ब्रूनो-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Bruno

Hindi Kahani: आँसू ….यूँ तो हम तीनोँ की ही आँखों में थे पर वजह अलग-अलग थी, मैँ परेशान था कि कि जाने मेरे नसीब में और क्या है?
उस शाम स्कूटी पर बैठे हुए जब भी कोई गड्ढा आता सड़क पर तो वो मुझे हिफाज़त से पकड़ लेता पुचकारता और वैभव से कहता “भाई …धीरे चला न।”
और दिन होते तो बात अलग होती पर आज मुझे कोई ख़ुशी नहीं थी,मैँ चुपचाप बैठा रहा उन दोनोँ के बीच उदास और शान्त।
“मैँ ब्रूनो हूँ” एक कुत्ता जन्म से भी और शायद तक़दीर से भी ,दर-दर भटकना तो हमारे मुक़द्दर में लिखता है ऊपरवाला।
शायद मैंने भी अपने भविष्य से समझौता कर लिया था ,कई दिनों तक साहिल को सुना था मैंने उसके किसी मित्र से बात करते ।
वो उससे मुझे अपने घर मे रखने के लिये बड़ी मिन्नतें कर रहा था,उस दिन मैंने अपने कटोरे में रखे दूध रोटी को सूँघा भी नहीँ।
और जब शाम हुई तो तसल्ली हुई कि अब मुझे कोई नहीं ले जायेगा , जब खाने चला ।
तो उस घर मे पहले से रह रही भीमकाय जर्मन शेफर्ड “बेरी “ने मुझ पर हमला कर दिया ,एक हफ्ते में वह कई बार अपनी धौंस जमा चुकी थी मुझपर…
मेरी उसकी हष्टपुष्प काया की तुलना में कमज़ोर काया और दुःखी मन दोनोँ ही उससे भिड़ने में सक्षम न थे ।

Also read: बांझ—गृहलक्ष्मी की कहानियां


और नतीज़ा यह निकाला गया।कि मुझे इस घर से भी कहीँ और भेज दिया जायेगा,
मैँ कूँ-कूँ करके रो रहा था,आँसू साहिल की भी आँखों में थे मेरे लिये,पर उसके पापा का निर्णय आखिरी था मेरी सुरक्षा की दृष्टि से।
जब उसने आँखों मे आँसूं भरकर एक बैग में पैडिग्रि का पैक और मेरा पसन्द का शैम्पू रखा था तो मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क उठा ,मैँ उसके गले लगकर रोना चाहता था।
पर ऐसा होना अब सम्भव न था,उसने प्यार से मेरी पीठ पर हाथ फिराया।मेरा मन भर आया,उससे मैंने अपने आगे के दोनोँ पंजो को मिलाकर माफ़ी भी माँगी।
कहा भी कि कोने में पड़ा रहूँगा ,बेरी से दूर… एक कोने जितना ही तो हूँ ,उसका स्पर्श मेरा पहला लगाव था जो अब मुझसे हमेशा के लिये छूट जाने वाला था।
वो मुझे थपथपा कर स्कूटी पर बैठ गया मैंने भरी नजरों से उस घर को देखा जहाँ मेरा जन्म हुआ था और क्रोध में अपनी किस्मत पर चुपचाप आँसू बहाता रहा।
कैसी किस्मत लिखी तुमने भगवान?
जन्म लेते ही हमारे लेनदार तैयार होते हैं और माँ की आदत लगने से पहले ही हमारा बिछड़ना तय हो जाता है।
हमें भी अपने साथ रहने वालों से लगाव होता है ,मेरे साथ भी कुछ अलग न था
सब कुछ अच्छा था पर पिछले एक महीने में ही मुश्किल से डेढ़ बरस की उम्र में मैंने कितने दुःख सह लिये थे।
शायद मनुष्यों की तरह हथेलियाँ होतीं तो भगवान से पूछ पाता कि इन्हें कैसे बदलूँ, जब से साहिल को अपने किसी मित्र से कहते सुना था कि वो मुझे अपने घर रख ले।
तबसे न भूख थी और न प्यास, पन्द्रह दिनों के अन्दर ही दोबारा मैँ एक बार बुरी तरह फिर सहम गया था।
क़ाश ईश्वर ने खूबसूरती देते समय थोड़ा समय मेरी किस्मत को भी दिया होता।
हल्के भूरे और सुनहरा फर के साथ कल्चर्ड पामेरियन की ब्रीड मेरी विशेषता थी।
गूगल पर मेरी ऊँची कीमत भी थी ,जब वह अपनी मित्र को गर्व से बता रहा था ,तो मैंने सुना था।
पर मेरे दिल को बुरी तरह ठेस लग चुकी थी ।
सबसे बदसूरत लिखी थी मेरी किस्मत भगवान ने ,यह तीसरा घर था जहाँ मुझे भेजा जा रहा था,मैँ साहिल से बेहद नाराज़ था।
मैंने अपनी आँखें उसकी गोद में खोलीं थी,वो मुझे दिन भर खिलौने सा उठाये फिरता ,फोटोशूट भी किया था और मेरे भूरे सुनहरे रँग के लिये ही मुझे नाम दिया ब्रूनो।
जब थोड़ा बड़ा हुआ तो फिर
उसने मुझे अपनी नानी को दिया जो बड़े से घर में अकेले रहती थीं और मैं बन गया उनके अकेलेपन का साथी।
मुझे नानी की बड़ी याद आई,
मुझे बहुत प्यार करतीं ,कभी कभी मेरे घर गन्दा करने पर डण्डे से डराती भी थीं ।
मैंने भी उनके बुढ़ापे का ध्यान करते हुए जल्दी उनकी बताई अच्छी आदतें सीख लीं।
जब वो पूजा करतीं तो पास बैठता उनके वो कहती थीं भगवान सब अच्छा करते हैं और मैं भी उन्हें आगे के अपने दोनोँ पँजे जोड़कर प्रणाम करता और उन्ही के पास सोता भी।
एक दिन नानी सोईं तो उठीं ही नहीँ ,मुझे तीन दिन के लिये एक कमरे में बन्द कर दिया गया और सब नानी को ले गये।
उफ़्फ़ वो डर मेरे मन से नहीं जा रहा था मैं बहुत रोया, तबतक साहिल अपनी मित्र के घर पहुँच चुका था।
वो अपनी मित्र से कह रहा था इसे अकेला मत छोड़ना और रो पड़ा,मैँने इसका कॉलर भी नहीँ निकाला है।
उसके अपने लिए लाये उपहार देखकर भी मैं अपने नए घर में छत पर चला गया।वो बैठा रहा उस घर में मैँ मम्मी के पास छुप गया।
मुझे दूध रोटी खाते देख साहिल छुपकर चला गया मुझसे मैँ भी उसकी याद करते हुए मम्मी से थोड़ी दूर उन्हें देखते हुए सो गया।
अगले दिन पूजाघर में नानी जैसी सुगन्ध थी और उधर दादी माँ भी थीं,जिन्हें मैंने बहुत प्यार किया,पापा भी मिले जो थोड़े से ख़फ़ा थे।
पर साहिल की आख़िरी बात मैं भूल नहीं पाया कि “जया मेरे ब्रूनो को अकेले मत छोड़ना, नानी की आखिरी निशानी है।”
साहिल फ़ोन पर मेरे हालचाल लेता, मेरा गुस्सा उसके मुझे छोड़ जाने के प्रति कम होने लगा।वो एक भरापूरा परिवार था।
उसका निर्णय अब मुझे अच्छा लग रहा था ,
सर्दियों में प्याज-लहसुन न खाने वाले पापा मुझे बाजार से अंडा भी खिलाते,बीमारी में मेरा ध्यान रखते।
एकदिन सुना साहिल मुझे याद करता है, मिलना चाहता है,
इतना सुनते ही पापा ने सख़्ती से मना कर दिया,उन्हें डर था कि कहीँ मैँ चला न जाऊँ
फिर महीनों बाद एक रात वो आया मुझसे मिलने ,मैं उसी लगाव से उसकी गोद में चला गया ,हम दोनोँ ही रोये।
वो वापस जाने लगा , मैँ भरी आँखों के साथ बिना पीछा किये घर में आ गया।