एक बार एक लोमड़ी एक आम के पेड़ के नीचे खड़ी थी। उसकी इच्छा हुई कि आम खाए जाएं। लेकिन, आम का पेड़ इतना ऊंचा था कि वह चाहकर भी आम तक नहीं पहुँच पा रही थी। उसे एक तरकीब सूझी।
उसने कुछ दूरी पर खड़े एक ऊंट को देखा और उससे कहा कि अगर वह अपनी पीठ पर चढ़ाकर उसे आम तोड़ने दे तो वह जितने आम तोड़ेगी, उनमें से आधे उसे दे देगी। ऊंट उसके झांसे में आ गया। लोमड़ी ने उसकी पीठ पर चढ़कर जी भरकर आम तोड़े और उसे एक भी आम दिए बिना वहाँ से जाने लगी। ऊंट ने पूछा तो वह बोली कि अभी आमों पर धूल जमी है। वह उन्हें धो-सुखाकर कल उसके पास ले आएगी। ऊंट मान गया। एक जिराफ ने यह नजारा देखा और ऊंट से बोला कि लोमड़ी बहुत चालाक है। वह तुम्हें मूर्ख बनाकर चली गई। ऊंट को बहुत गुस्सा आया। अगले दिन लोमड़ी फिर ऊंट के पास पहुँची और बोली कि कल जो आम हमने तोड़े थे, वे सब खराब निकले। आज हम फिर से आम तोड़ने चलते हैं। ऊंट ने उसे अपनी पीठ पर बैठा लिया। रास्ते में एक तालाब भी था। ऊंट लोमड़ी के साथ उसमें घुस गया। लोमड़ी ने पूछा कि वह तालाब में क्यों आया। उसने कहा कि बहुत गर्मी है, वह थोड़ा ठंडक चाहता है और कहकर उसने तालाब में गोता लगाया। लोमड़ी उसकी पीठ से फिसलकर पानी में जा गिरी। पानी ज्यादा गहरा नहीं था, लेकिन उसे बाहर आने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। उसे अपनी धूर्तता का सबक मिल गया था।
सारः आवश्यकता से अधिक चालाकी खतरनाक होती है।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
