Mulla Nasruddin
Mulla Nasruddin

Mulla Nasruddin ki kahaniya: नसरुद्दीन ने बाज़ार में वक्त बर्बाद करना ठीक नहीं समझा। एक-एक मिनट क़ीमती था। एक सिपाही का जबड़ा, दूसरे के दाँत और तीसरे की नाक तोड़ता हुआ वह सही सलामत अली के कहवाघर में पहुँच गया। पिछवाड़े वाले कमरे में जाकर उसने जनाने कपड़े उतारे। बदख्शाँ का रंगीन साफा बाँधा । नकली दाढ़ी लगाई और एक ऊँची जगह बैठकर लड़ाई का नज़ारा देखने लगा।
भीड़ से घिरे सिपाहियों ने भीड़ के हमले का डटकर मुकाबला करना शुरू कर दिया था। अचानक उसने कच्चे अंडे खानेवाले सिपाही को दर्द से चीखते-चिल्लाते देखा। अली ने उस पर गर्मागर्म कहवा उडेल दिया था, जो उसकी मोटी गर्दन पर पड़ा था। वह पीठ के बल ज़मीन पर गिर पड़ा था और हाथ-पैर हवा में फेंक रहा
था।

अचानक एक बूढ़ी की काँपती हुई आवाज़ सुनाई दी –

‘मुझे जाने दो, अल्लाह के नाम पर मुझे जाने दो। यहाँ यह क्या हो रहा है?’

कहवाघर के पास ही लड़ाई के बीचों-बीच झुकी पतली नाक और सफ़ेद दाढ़ीवाला एक आदमी ऊँट पर बैठा दिखाई दिया। सूरत – शकल से वह अरब दिखाई दे रहा था। उसकी पगड़ी का शमला टँका हुआ था, जिससे पता चलता था कि वह आलिम (विद्वान) है। डर के मारे वह ऊँट के कूबड़ से चिपका हुआ था। उसके चारों ओर मार-काट मची हुई थी। एक आदमी उसकी टाँग पकड़कर ऊँट पर से उतारने की कोशिश कर रहा था। बूढ़ा बुरी तरह छटपटा रहा था। चीख-पुकार और शोर-गुल से कान के पर्दे फटे जा रहे थे।

सुरक्षित स्थान में पहुँचने की जी तोड़ कोशिश के बाद बूढ़ा कहवाघर पहुँचने में सफल हो गया। वह लड़खड़ाते हुए ऊँट से उतरा और अपना ऊँट ख़्वाजा नसरुद्दीन के गधे के पास बाँध दिया और बरामदे में चढ़ गया।

‘बिस्मिलाहिर्रहमानुर्रहीम ! इस शहर में यह हो क्या रहा है?’

‘बाज़ार’ नसरुद्दीन ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

‘क्या बुखारा में ऐसा ही बाज़ार लगता है? मैं महल तक कैसे पहुँचूँगा?’

‘महल’ शब्द के सुनते ही नसरुद्दीन समझ गया कि इस बुजुर्ग आदमी की मुलाक़ात में ही वह मौका छिपा हुआ है, जिसका वह इंतज़ार कर रहा था। जिससे वह अमीर के हरम में घुसकर गुलजान को बचाकर ला सकता है।

बुजुर्ग ने कराहकर लंबी साँसें लेते हुए कहा, ‘ऐ पाक परवरदिगार, मैं महल तक कैसे पहुँचूँगा?’

‘कल तक इंतज़ार कीजिएगा।’ नसरुद्दीन ने कहा।

‘मैं कल तक नहीं ठहर सकता। महल में मेरा इंतज़ार हो रहा होगा। ‘
‘आला हजरत ! मैं न तो आपका नाम जानता हूँ, न पेशा। लेकिन क्या आपको यकीन है कि महल में रहनेवाले कल तक आपका इंतज़ार नहीं कर सकते ? बुखारा के बहुत से लोग महल में जाने के लिए हफ्तों इंतज़ार करते रहते हैं। ‘
नसरुद्दीन की बात से गुस्सा होकर बुजुर्ग ने कहा, ‘तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं एक बहुत मशहूर काबिल ज्योतिषी और हकीम हूँ। अमीर की दावत पर मैं बगदाद से आ रहा हूँ। सल्तनत का काम चलाने में अमीर की मदद करने। ‘
अत्यधिक सम्मान प्रदर्शित करते हुए नसरुद्दीन ने झुककर कहा, ‘ओह! खुश आमदीद (स्वागत है) आलिम
शेख। एक बार मैं बगदाद गया था, इसलिए वहाँ के आलिमों को जानता हूँ। आपका शुभ नाम ?’

अगर तुम बगदाद गए हो तो तुम्हें पता होगा कि मैंने ख़लीफ़ा की क्या-क्या खिदमतें की हैं। मैंने उनके प्यारे बेटे की जान बचाई थी। इस बात का सारे मुल्क में ऐलान भी किया गया था। मेरा नाम मौलाना हुसैन है । ‘

‘मौलाना हुसैन ?’ नसरुद्दीन ने आश्चर्य भरे लहजे में कहा, ‘क्या आप खुद मौलाना हुसैन हैं?’

मौलाना हुसैन को बगदाद से यहाँ इतनी दूर तक फैली अपनी प्रसिद्धि देखकर बड़ी खुशी हुई। लेकिन उसे छिपाने की असफल कोशिश करते हुए बोले, ‘तुम्हें हैरानी क्यों हो रही है। हाँ, आलिमों में सबसे बड़ा आलिम, इलाज करने और सितारों को पढ़ने के हुनर में माहिर मशहूर आलिम मौलाना हुसैन मैं ही हूँ। लेकिन मुझमें घमंड नाम को भी नहीं है। देखो ना, मैं तुम जैसे नाचीज़ आदमी से भी कितनी नर्मी से बातें कर रहा हूँ । ‘

बुजुर्ग ने हाथ बढ़ाकर मसनद उठाई और उस पर कोहनी टिकायी। वह नसरुद्दीन को अपनी विदा के बारे में बताने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें पूरी उम्मीद हो गई थी कि यह आदमी इस मुलाक़ात की चर्चा बढ़ा-चढ़ाकर जगह-जगह करेगा। जिन लोगों की मुलाक़ात बड़े आदमियों से हो जाती है, वे ऐसा ही करते हैं। यह सोचकर मौलाना हुसैन ने सोचा, ‘ज़रूर यह आदमी मेरी शोहरत आम आदमियों तक फैला देगा; और आम आदमियों में होने वाली शोहरत जासूसों के जरिये अमीर के कानों तक पहुँचेगी और मेरी अक्लमंदी का सिक्का जम जाएगा। नसरुद्दीन पर अपनी विद्वत्ता की धाक जमाने के लिए उन्होंने बहुत सारे वाक्य दोहराये और सितारों के योग और उनके आपसी संबंध बताने लगे।
नसरुद्दीन बड़े ध्यान से सुनता रहा और हर शब्द को याद करने की कोशिश करता रहा। फिर बोला, ‘नहीं, मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा है कि आप सचमुच मौलाना हुसैन ही हैं। ‘

‘इसमें हैरानी की क्या बात है?’

अचानक नसरुद्दीन ने तरस और डर भरी आवाज़ में कहा, ‘ऐ बदनसीब मौलाना हुसैन, आ गए । ‘

बुजुर्ग के हाथ से कहवे का गिलास छूटकर गिर गया। उसकी सारी अकड़ और शेखी गायब हो गई, ‘क्यों? क्यों? क्या बात हुई?’ उसने परेशानी से पूछा ।

बाज़ार की ओर इशारा करते हुए नसरुद्दीन ने कहा,’क्या आपको मालूम
नहीं कि यह सारी गड़बड़ी आपकी वजह से ही हो रही है। हमारे अमीर के कानों तक यह बात पहुँच गई है कि बगदाद से रवाना होने से पहले आपने खुलेआम यह ऐलान किया था कि आप अमीर के हरम में पहुँचकर उनकी बेगमों को फँसा लेंगे। लानत है आप पर मौलाना हुसैन। ‘
बूढ़े मौलाना का मुँह खुला का खुला रह गया। आँखें फट गईं। डर के मारे हिचकियाँ आने लगीं। हकलाकर बोला, ‘मैं? मैं? हरम मैं-मैं? ‘

‘आपने काबे की कसम खाई थी कि आप ऐसा करेंगे। अमीर ने हुक्म जारी कर दिया है कि जैसे ही आप बुखारा की सरज़मीन पर क़दम रखें आपको गिरफ़्तार कर लिया जाए और फौरन आपका सिर धड़ से अलग कर दिया जाए। ‘
बूढ़ा बुरी तरह घबरा उठा। वह सोच नहीं पा रहा था कि उसकी बर्बादी की यह चाल किस दुश्मन ने चली है। उसे इस बात की सच्चाई पर रत्ती भर भी संदेह नहीं हुआ। स्वयं उसने भी कई बार दरबार की साज़िशों में अपने दुश्मनों को ख़त्म करने के लिए ऐसी ही चालें चली थीं और अपने दुश्मनों को सूली पर चढ़ता देख इत्मीनान और चैन की साँस ली थी।
नसरुद्दीन कहता गया, ‘जासूसों ने अमीर को ख़बर दे दी है कि आप बुखारा में पहुँच गए हैं। उन्होंने हुक्म दे दिया कि आपको गिरफ्तार कर लिया जाए। हुक्म पाते ही सिपाही दौड़कर बाज़ार में आ गए और आपको तलाश करने लगे । दुकानों के पीछे भी उन्होंने आपको ढूँढा। कारोबार बंद हो गया। अमन में खलल पड़ गया। सिपाहियों ने गलती से एक ऐसे आदमी को पकड़ लिया, जिसकी शक्ल-सूरत आपसे मिलती-जुलती थी। फिर जल्दी में उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन वह एक मौलवी था, जो अपनी पाकीजगी और काबलियत के लिए मशहूर था। इस पर मस्जिद के लोग नाराज़ हो गए। अब जो कुछ भी हो रहा है बस आपकी बदौलत -!’

निराशा और भय से बूढ़ा काँप गया। ‘लानत है मुझ पर।’ वह ऐसे कराहने लगा; और नसरुद्दीन की यह साज़िश सफल हो गई।
इस बीच लड़ाई महल के फाटकों की ओर बढ़ चुकी थी। बुरी तरह पीटे और घायल सिपाही महल में घुस रहे थे। उनके हथियार छिन चुके थे।
‘मुझे बगदाद लौट जाना चाहिए।’ मौलाना हुसैन ने रोते हुए कहा ।

‘आप शहर के फाटक पर गिरफ्तार कर लिए जाएँगे । ‘

‘हाय कम्बख़्ती, यह कहर मुझ पर क्यों गिरा ? अल्लाह गवाह है, मैं बेकसूर हूँ। ऐसी नापाक और गुस्ताख़ कसम मैंने कभी नहीं खाई। मेरे दुश्मनों ने मुझे बदनाम किया है। ऐ मेहरबान, मेरी मदद करो । ‘

नसरुद्दीन इसी के इंतज़ार में था। अपनी ओर से मदद का प्रस्ताव रखकर वह संदेह पैदा नहीं करना चाहता था।

‘मैं मदद करूद्ध ? मैं कैसे मदद कर सकता हूँ? मुझे तो चाहिए कि अपने अमीर का वफ़ादार और सच्चा गुलाम होने के नाते आपको इसी वक्त पकड़कर सिपाहियों के हवाले कर दूँ।’ नसरुद्दीन ने कहा। फिर बूढ़े को तसल्ली देने के लिए जल्दी से बोला, ‘लेकिन आप कहते हैं कि आप बेगुनाह हैं और झूठी अफवाह आपके दुश्मनों ने उड़ाई है। मुझे आपकी इस बात पर यक़ीन आ रहा है, क्योंकि मैं सोचता हूँ कि इस बुढ़ापे में भला आपका हरम से क्या सरोकार हो सकता है।’

‘बिल्कुल सही कहा तुमने। लेकिन मेरे लिए छुटकारे का रास्ता कौन-सा है?’

‘एक रास्ता है।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा और मौलाना हुसैन को पिछवाड़े वाले अँधेरे कमरे में ले गया। वहाँ जनाने कपड़े देकर बोला, ‘आज ही ये कपड़े मैंने अपनी बीवी के लिए ख़रीदे थे। अगर आप चाहें तो अपने कपड़ों के बदले इन कपड़ों को पहन सकते हैं। औरत की तरह नकाब डालकर आप जासूसों और सिपाहियों से बच सकते हैं। ‘

बूढ़े ने अहसानमंदी और खुशी से वे कपड़े पहन लिए ।

नसरुद्दीन ने उसके कपड़े पहने। साफ़ा सिर पर रखा, सितारे जड़ा चौड़ा पटका कमर में बाँधा और फिर मौलाना हुसैन को ऊँट पर बैठाते हुए बोला, ‘खुदा हाफिज ! औरतों की तरह पतली आवाज़ में बोलना न भूलिएगा।’

मौलाना हुसैन अपने ऊँट पर बैठकर भाग निकला।

नसरुद्दीन की आँखें चमक उठीं। अब महल का रास्ता उसके लिए साफ़ हो चुका था ।

ये कहानी ‘मुल्ला नसरुद्दीन’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Mullah Nasruddin(मुल्ला नसरुद्दीन)