दोनों ने अपने माता-पिता को विवाह के लिए मना लिया परन्तु दोनों की शर्त थी कि पहले दोनों परिवार आपस में मिलेंगे तभी अन्तिम निर्णय होगा। शिवांश के घर अक्षिता अपने माता-पिता, मामा-मामी और बुआ-फूफाजी के साथ आयी। दोनों परिवार खुश थे, सब ठीक था तभी अक्षिता की मम्मी बोली- ‘बहन जी! बच्चों की खुशी में हमारी खुशी। आप इस रिश्ते से सहमत हैं ना, आपको कोई मांग तो नहीं।’

‘मांग है बहन जी, दो मांगे हैं। अगर पूरी कर सके तो ही यह विवाह होगा।’

 अक्षिता की मम्मी तो घबरा ही गयी थी, समझ ही नहीं पा रही थी क्या करे। शिवांश को भी मम्मी पर गुस्सा आ रहा था किन्तु सबके सामने कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसे मम्मी से ये अपेक्षा तो बिल्कुल भी नहीं थी।

‘देखिए मीना जी मेरी मांग आपसे नहीं इन बच्चों से है। हम दोनों परिवार इनकी खुशी के लिए अन्तर्जातीय विवाह करने को तैयार हो गये। अगर ये इस रिश्ते को आजीवन निभाने का वादा करें तो ही हमें स्वीकार है। आज विवाह और छ: महीने बाद कहने लगें कि हम अलग होना चाहते हैं वह हमसे सहन नहीं होगा। दूसरी मांग है कि अक्षिता हम दोनों का सम्मान भी उसी भावना से करे जैसे अपने माता-पिता का करती है और शिवांश हमारी तरह अक्षिता के माता-पिता का। हमें इनके पास जाकर कभी परायापन अनुभव न हो। यही दहेज़ हम चाहते हैं।

 यह भी पढ़ें –मानुष गंध – गृहलक्ष्मी लघुकथा

-आपको यह लघुकथा कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रियाएं जरुर भेजें। प्रतिक्रियाओं के साथ ही आप अपनी लघुकथा भी हमें ई-मेल कर सकते हैं-Editor@grehlakshmi.com

-डायमंड पॉकेट बुक्स की अन्य रोचक कहानियों और प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाओं को खरीदने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें-https://bit.ly/39Vn1ji