन की सगाई पर सहमत था ?”

“प्रचार ! उसने तो बड़ी चालाकी से चेतन को बचाकर मुझे फंसा दिया था उस समय।”

“और हरिजनों की बस्ती में अपने बेटे की मौत का भी राजनीतिक लाभ उठाने से नहीं चूका। जहां सेठ जगताप…जिन्दाबाद के नारे लगने चाहिए थे, वहां अपनी जय-जयकार करवा ली।”

“दूसरी तरफ उसने अपने बेटे की हत्या को आत्महत्या साबित करके इन्स्पेक्टर दीक्षित को भी बचा लिया।”

प्रेमप्रताप ने चौंककर कहा‒“क्या ? इन्स्पेक्टर दीक्षित बच गया ?”

“बिल्कुल, उसकी वर्दी भी शरीर पर है, कुर्सी भी उसके नीचे है। रिवाल्वर पर खुद चेतन के ही हाथों के निशान बना लिए गये हैं।”

“इसका मतलब है, अब इन्स्पेक्टर दीक्षित चौहान की सच्चाई बता देगा कि किस प्रकार डैडी और शेरवानी ने मेरे हाथों चेतन का खून करा दिया और दीपा से मेरी सगाई कराने की भी कोशिश की।”

“जाहिर है…बता देगा…।”

“और चौहान शेरवानी और डैडी को चारों खाने चित करने की कोशिश करेगा।”

“बेशक…!”

प्रेमप्रताप ने ठण्डी सांस ली और बोला‒“इस हमाम में सब नंगे हैं। मगर अब मुझे क्या करना है ?”

अमर ने कहा‒“अब तुम अकेले हो। इसलिए सिविल लाइन का एरिया शायद किसी दूसरे ग्रुप को सौंप दिया जाए।”

“वैसे भी कर दिया जायेगा, क्योंकि हम तीन के ग्रुप को चेतन लीड करता था। वह मर चुका है। चौहान मुझे सेठ जगताप के बेटे की हैसियत से यह काम अब सौंपेगा नहीं और शौकत लापता है।”

“इसलिए तुम चुपचाप कॉलेज जाते रहो।”

“मगर चौहान शायद मुझे जिंदा नहीं रहने देगा। वह एक ऐसा नाग है, जो अपने दुश्मन से हजार वर्ष बाद भी बदला ले सकता है। फिर मैं तो उसके बेटे का खूनी हूं। भेद इन्स्पेक्टर दीक्षित उसे बता चुका होगा।”

“तुम्हारी सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा उचित जगह तुम्हारे डैडी की कोठी है। बेहतर होगी कि कुछ दिनों के लिए तुम कॉलेज ही मत जाओ, किसी भी बीमारी या टेंशन के बहाने !”

“ठीक है…!”

अमृत ने कहा‒“लेकिन इस समय भी प्रेम को अकेला नहीं जाना चाहिए। हम दोनों उसे पहुंचा देते हैं।”

अमर ने गंभीरता से कहा‒“नहीं, तुम इतने खुलकर सामने मत आओ। तुम दुकानदार हो। मैं एक सस्पेंडेड सिपाही हूं। मैं प्रेम के साथ कार में चला जाता हूं।”

“और कोई खास बात ?”

“बाद में तय करेंगे। अभी तो जानकारी का भंडार इकट्ठा कर रहे हैं।”

वे तीनों उठ गये।

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