शिशु के जन्म की अवस्थाएँ चरण

इसकी तीन अवस्थाएँ होती हैं-लेबर, शिशु की डिलीवरी, प्लेसेंटा की डिलीवरी अगर ऑप्रेशन न हो तो हमें तीनों अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। लेबर के तीन चरण होते हैं। इनके दौरान उठने वाले दर्द व लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। भीतरी जांच से प्रगति का अंदाजा लगाया जाता है।

पहली अवस्था:-लेबर-(अर्ली लेबर) इसमें गर्भाशय का मुख फैलता है। संकुचन 30 से 45 सेकंड के व 20 मिनट या इससे कम फासले पर होते हैं।

सक्रिय लेबर:गर्भाशय का मुख 7 सेंमी-, संकुचन 40 से 60 सेकंड, 3 से 4 मिनट का फासला।

ट्रांज़ीशनल लेबर:- गर्भाशय का मुँह पूरी तरह खुल जाता है। संकुचन 60 से 90 सेकंड, 2 से 3 मिनट के फासले पर।

दूसरी अवस्था:- शिशु की डिलीवरी

तीसरी अवस्था:- प्लेसेंटा की डिलीवरी

आपको अपने कोच व डॉक्टर की मदद तो मिलेगी लेकिन स्वयं भी सारी जानकारी रखना बहुत जरूरी होता है।

पूरे नौ महीने तक गर्भावस्था के दौरान आप काफी कुछ सीख गई हैं लेकिन प्रसव पीड़ा व डिलीवरी के दौरान क्या होगा।

वैसे इसका अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है। हर गर्भावस्था की तरह प्रसव-पीड़ा व प्रसव भी अलग होते हैं लेकिन इस बारे में थोड़ी सी जानकारी भी आपके डर व घबराहट पर काबू पा सकती हैं हालांकि यह सब कुछ काफी सामान्य होगा और नन्हा-सा शिशु आपकी बाँहों में आ जाएगा।

लेबरपहली स्टेज 

पहला चरण : लेबर जल्दी होना 

यह चरण काफी लंबा होता है पर ज्यादा गहन नहीं होता। यह कई घंटों, दिनों या हफ्तों का हो सकता है। दो से छह घंटे में संकुचन के बिना गर्भाशय का मुख पतला होकर 3 सें.मी. तक खुल जाता है। इस चरण के संकुचन या प्रसव-पीड़ा 20 से 45 सेकंड तक होती है, यह और कम भी हो सकती है। वे हल्के, तेज, नियमित या अनियमित हो सकते हैं। वे धीरे-धीरे पास भी आ सकते हैं।

अर्ली लेबर में निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं :

  •   एम्नियोटिक झिल्ली का फटना, जैसे फटती है वो सक्रिय प्रसव के दौरान
  •   पेट के निचले हिस्से में गर्माहट का एहसास
  •   अपच
  •   मासिक धर्म की तरह ऐंठन
  •   पीठ दर्द (लगातार या फिर संकुचन के साथ)
  •   पेट के निचले हिस्से में दबाव
  •   डायरिया
  •   रक्त के साथ म्यूकस का स्राव
  •   भावनात्मक रूप से आपकी अनियमितता,भय या उत्तेजना महसूस कर सकती हैं जबकि कुछ महिलाएँ काफी शांत हो जाती हैं।

आप क्या कर सकती हैं :- इस समय उत्तेजित होने या घबराने की बजाए शांत हो जाएं।

रात का समय है तो प्रसव पीड़ा तेज होने से पहले थोड़ी नींद लेने की कोशिश करें। यदि नींद न आए तो ध्यान बंटाने के लिए कोई काम करें। फ्रिज में कुछ पका कर रख दें। शिशु के कपड़े तह कर समेटें। यदि दिन का समय है तो रोजमर्रा के काम करें लेकिन सेल फोन के बिना घर से ज्यादा दूर न जाएँ थोड़ा टहलें, टी.वी. देखें, दोस्तों या परिवार कोई-मेल करें या अस्पताल ले जाने वाला सामान तैयार कर लें।

यदि साथी पास नहीं है, तो उसे सूचना दे दें। यदि आप अपनी मदद के लिए किसी रिश्तेदार को बुलाना चाहती है। तो उन्हें भी पहले ही सूचना दें दें।

यदि भूख लगी हो तो हल्का-फुल्का नाश्ता कर लें ताकि ऊर्जा का स्तर बना रहे। वैसे ज्यादा भारी खाना न खाएँ, उसे पचाना मुश्किल हो जाएगा। पानी की भरपूर मात्रा लें व संतरे का जूस, लैमनेडन पीएँ।

अपने-आप को आराम दें। गुनगुने पानी से नहाएँ। पीठ को हीटिंग पैड से सेकें। कोई भी दवा अपनी मर्जी से न लें।

अपने संकुचन के समय पर थोड़ा ध्यान दें लेकिन हाथ में घड़ी लेकर बैठने की जरूरत नहीं है।

शिथिलता तकनीकें इस्तेमाल करें लेकिन अभी से श्वास व्यायाम न करें, वरना आप अभी से ऊब जाएँगी।

साथी के लिए :– यदि आप वहाँ पहुँच गए हैं तो भावी माँ को आराम देने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं।

  • ध्यान बँटाने की कोशिश करें। वीडियो गेम खेलें, टी.वी. देखें, थोड़ा टहलें या फिर किचन में कुछ पकाएं।
  • उसे थोड़ा सहारा व तसल्ली दें। इस समय इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
  • संकुचन के समय का रिकॉर्ड रखें। जब वे दस मिनट से भी कम समय पर होने लगें तो उन पर ज्यादा ध्यान दें।
  • शांति बनाए रखें। अपने साथी को आराम पहुँचाएँ। कहीं ऐसा न हो कि आपकी उत्तेजना की धूम उस तक भी पहुँच जाए हल्की मालिश दें व माहौल खुशनुमा बनाए रखें।
  • समय बिताने के लिए हल्की-फुल्की गप लगाएँ।
  • आप स्वयं भी कुछ खा-पी लें ताकि आपकी ताकत व ऊर्जा का स्तर बना रहे इस तरह अस्पताल में भी आपको, जाते ही कैंटीन नहीं खोजनी पड़ेगी। बस कुछ ऐसा न खाएँ, जिससे आपकी साँसों से तेज बदबू आए।

डॉक्टर बुलाएँ….

अगर दिन में झिल्ली फट जाए और प्रसव शुरू हो जाए तो डॉक्टर को फोन कर देना चाहिए। अगर लाल या हरा स्राव होने लगे या शिशु की हलचल बंद होती जान पड़े तो डॉक्टर को बुलाएँ>चाहे ऐसा कुछ न भी हो, फिर भी उन्हें फोन करके बताने में कोई हर्ज नहीं है। 

प्रसव पीड़ा के आयाम

इसमें कोई शक नहीं कि प्रसव के समय दर्द तो होता ही है लेकिन इस दर्द की मात्रा को कई कारणों से घटाया या बढ़ाया जा सकता है ये काफी हद तक आपके नियंत्रण में हैं, बस आपको थोड़ी सी योजना बना कर चलना होगा।

 दर्द का एहसास बढ़ सकता है दर्द का एहसास घट सकता है अकेले रहने से अपने किसी प्यारे, भरोसेमंद साथी या अनुभवी मेडिकल विशेषज्ञ के साथ रहने से थकान थकान से दूर रहें। नौवें महीने में जितना हो सके, शरीर को आराम दें। भूख व प्यास प्रसव के आरंभ कुछ हल्का-फुल्का खा-पी लें यदि इजाजत मिले तो उस दौरान भी कुछ न कुछ खाएँ। दर्द के बारे में सोचना अपना ध्यान दूसरी ओर लगाएँ। संकुचन के नमूने पर ध्यान न दें। यह न सोचें कि उससे बहुत दर्द होगा याद रखें कि यह पीड़ा बहुत जल्दी खत्म होने वाली है। तनाव तथा उद्वेग-संकुचन के दौरान तनावग्रस्त होना अनजाना भय रिलैक्स होने की व ध्यान तकनीकें अपनाएँ। अपनी साँस पर ध्यान न दें। यह न सोचें कि उससे बहुत दर्द होगा याद रखें कि यह पीड़ा बहुत जल्दी खत्म होने वाली है। आत्मदया मन ही मन सोचें कि आप भगवान से कितना खूबसूरत उपहार पाने वाली हैं। नियंत्रण से बाहर व असहाय आपका महसूस करना बच्चे के जन्म की तैयारी पहले से कर लें ताकि आत्मविश्वास व आत्मनियंत्रण बना रहे।

सक्रिय प्रसव के दूसरे व तीसरे चरण के टिप्स के लिए यहां क्लिक करें

 

दूसरा चरण:- सक्रिय प्रसवपीड़ा (लेबर) 

 यह सक्रिय चरण पहले के मुकाबले छोटा होता है। जो कि दो से साढ़े तीन घंटे का हो सकता है। प्रसव-पीड़ा पहले से कहीं तेज हो जाती है। 40 से 60 सेकंड का एक संकुचन हो सकता है। उसे 4 मिनट के बाद संकुचन हो सकता है हालांकि जरूरी नहीं कि यह नियमित ही हो। कई बार तो संकुचन के दौरान आराम करने या सांस लेने का मौका भी नहीं मिलता। अब तक आप अस्पताल या बर्थ सेंटर में होंगी व दर्द सह रही होंगी। यदि एपीड्यूरल इस्तेमाल होगा तो दर्द नहीं होगा।

संकुचन के साथ दर्द और तकलीफ बढ़ेगी।

पीठ के दर्द में तेजी आएगी।

टांगों में तकलीफ व भारीपन होगा।

थकान।

रक्तस्राव बढ़ेगा।

यदि थैली नहीं फटी तो फटेगी या उसे कृत्रिम रूप से फाड़ा जाएगा। आप काफी बेचैन होंगी और प्रसव पीड़ा में डूब जाएँगी। आपका आत्म विश्वास डगमगाने लगेगा। आप सक्रिय रूप से किए जाने वाले काम के लिए अपने आप को तैयार करेंगी।
सक्रिय प्रसव-पीड़ा के दौरान नर्स या डॉक्टर बीच-बीच में चक्कर लगाने के सिवा आपको अकेला छोड़ देंगे। उस समय कोई साथी या रिश्तेदार ही पास होगा।

वे आपकी निम्नलिखित जांच करते रहेंगे‒

  •   यदि आप चाहेंगी तो कोई दर्द निवारक दिया जाएगा।
  •   यदि प्रसव-पीड़ा काफी कम है तो उसे दवा देकर तेज किया जाएगा।
  •   रक्तस्राव की मात्रा व गुणवत्ता।
  •   डॉपलर या फैटल मॉनीटर से शिशु की जांच।
  •   रक्तचाप लेंगे।
  •   संकुचन की ताकत व समय की जांच।
  •   एपीड्यूरल लेना है तो आई.वी. लगाएंगे
  •   गर्भाशय के मुख की जांच के लिए समय-समय पर अंदरूनी जांच होगी।
  •   यदि आप कोई प्रश्न पूछना चाहें तो वे उसका उत्तर भी देंगे। ऐसे समय में कुछ भी पूछने में न हिचकिचाएँ।

अस्पताल या बर्थ सेंटर जाना

आपको इस दौरान अपने साथी या कोच को बुला लेना चाहिए। अगर आपने पहले से ही सारी योजना बना रखी होगी तो कोई मुश्किल पेश नहीं आएगी। टैक्सी या गाड़ी में बैठकर अपनी सीट बेल्ट बांध लें व सर्दी से बचाव के लिए कंबल कर लें।

अस्पताल पहुँचते ही रजिस्ट्रेशन होगा। यह औपचारिक कार्रवाई आपका साथी पूरी कर लेगा। वैसे आप लोगों को कई तरह के फार्म भी भरने पड़ सकते हैं।

नर्स आपको आपकी अवस्था के हिसाब से लेबर या डिलीवरी रूम में ले जाएगी। वहाँ आपके गर्भाशय का मुख और शिशु के दिल की धड़कन की जांच होगी। कई जगह साथ आने वालों को भीतर नहीं आने दिया जाता। वे लोग कमरे के बाहर इंतजार करते हैं। आप पता कर लें कि आपके पति भी भीतर आ पाएँगे या नहीं। उम्मीद है आपने पहले ही इन सब बातों का पता लगा लिया होगा। अगर आप घर से खाने को कुछ नहीं लाईं तो फोन करके मँगा लें। हो सकता है कि आपको अपने कपड़ों के ऊपर एक साफ गाउन पहनने को दिया जाए।

नर्स आपसे जरूरी सवाल जवाब करेगी जैसे-दर्द कब शुरू हुआ, संकुचन का समय क्या है, आपने कितनी देर पहले कुछ खाया था।

वह आपके दिल की धड़कन, नब्ज, तापमान वगैरह देखेंगी। आपसे मूत्र का नमूना भी लिया जा सकता है। एम्निओटिक द्रव्य की जांच करने के बाद शिशु की भी अच्छी तरह जांच करेंगी।

अस्पताल की नीति के हिसाब से आपको आई-वी- भी लगा सकते हैं। समय-समय पर आपकी अंदरूनी जांच से प्रगति का अंदाजा लगाया जाएगा। झिल्ली को कृत्रिम रूप से फाड़ा जा सकता है। इस प्रक्रिया में कोई दर्द नहीं होता बस आपको गर्म पानी के बहाव का एहसास होगा।
इस समय आप डॉक्टर से अपनी जिज्ञासाएँ शांत कर सकती हैं। आपका साथी भी आपकी ओर से सवाल-जवाब कर सकता है ताकि आप को ज्यादा से ज्यादा तसल्ली हो सके।

जब मामला धीमा हो जाए

वैसे तो आप यही चाहेंगी कि सब कुछ फटाफट निबट जाए लेकिन कई बार प्रसव की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।गर्भाशय का मुँह पूरा नहीं खुलता, शिशु बाहर आने को तैयार नहीं होता या आप सही तरीके से जोर नहीं लगा पातीं। कई बार एपीड्यूरल के बाद भी संकुचन हल्के हो जाते हैं। वैसे इसमें चिंता वाली कोई बात नहीं है।

अर्ली लेबर में डॉक्टर आपको चक्कर लगाने की सलाह दे सकते हैं या शिथिलता तकनीकें आजमाने को कह सकते हैं। वे इसी समय पता लगाते हैं कि वे फाल्स लेबर के लक्षण तो नहीं थे। गर्भाशय का मुख न खुला हो तो उसे कुछ दवाओं के इंजेक्शन देकर खोला जा सकता है। लेबर के सक्रिय चरण में गर्भाशय का मुँह पूरी तरह न खुला हो या शिशु नीचे की ओर न आए या संकुचन कम हो जाए तो दवा की खुराक बढ़ानी पड़ सकती है। यदि दो घंटे तक जोर लगाने के बाद भी डिलीवरी न हो तो डॉक्टर को कोई दूसरा फैसला लेना पड़ सकता है। वे आप्रेशन, वैक्यूम या फोरसैप की मदद ले सकते हैं। अपना मूत्रशय खाली रखें क्योंकि यह प्रसव की गति में बाधा देता है। आपका पेट भी साफ होना चाहिए। डिलीवरी के लिए अपनी पोजीशन बदलती रहें। धकेलने के समय सही तरीके से जोर लगाएं। यदि सक्रिय प्रसव के 20-24 घंटे तक भी डिलीवरी न हो पाए तो डॉक्टर ऑपरेशन की सलाह देते हैं। 
यदि मां व शिशु की अवस्था ठीक हो तो कुछ डॉक्टर थोड़ा और इंतजार करना पसंद करते हैं।

आप क्या कर सकती हैं?

यह सब आपके आराम के लिए है इसलिए:

  • जो भी मन चाहे, वहीं करें, पीठ पर मालिश करवाएँ। मुँह पोंछने के लिए गीला कपड़ा मांगें। आप की मदद करने वाले तैयार हैं पर बोलना तो आपको ही है।
  • यदि आपने पहले से सोच रखा है तो श्वास से जुड़े व्यायाम शुरू करें। अपनी नर्स से इस बारे में सुझाव माँगें। याद रखें कि इस समय आपने वही करना है, जिससे शरीर को ज्यादा से ज्यादा आराम मिले। यदि व्यायाम से आराम न आ रहा हो तो उसे करना जरूरी नहीं है।

हाइपर वेंटीलेट न हों

कई महिलाएँ जरूरत से ज्यादा सांस ले लेती हैं। जिससे रक्त में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर घटता है। सिर चकराता है। हाथ-पैर सुन्न पड़ते हैं तो अपने डॉक्टर या नर्स को बताएँ। वे आपको एक पेपरबैग में सांसें लेने को कहेंगे। थोड़ी सांसें उसके भीतर लेने के बाद आपको अच्छा महसूस होगा। यदि कोई दर्द निवारक दवा चाहती हैं तो उसके बारे में कहने का सही समय यही है। आपको जरूरत महसूस होने पर कभी भी एपीड्यूरल दिया जा सकता है।

यदि आप किसी दर्द निवारक के बिना प्रसव-पीड़ा सह रही हैं तो हर दर्द के बाद थोड़ा आराम करें क्योंकि जब वे पहले से तेज और जल्दी होने लगेंगे तो आराम का समय ही नहीं मिलेगा। शिथिलता की तकनीकें इस्तेमाल करें ताकि आपकी ऊर्जा का स्तर बना रहे।

अपने डॉक्टर से पूछकर कुछ भी हल्का-फुल्का खाती-पीती रहें। अगर डॉक्टर हामी नहीं भरती तो मुँह गीला करने के लिए आइस चिप्स चूसें।

अगर एपीड्यूरल नहीं है और चल सकती हैं तो टहलें या फिर कम से कम पोजीशन जरूर बदलें।

मूत्र के लिए शौच जाती रहें। पेल्विक पर पड़ने वाले दबाव के कारण आपको इसका पता नहीं चल पाएगा लेकिन मूत्राशय भरा होने से दिक्कत आ सकती है। अगर एपीड्यूरल लगा हो तो बार-बार उठने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि वे मूत्राशय खाली करने के लिए कैथीटर लगा देते हैं।

साथी या कोचक्या कर सकते हैं?

आपको सारी प्राथमिकताएँ पता होनी चाहिए। अगर ममा को दवा की जरूरत है तो दवा दिलवाएं। अगर वह दवा नहीं चाहती तो उसे यूँ ही अपना काम करने दें।

वह जो भी चाहे, उसे मिलना चाहिए।उसकी इच्छा मिनट दर मिनट बदल सकती है। एक पल में वह टी.वी. देखना चाहेंगी और दूसरे ही पल उसे बंद करना चाहेंगी।अगर इस समय वह आप पर ध्यान न दे या आपकी तारीफ न करे तो इसे निजी रूप से न लें। वह अगले दिन, सब ठीक हो जाने पर ही आपकी ओर ध्यान दे पाएगी।

अपने व उसके मूड का ध्यान रखें। कमरे में हल्की रोशनी रखें।

अगर वह चाहे तो हल्का संगीत भी बजा सकते हैं। संकुचनों के दौरान श्वास व शिथिलता तकनीकें जारी रखें। अगर वह ऐसा न करना चाहे तो उसे मजबूर न करें। उसका ध्यान बँटाने के लिए बातचीत करें या वीडियो गेम खेलें। ध्यान उतना ही बँटाएँ, जितना वह चाहे।

उसे तसल्ली दें। उसे हिम्मत बंधाएं। किसी भी तरह की आलोचना न करें। उसे याद दिलाएं कि हर दर्द के बाद वह अपने शिशु के पास आ रही है। यदि वह ज्यादा दुखी दिखाई दे तो उसके लिए सहानुभूति दिखाएं।

संकुचन का पूरा रिकॉर्ड रखें। नर्स से इस बारे में मदद ले सकते हैं। मॉनीटर पर देखकर आप उसे बता सकते हैं कि दर्द उठने वाला है। यदि वहाँ मॉनीटर न हो तो नर्स से सीखें कि किस तरह पेट पर हाथ रखकर दर्द उठने का पता लगा सकते हैं।

उसकी पीठ या पेट की मालिश करें, ताकि उसे कुछ आराम मिल सके। उससे पूछें कि उसे किस तरह की मालिश से आराम आ रहा है। यदि उसे मालिश से आराम न आए तो सिर्फ बातों के जरिए तसल्ली दें। याद रखें कि एक मिनट पहले वो अच्छा लग रहा था, दूसरे मिनट उससे ही झल्लाहट हो सकती है या फिर इससे उल्टा हो सकता है।

हर एक घंटे बाद उसे बाथरूम जाना याद दिलाएं। मूत्राशय भरा होने से प्रसव में दिक्कत हो सकती है।

यदि संभव हो तो टहलने या पोजीशन बदलने में उसकी मदद करें।

यदि उसे कुछ खाने-पीने की इजाजत है तो कुछ हल्का-फुल्का खाने को दें या फिर चूसने के लिए आइस-चिप्स दें।

गीले कपड़े से उसका चेहरा व बदन पोंछते रहें।

अगर पांव ठंडे हो रहे हों तो जुराबें पहना दें।

वह काफी तकलीफ में है इसलिए ज्यादा ऊँचा नहीं बोल पाएगी। उसकी हर बात सुनने व उसका जवाब देने की कोशिश करें। डॉक्टर से हर दवा व प्रक्रिया के बारे में पूछताछ करें ताकि आपको उसे देने के लिए जानकारी हो।यदि उसके बारे में कोई बात करनी हो तो कमरे से बाहर जाकर करें ताकि उसे दिक्कत न हो।

तीसरा चरण:- स्थानांतरीय प्रसव

यह प्रसव का सबसे मुश्किल, लेकिन छोटा चरण होता है। अचानक दर्द की तीव्रता बढ़ जाती है। वे 60 से 90 सेकंड लंबे हो जाते हैं और 2 से 3 मिनट में उठने लगते हैं। जो महिलाएँ पहले माँ बन चुकी होती हैं उन्हें दर्द की कई लहरों का एक साथ सामना करना पड़ सकता है। आपको लगने लगता है कि दर्द की लहरें कभी खत्म नहीं होंगी और आपको आराम करने का मौका नहीं मिल पाएगा। 7सेमी. से 10 सेमी. के फैलाव में औसतन 15 मिनट से 1 घंटे का समय लग सकता है।हालांकि कुछ मामलों में तीन घंटे तक लग जाते हैं।

अगर आपने कोई दर्द निवारक नहीं ले रखा तो इस चरण में आप निम्नलिखित लक्षण महसूस कर सकती हैं:

  • संकुचन के मध्य हल्की नींद सी आना
  • बहुत गर्मी या फिर सर्दी महसूस होना
  • गुदा पर दबाव (यह शौच वाले दबाव से थोड़ा अलग होगा)
  • संकुचन के साथ बहुत तेज दर्द
  • पीठ के पिछले हिस्से व पैरीनियम में तेज दर्द
  • रक्तस्राव में वृद्धि
  • टाँगों की ऐंठन, जो कि बरदाश्त के बाहर होगी।
  • गले या छाती में अजीब सी जकड़न
  • थकान

भावनात्मक रूप से आपको लगेगा कि सब्र की हद पार हो गई है। अभी धकेलने का समय नहीं आया इसलिए आपके मन में थोड़ी निराशा, बेचैनी या चिड़चिड़ाहट पैदा होगी।आप इन सबके विपरीत शिशु के और पास आने की उमंग में उत्साहित भी हो सकती हैं।

आप क्या कर सकती हैं

इस चरण के बाद गर्भाशय का मुँह पूरी तरह खुल जाएगा और आपको शिशु को बाहर निकालने के लिए जोर लगाना होगा। आगे आने वाले समय की चिंता करने की बजाय यह देखें कि आप कितना लंबा सफर तय करके यहाँ तक पहुँची हैं।

यदि मदद मिलती हो तो खास तकनीकें जारी रखें। जब तक निर्देश न मिलें, जोर न लगाएँ। इससे उस हिस्से में सूजन आ सकती है और डिलीवरी में समय लग सकता है।

अगर साथी के हाथ लगाने से आपको बेचैनी हो रही है तो उसे बताने में न हिचकें।

हल्की लय युक्त श्वांस के साथ संकुचनों के बीच आराम करने की कोशिश करें।

अपना ध्यान शिशु पर लगाएँ, शीघ्र ही वह आपकी बाँहों में होगा।

जब गर्भाशय का मुँह पूरी तरह खुल जाएगा तो उसके बाद आपको डिलीवरी रूम में ले जाया जाएगा। अगर आप बर्थिंग बेड पर हैं तो उसके पाँव हटा कर, उसे डिलीवरी के लिए तैयार कर दिया जाएगा।

साथी या कोच:- आप क्या कर सकते हैं

 अगर वह एपीड्यूरल पर है तो उससे पूछें कि दूसरी खुराक चाहिए या नहीं। इंजीशन काफी तकलीफदेह होता है। अगर दवा की खुराक पूरी न मिली तो दर्द हो सकता है। अगर दवा चाहिए तो डॉक्टर को बोलें। अगर दवा के बिना प्रक्रिया चल रही हो तो शायद उसे इस समय सबसे ज्यादा आपकी जरूरत है।

उसके पास बने रहें पर उस पर हावी न हों। यदि वह न चाहे तो उसे न छुएँ।पीठ पर हल्के दबाव से आराम मिलसकता है लेकिन अगर वह यह भी न चाहे तो कुछ न करें।

इस समय लंबी-चौड़ी बातचीत न करें। उसे छोटे व साफ निर्देश दें। यह चुटकुले सुनाने का समय नहीं है।

यदि वह चाहे तो उसे सांत्वना दें। इस समय शब्दों की बजाए हल्की सी छुअन या आँखों में आँखें डाल कर बहुत कुछ कहा जा सकता है।

यदि संकुचनों के बीच श्वास तकनीक से आराम मिलता हो तो उसकी मदद करने की कोशिश करें।

उसका पेट छूकर संकुचन का पता दें। उसे संकुचन के बीच हल्की लय युक्त श्वास बनाए रखना याद दिलाएँ।

यदि संकुचन बहुत जल्दी होने लगे और उसे धकेलने की इच्छा हो तो डॉक्टर को बताएँ, हो सकता है कि गर्भाशय का मुख पूरी तरह खुल गया हो।

उसे पानी का घूँट या आइस-चिप्स देते रहें। उसका मुँह गीले कपड़े से पोंछें। अगर सर्दी महसूस हो तो कंबल ओढ़ाएँ या पैरों में जुराबें पहना दें।

दोनों अपना ध्यान उस आने वाले पल पर केंद्रित रखें, जब खुशियों से भरी पोटली आपकी बाँहों में होगी।

 

दूसरी अवस्थाधकेलना व डिलीवरी 

 

 

दूसरी अवस्थाधकेलना व डिलीवरी 

इस चरण तक तो शिशु के जन्म में आपकी कोई सक्रिय भूमिका नहीं थी। आपके गर्भाशय के मुँह ने काफी हद तक काम आसान बना दिया है लेकिन अब आपको शिशु को बाहर लाने में मदद करनी है। इस प्रक्रिया में तकरीबन आधे से एक घंटे का समय लगता है। लेकिन कई बार यह 10 मिनट या फिर 2-3 घंटे में पूरी हो पाती है।

इस दौर के संकुचन, पहले चरण की बजाए ज्यादा नियमित होते हैं। वे 60 से 90 सेकंड के तो होते हैं लेकिन कभी-कभी दर्द बढ़ जाता है और कभी-कभी घट जाता है।हालांकि आपको अभी भी यह पता लगाने में मुश्किल होगी कि दर्द कब उठ रहा है। इस समय आप निम्नलिखित लक्षण महसूस कर सकती हैं।

संकुचन के साथ दर्द, लेकिन थोड़ा कम

धकेलने की तीव्र इच्छा (एपीड्यूरल के साथ नहीं)

ऊर्जा का तेज आवेग या थकान

संकुचन का तेज लहर के साथ उठना व पता चलना

रक्तस्राव में वृद्धि

शिशु का सिर उभरने की वजह से योनि में हल्की जलन, खिंचाव या बेचैनी (इसे ‘रिंग ऑफ फायर’ भी कहते हैं)

हल्की फिसलन व नमी का एहसास

भावनात्मक रूप से आपको संतुष्टि मिलेगी कि आपने धकेलना शुरू कर दिया है। अगर धकेलने व जोर लगाने में एक घंटे से ज्यादा समय लग गया है तो आप थकान व कुंठा भी महसूस कर सकती हैं। इस समय आपके मन में बस एक ही बात होगी, यह सारी प्रक्रिया कब समाप्त होगी।

आप क्या कर सकती हैं:- 

इस समय शिशु ने बाहर आना है इसलिए अपने व डॉक्टर ने आराम के हिसाब से जो भी मुद्रा चुनी हो, उसी में पूरा जोर लगाएं।आधी बैठी या उकडूँ मुद्रा कारगर हो सकती है क्योंकि इसमें गुरुत्वाकर्षण की मदद मिलेगी और शिशु नीचे की ओर आएगा इस पोजीशन में अपना चिबुक छाती से लगा लें ताकि आप पूरी तरह से जोर लगा सकें। अगर जोर न लग पा रहा हो तो अपनी पोजीशन बदलने की कोशिश करें। उकडूँ मुद्रा में आ जाएँ या हाथों-पैरों के बल बैठ जाएँ।

जब जोर लगाने की बारी आए तो बाकी सब भूल जाएँ। आप धकेलने में जितनी ऊर्जा लगाएँगी, शिशु उतनी जल्दी बाहर आ पाएगा।अगर गलत तरीके से धकेलेंगी तो सिर्फ ऊर्जा व्यर्थ जाएगी और थकान के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा।

अपने शरीर व जांघों को ढीला छोड़ कर ऐसे जोर लगाएँ, मानो शौच के लिए बैठी हो। अपना पूरा ध्यान शरीर के ऊपरी अंगों पर लगाने की बजाए योनि व गुदा पर लगाएँ। चेहरे पर भी दबाव न दें हल्के नीले निशान उभर सकते हैं। इस तरह शिशु भी बाहर नहीं आ पाएगा।

इस तरह जोर लगाने से मल भी बाहर आ सकता है। उस बारे में सोचकर शर्मिंदा न हों। डिलीवरी के दौरान मल या मूत्र का निकलना बड़ी बात नहीं है।कमरे में कोई भी इस बारे में परवाह नहीं करेगा और न ही आपको करनी चाहिए। पैड से झटपट सब साफ हो जाएगा।

जब दर्द उठने वाला है तो कुछ गहरी सांसें ले कर अपने-आप को धकेलने के लिए तैयार करें। फिर दर्द उठे तो गहरी सांस के साथ पूरा जोर लगाएँ। अगर आप नर्स या साथी की मदद चाहती हैं तो उन्हें बताएँ। धकेलने की प्रक्रिया कितनी लंबी होनी चाहिए इसका कोई जादुई फार्मूला नहीं होता। आपको हर दर्द के साथ धकेलना है। जब भी धकेलने की इच्छा हो पूरा जोर लगाएँ।शिशु को बाहर आने में देर नहीं लगेगी। कई बार कुदरतन धकेलने की इच्छा पैदा नहीं होती। तब डॉक्टर या नर्स आपकी एकाग्रता बनाने में मदद कर सकते हैं।

यदि शिशु का सिर दिखने के बाद गायब हो जाए तो कुंठित न हों ऐसा कई बार हो जाता है। आप तो इतना ही याद रखें कि आप सही दिशा में जा रही हैं।

संकुचन के मध्य आराम करें। अगर आप धकेलने से थक गई हैं तो डॉक्टर को बताएँ। वे कुछ दर्दों के दौरान नधकेल ने की सलाह देंगे ताकि आप अपनी खोई ताकत पा लें।

जब धकेलना रोकने को कहा जाए तो रुक जाएं। इच्छा होने पर मुँह से फूँकें।

सामने वाले शीशे पर नजर रखें। शिशु का उभरता सिर आपको धकेलने के लिए प्रोत्साहित करता रहेगा। अगर आप इस प्रक्रिया की वीडियो टेपिंग नहीं कर रहीं तो इसका रिप्ले दोबारा देखने का मौका नहीं मिलेगा।

एक बच्चे का जन्म

1. गर्भाशय का मुँह थोड़ा खुला है किन्तु अभी पूरी तरह नहीं खुल पाया है। 

2. कई बार माँ के पेल्विस क्षेत्र में अपना सिर निकालने के लिएशिशु प्रसव के दौरान हल्का घूम जाता है।

3. गर्भाशय का मुँह थोड़ा खुल गया है और सिर योनि मार्ग को धकेल रहा है।

4. शिशु का सिर बाहर निकलने के बाद बाकी डिलीवरी काफी जल्दी और आसानी से हो जाती है।

जब आप धकेलने की प्रक्रिया में होंगी तो डॉक्टर आपको सहारा देंगे। शिशु के दिल की धड़कन पर ध्यान रखेंगे। वे अपनी सर्जरी का सामान तैयार करेंगे। एंटीसैप्टिक दवा लगाएँगे।यदि जरूरत पड़ी तो हल्का चीरा लगा सकते हैं। वैक्यूम या फोरसैप का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

शिशु का सिर दिखने लगे तो वे शिशु के नाक व मुँह से फालतू म्यूकस निकाल देंगे व उसे बाहर निकालने की कोशिश करेंगे। सिर निकलने में ही समय लगता है। इसके बाद तो हल्का सा ही धक्का काफी होता है। इसके बाद तो नाल काट कर, शिशु को आपको दे दिया जाएगा या पेट पर लिटा देंगे। इस समय आप शिशु को हाथों से छू सकती हैं। अध्ययनों से पता चला है कि पैदा होते ही जिन शिशुओं को अपनी माँ की त्वचा का संपर्क मिलता है वे बाद में गहरी नींद लेते हैं व शांत रहते हैं।

इसके बाद डॉक्टर शिशु की स्थिति पर ध्यान देंगे व ‘अपगार स्केल’ पर एक मिनट और पाँच मिनट के हिसाब से जांच करेंगे। उसकी पीठ हल्के से थपथपाएंगे।आपकी कलाई व शिशु के टखने में पहचान के लिए एक बैंड पहना दिया जाएगा।नवजात की आँखों को संक्रमण से बचाने के लिए दवा डाली जाएगी। वैसे आप चाहें तो पहले शिशु को बाँहों में लेने के लिए कह सकती है।। उसके वजन की जांच होगी और फिर उसे तौलिए में लपेट दिया जाएगा।अस्पतालों में अलग-अलग हिसाब से यह काम होते हैं।

फिर शिशु को स्तनपान के लिए आपको सौंपा जाता है कई बार शिशु की पूरी जांच के लिए व कुछ टेस्ट करने के लिए नर्सरी में भी ले जाना पड़ता है। इसके बाद शिशु को आपके कमरे के पालने में पहुँचा देते हैं।

साथी के लिएआप क्या कर सकते हैं

धकेलते समय सारी ऊर्जा उसी ओर लगानी पड़ती है इसलिए आप मम्मा की मदद करें। अपना प्यार का आश्वासन दें। अगर वह आपकी ओर ध्यान न दे सके तो बुरा न मानें।

मुँह की नमी बनाए रखने के लिए आइस चिप्स देते रहें।

उसकी पीठ को सहारा दें। मुँह को गीले कपड़े से पोछें अगर वह अपनी पोजीशन से हट जाए तो उसे वापिस पोजीशन बनाने में मदद करें।

उसे साथ-साथ शीशे की ओर देखना याद दिलाएँ। यदि शीशा न हो तो उसे सब कुछ मुँहजबानी बताते जाएँ।

तीसरी अवस्थाप्लेसेंटा की डिलीवरी

बुरा समय बीत गया और अच्छा आने को तैयार है। शिशु जन्म के इस आखिरी चरण में कोख से प्लेसेंटा बाहर आएगा। हल्के संकुचन जारी रहेंगे लेकिन आप नवजात में मग्न होंगी इसलिए उनका एहसास नहीं हो पाएगा। गर्भाशय सिकुड़ने से प्लेसेंटा योनि तक आ जाएगा ताकि उसे बाहर निकाला जा सके।

डॉक्टर आपको सही समय पर धकेलने के लिए कहेंगे व प्लेसेंटा को बाहर निकालने में मदद करेंगे। आपको इंजेक्शन की मदद से ऑक्सीटॉसिन दिया जा सकता है ताकि संकुचन तेज हो और प्लेसेंटा बाहर आ सके। इससे गर्भाशय जल्दी ही अपने आकार में आ जाएगा और रक्तस्राव कम से कम होगा। यदि प्लेसेंटा साथ जुड़ा न हुआ तो डॉक्टर आपके गर्भाशय में उसके टुकड़े देखेंगे।

प्रसव समाप्त होने के बाद आप काफी थकान महसूस करेंगी या फिर ऊर्जा से भरपूर हो जाएँगी। कुछ महिलाओं को इस समय सर्दी लगती है तो कुछ भूख महसूस कर सकती हैं।

इस समय मासिक धर्म की तरह रक्तस्राव भी होता है। शिशु के जन्म के बाद आप भावनात्मक रूप से कैसा महसूस करेंगीं? हर महिला अलग तरह से प्रतिक्रिया देती है। आप अपने शिशु व साथी के लिए प्यार महसूस कर सकती हैं। लंबे प्रसव के बाद निढाल पड़ सकती हैं या फिर शिशु को छूकर थोड़ी हैरानी महसूस कर सकती हैं या फिर नन्हे मेहमान को देखकर थोड़ा बेचैन हो सकती हैं, उसने भी आपके मिलने की तकलीफें झेली हैं। आपकी प्रतिक्रिया चाहे जो भी हो, आप शिशु को गहराई से प्यार करेंगी। हालांकि ये सब बातें थोड़ा समय लेंगी। 

आप क्या कर सकती हैं

अपने शिशु को जी भरकर प्यार करें।शिशु अपनी मम्मी की आवाज पहचानता है इसलिए उससे बातें करें। उसके कान में धीरे से कुछ गुनगुनाएँ ताकि वह इस दुनिया में थोड़ा अपनापन महसूस कर सके। अगर शिशु को नर्सरी में रखा गया है तो थोड़ा इंतजार करें। 

अपने साथी के साथ भी कुछ वक्त बिताएँ। 

प्लेसेंटा को बाहर निकालने में मदद करें। कई बार तो धकेलने की भी जरूरत नहीं पड़ती। डॉक्टर बता देंगे कि आपको क्या करना चाहिए। 

चीरा लगा हो तो उसकी मरम्मत होने तक चुपचाप लेटें। 

अपनी उपलब्धि पर गर्व महसूस करें। 

आप अपने पैरीनियम की सूजन उतारने के लिए आईस पैक मँगाएँ। नर्स आपको पैड लगाने में मदद करेगी क्योंकि इस समय आपको रक्तस्राव होगा। इसके बाद आपको साफ-सुथरा करके अपने कमरे में भेज दिया जाएगा। 

साथी के लिएआप क्या कर सकते हैं?

आपके पास पत्नी व बच्चे के साथ बिताने के लिए काफी समय होगा। नर्स व डॉक्टर बाकी बचा काम संभाल लेंगे। अपने नन्हे मेहमान और उसकी मम्मा के लिए प्यार भरे दो शब्द कहें व बधाई दें। 

शिशु से थोड़ी सी बातचीत हो जाए तो कैसा रहेगा, वह आपका भी स्वर पहचानता है। उसे इस अनजाने माहौल में अपनापन मिलेगा। 

हाँ, मम्मा को भी थोड़ा सा दुलार देना न भूलें। 

उसके लिए जूस मगाएँ। अगर आप शैंपेन साथ लाए हैं तो जश्न मनाने में क्या हर्ज है। 

अगर कैमरा या वीडियो पास है तो नन्हे नटखट की तस्वीरें उतारना शुरू कर दें।

 

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