Motivational Story in Hindi: रेहू अपने आफिस में बैठी काम कर रही थी कि सोमा ने उसकी बराबर की सीट पर बैठते हुए चाय वाले को उसके लिए भी चाय का आर्डर दिया।
रेहू , थोड़ा कुर्सी पर पीठ टिका कर आराम कर ले, नहीं तो बैक में दर्द ठहर जाएगा।
नहीं सोमा, ये फाइल शाम से पहले निबटानी है।रेहू ने फाइल में सिर दिए ही कहा।
तभी चाय वाला चाय सीट पर रख गया।
अब मैं तेरी नहीं सुनूंगी, सीधे होकर पहले चाय का कप पकड़, और थोड़ा आफिस का हाल सुन।
रेहू भी पीठ पर हाथ फेरते हुए सीधी हो चाय पीने लगी। चाय पीते, समोसा खाते हुए दोनों अपनी अपनी बातों में व्यस्त हो गयी।
चाय पीकर सोमा अपनी सीट पर चली गई, और रेहू फिर से फाइल देखने लगी। काम खत्म करते उसे फिर से 7बज गये।
उसने टेबल संभाल कर, आफिस के बाहर का रस्ता लिया। सोमा भी अपनी बस लेकर जा चुकी होगी।बस स्टाप पर आकर उसे प्रवीण भी कहीं नजर नहीं आया, पता नहीं शायद उसकी बस आ गई होगी, तभी सामने से उसे अपनी बस आते नजर आयी,वह शेड से निकल कर बस में चढ़ गई।
बस खाली तो नहीं थी,पर कैसे भी करके उसे बैठने को सीट मिल गई।
सोच का एक तेज झोंका आया और वह प्रवीण तक पहुंचा गया। उसे याद आया प्रवीण की मां के कहे शब्द याद आ गये।वह मां से मिलाने अपने घर ले गया था। उसकी मां ने उससे बात करने के बाद कहा,देखो शादी तो हम अच्छी ही चाहेंगे तुम्हारी तरफ से, आखिर हमारे भी दस मिलने जुलने वाले हैं। तुम्हारे पिता की परचून की दुकान है, काफी समय से ही है,।
अब रेहू क्या कहती कि दुकान से घर ही मुश्किल से चल पाता है।वह सब सुन कर वापस आ गयी प्रवीण को भी मां की बात जंची नहीं,पर उसने मां को मना भी नहीं किया।
घर आकर रेहू ने पिता के आगे सारा वाकया सुनाया, पिता काफी सोच-विचार कर बोले कि मैं बैंक से लोन ले लेता हूं, दूकान की कमाई से एक हिस्सा लोन के लिए रख दूंगा।पर रेहू ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि उसके लिए जरूरी नहीं है, वह जब इतना पैसा कमाने लायक हो जाएगी, तब शादी कर लेगी, हालांकि पिता जी और मां को यह बात ठीक नहीं लगी।
प्रवीण एक आफिस में कम्प्यूटर आपरेटर के पद पर था। वह व रेहू जब पढ़ते थे,तब से एक दूसरे को जानते थे। दोनों की दोस्ती प्यार में कब बदल गई , ये बहुत बाद में समझ पाए।पर दोनों का प्यार परवान चढ़ते हुए मर्यादा में ही रहा। प्रवीण एक सुलझा हुआ नवयुवक था। उसने सदैव रेहू की भावनाओं की कद्र की,पर अपनी मां को नहीं समझा पा रहा था। और आखिर मां भी तो अपनी जगह ठीक ही थी,ले दे कर एक वही तो उनकी दुनिया में था। पिता के जाने के बाद एक सिलाई सेंटर में काम करके उन्होंने प्रवीण को अपने पैरों पर खड़ा किया। कोई और भाई बहन न होने से उनकी सारी केंद्रिता केवल प्रवीण ही था। अब वह इतना कमा लेती थी कि घर अच्छे से चल जाता था। तभी प्रवीण का तीन साल का कोर्स आ गया।पर उन्होंने बिना किसी बाधा के उसका कोर्स पूरा करवाया। इसी बीच उसे रेहू से प्यार हो गया।रेहू ये सोच ही रही थी कि उसका स्टाप आ गया।
घर पर पिता जी उसी का इंतजार कर रहे थे और देखकर आश्चर्य हुआ कि प्रवीण भी उनके साथ ही था। चाय नाश्ता करने के बाद प्रवीण बोला कि उसने शादी के बारे में क्या सोचा,रेहू बोली शादी अभी नहीं कर सकते।
पर रेहू मैं अब तुम्हारे बिना ज्यादा दिन नहीं रह सकता। वह सबके सामने ही रेहू का हाथ पकड़ कर बोला।
तुम कहो तो हम कल ही कोर्ट मैरिज कर लें, मां बाद में मान ही जाएगी।
नहीं प्रवीण मैं मां को इस तरह हर्ट नहीं कर सकती। आखिर उन्होंने तुम्हें इतनी मेहनत कर पाला है।
पर तुम्हीं बताओ प्रवीण मैं पिताजी से भी उनकी जीवन भर की कमाई शादी पर लगाने के लिए कैसे कह दूं।रोहित और मां भी तो है पीछे। दुकान की अभी इतनी कमाई नहीं है।
तो तुम्हीं बताओ रेहू हम क्या करें।
मैं कुछ साल पहले पैसा कमाना चाहती हूं ताकि शादी में लिया जाने वाला कर्ज उतार सकूं। तुम चाहो तो प्रवीण इतने इंतजार के लिए बाध्य नहीं हो
प्रवीण बड़ी कठिन है डगर पनघट की। इस पर चलना या न चलना तुम्हारी मर्जी है। और प्रवीण बिना किसी नतीजे पर पहुंचे वहां से चला आया।
रेहू ने खुद को काम में डुबो दिया। वह एक नौकरी से दूसरी अच्छी नौकरी पाती चली गई। प्रवीण और रेहू पहले की तरह मिलना नहीं रहा,पर कभी कभी मिल लेते थे। दोनों में से कोई भी शादी के लिए ज़िद नहीं करता था।
प्रवीण , एक बहुत ही सुन्दर लड़की का रिश्ता तेरे लिए आया है,देख कर हां कह दे। एक दिन उसकी मां ने कहा।
नहीं मां, मैं शादी करूंगा तो बस, रेहू से ही। वरना नहीं।
तो ठीक है हम ही उन्हें मंदिर में ले जाकर शादी कर लेते हैं। प्रवीण कुछ नहीं बोला।
ऐसे ही दो साल बीत गए। एक दिन रेहू के पिता ने प्रवीण को अपने घर बुलाया और उससे शादी के बारे में पूछा।
प्रवीण बोला, मैं तो शादी करूंगा तो रेहू से ही।अगर रेहू मान जाती है।
तो पिताजी आप इनके घर जाकर बात कर आओ, क्यों कि अब कठिन डगर , कठिन नहीं रही, हमारी मेहनत ने उसे आसान कर पनघट पर जाने लायक बना दिया है।
बहुत कठिन है डगर पनघट की -गृहलक्ष्मी की कहानियां
