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बढ़ रहा है लेबर पेन के लिए एपिड्यूरल एनाल्‍जेसिया का उपयोग, जानें इसके दुष्‍प्रभाव: Epidural Analgesia Effects

पिछले कुछ सालों में लेबर पेन को कम करने के लिए दर्दनिवारक गोलियां या इंजेक्‍शन का उपयोग काफी बढ़ गया है।

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प्रीटर्म प्रीमेच्योर रप्चर ऑफ मैम्ब्रेन को सही समय पर पहचान कर स्वस्थ रह सकते हैं मां और शिशु

प्रीटर्म प्रीमेच्योर रप्चर ऑफ मैम्ब्रेन यदि 37 सप्ताह से पहले पानी की थैली फट जाए तो इसे पी.वी.आर.ओ.एम. कहते हैं। इसकी वजह से शिशु का समय से पहले जन्म हो सकता है या उसे किसी तरह का संक्रमण हो सकता है। यह कितना सामान्य है? यह 3 प्रतिशत से भी कम मामलों में होता है। धूम्रपान करने वाली,एस.टी.डी. रोगों से ग्रस्त, योनि से रक्तस्राव होने के रोग या प्लेसेंटल एवरप्शन वाली महिलाओं को इसका खतरा ज्यादा होता है। यदि जुड़वां शिशु हों या बैक्टीरियल वैजिनिओसिस हो तो खतरा और भी बढ़ जाता है। आप जानना चाहेंगी यदि प्रीमेच्योर शिशु को आईसीयू में नवजात को भर्ती किया जाए तो आप कुछ ही दिनों में स्वस्थ नवजात के साथ घर-वापसी कर सकती हैं मेडीकल तकनीकों को धन्यवाद। आप जानना चाहेंगी पी.पी.आर.ओ.एम. को सही वक्त पर पहचानने व इलाज करने से माँ व शिशु स्वस्थ रहते हैं। शिशु का समय से पूर्व जन्म होने पर भी उसे आईसीयू में रख कर सुरक्षा दी जा सकती है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? योनि से द्रव्य का स्राव होता है। मूत्र व एम्नियोटिक द्रव्य में फर्क जानने के लिए उसे सूंघ कर देखें। मूत्र की गंध अमोनिया जैसी होगी। यदि द्रव्य संक्रमित न हो तो उसकी गंध बुरी नहीं होती। यदि आपको इस बारे में कोई भी शक हो तो डॉक्टर को बताने में देर न करें। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं?:- यदि 34 सप्ताह के बाद मैम्ब्रेन फटी है तो शिशु की डिलीवरी कर दी जाएगी। यदि अभी डिलीवरी होना संभव नहीं है तो आपको अस्पताल में रखा जाएगा व संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाएँगे। शिशु के फेफड़े मजबूत करने के लिए स्टीरॉयड दिए जाएँगे।यदि शिशु डिलीवरी के लिए काफी छोटा है तो इस प्रक्रिया को रोकने की दवाएँ दी जाएँगी। ऐसा बहुत कम होता है कि मैम्ब्रेन अपने-आप ठीक हो जाए व द्रव्य का रिसाव बंद हो जाए। यदि ऐसा हो तो आपको घर जाने की इजाजत मिल जाएगी बस थोड़ा सावधान रहने को कहा जाएगा। क्या इससे बचाव हो सकता है? :- यदि आप पी.पी.आर.ओ.एम. से अपना बचाव चाहती है तो योनि संक्रमण से बचें क्योंकि उसी वजह से यह होता है। प्रीटर्म या प्रीमेच्योर लेबर ऐसा प्रसव जो बीसवें सप्ताह के बाद लेकिन 37वें सप्ताह से पहले शुरू हो, प्रीटर्म लेबर कहलाता है। यह कितना सामान्य है? यह एक आम समस्या है। धूम्रपान, मदिरापान, मादक द्रव्यों के सेवन, कम वजन, ज्यादा वजन, अपर्याप्त पोषण, मसूड़ों के संक्रमण, एस.टी.डी., लेक्टीरियल,मूत्राशय मार्ग व एम्नियोटिक द्रव्य के संक्रमण, अक्ष्यम सर्विक्स, यूटेराइन की गड़बड़ी, माँ की लंबी बीमारी, प्लेसेंटल एवरशन व प्लेसंटाप्रीविया की वजह से इसका खतरा बढ़ जाता है। 17 से कम व 35 से अधिक आयु की महिलाओं, मल्टीपल शिशुओं की मांओं व प्रीमेच्योर डिलीवरी का इतिहास रखने वाली महिलाओं में भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? :- इसमें निम्नलिखित लक्षण शामिल हो सकते हैं‒ आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? शिशु जितने दिन कोख में रहता है उसके स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिहाज से अच्छा ही होता है इसलिए प्रसव को रोकना ही प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए। यदि संकुचन भी हो रहा हो तो डॉक्टर स्थिति के हिसाब से अंदाजा लगाएँगे कि आपको घर पर ही आराम करना है या अस्पताल में रह कर दबाएँ व इंजेक्शन लेने हैं। आपकी स्थिति के हिसाब से दवा व इंजेक्शन दिए जाएँगे। यदि डॉक्टर को ऐसा लगे कि डिलीवरी रोकने से आपको या शिशु को किसी भी तरह का खतरा हो सकता है तो वे उसे स्थगित करने का कोई उपाय नहीं करेंगे। क्या इससे बचाव हो सकता है? सभी प्रीटर्म बर्थ रोके नहीं जा सकते क्योंकि उनके कारणों पर हमारा बस नहीं चलता। हालांकि प्रसव-पूर्व अच्छी देखभाल, बढ़िया खान-पान दांतों की प्रीटर्म लेबर का पता लगाना आजकल कई प्रकार के टेस्टो, जांच की मदद से प्रीटर्म लेबर का अनुमान लगाया जा सकता है। गर्भाशय या योनि के स्राव एफएफ एन की मदद से इसका पता चलता है।यदि जांच में पॉजिटिव नतीजा आए तो प्रीटर्म लेबर को रोकने के कदम उठाने चाहिए। यह टेस्ट उन्हीं महिलाओं में किया जाता है, जिन्हें इसका ज्यादा खतरा हो।इसके अलावा सर्विक्स की लंबाई मापने कास्क्रीनिंग टेस्ट भी होता है इसमें अल्ट्रासांउड की मदद से सर्विक्स की लंबाई मापी जाती है अगर वह छोटी हो या खुल रही हो तो उसे रोकने के उपाय किए जा सकते हैं। अच्छी देखभाल , कोकेन व मदिरा जैसे नशीले पदार्थों के त्याग, जांच व संक्रमण से बचाव के उपाय अपनाकर डॉक्टर के सभी निर्देशों का पालन करके, काफी हद तक प्रीटर्म बर्थ को रोक सकते हैं। जिन महिलाओं को पहले से भी यह समस्या रही हो, उनके लिए भी कोई न कोई उपाय किया जा सकता है। यह भी पढ़ें –प्रेगनेंसी में मिसकैरिज से जुड़े इन फैक्ट्स की जानकारी होनी चाहिए

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शिशु के जन्म के समय प्रेगनेन्ट वुमन और उनके पार्टनर के काम आएगी ये गाइड

शिशु को जन्म देना एक बहुत बड़ी चुनौती है। यह काफी भावनात्मक और शारीरिक उलझन भी होती है। यह एक ऐसा अनुभव है, जिसे झेलने के बाद आपके हाथ में खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी। खुशकिस्मती से इस प्रक्रिया में आप अकेली नहीं होंगी।

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अगर आप अकेली हैं तो जरूरी है आपातकालीन डिलीवरी की जानकारी

वैसे तो आमतौर पर ऐसी नौबत नहीं आती है लेकिन फिर भी आपातकालीन डिलीवरी की जानकारी हर प्रेगनेंट महिला को होनी चाहिए।   1. शांत रहने की कोशिश करें। 2. लोकल आपातकाल नंबर मिलाकर अस्पताल बात करें। 3. किसी पड़ोसी की मदद माँगेंगे।  4. धकेलने का मन होने पर भी जोर न लगाएँ  5. अपने […]

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लेबर और डिलीवरी से जुड़े मन में उठने वाले सवाल और उनके जवाब

क्या आप इन दिनों गिनती में व्यस्त हैं? क्या फिर से अपने पाँव देखने को बेताब हैं?अपने पेट के बल या फिर चैन से सोना चाहती हैं? चिंता न करें, गर्भावस्था समाप्त होने को हो। वो पल आने ही वाला है जब शिशु आपके पेट की बजाए बाँहों में होगा।आप शायद उस प्रक्रिया के बारे में भी सोच रही होंगी जो शिशु को आप तक लाएगी। प्रसव पीड़ा कब आरंभ होगी, आप यही सोचकर परेशान हैं? दूसरी खास बात कि वह खत्म कब होगी? क्या मैं दर्द सह पाऊँगी? क्या मुझे एपीड्यूरल की जरूरत होगी? भ्रूण की देखरेख? एपीसिओटॉमी? क्या मैं उकड़ूं मुद्रा में प्रसव कर सकती हूँ? कहीं अस्पताल पहुँचने से पहले देर तो नहीं हो जाएगी? ऐसे सवालों, जवाबों, साथी, नर्सों, दाई व डॉक्टरों से घिरे होने के साथ-साथ आप उस प्रक्रिया को पूरा कर लेंगी। बस, यहाँ यह याद रखें कि प्रक्रिया चाहे जो भी हो, यह शिशु को आप तक लाने में सहायक होगी।

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खुद करें अपने बच्चे के जन्म स्थान का चुनाव

आजकल आप गर्भावस्था के दौरान अपनी इच्छा व सुविधा से तय कर सकती हैं कि अपने शिशु को कहां व कैसी परिस्थितियों में जन्म देंगी। आप और आपका साथी मिल कर विचार करें व याद रखें कि ऐसे फैसलों को अपनी इच्छा से आखिर तक बदला जा सकता है। बर्थिंग रूम अस्पताल का वह कमरा बच्चे […]

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