हमारी कांता मां-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hamari Kanta Maa Story
Hamari Kanta Maa Story

Hamari Kanta Maa Story: जो हम दूसरों को देते हैं वही हमें वापस मिलता है, फिर चाहे वो सम्मान हो या धोखा। कांता माँ, यानी बड़ी मां, ने अपने जीवन में सबको प्यार और सम्मान ही दिया था। और बदले में उन्हें सच में सम्मान ही वापस मिला। रघुवंशी परिवार आज एक होकर खड़ा है तो बड़ी माँ की ही वजह से।
मैं वैदेही रघुवंशी, रघुवंशी खानदान के सबसे छोटे बेटे सूर्य रघुवंशी की बेटी। जब से होश संभाला तब से घर में एक ही नाम सुनाई देता था, बड़ी बहू…बड़ी बहू। बड़ी बहू यानि मेरे सबसे बड़े ताऊजी बजरंग रघुवंशी की पत्नी कांता रघुवंशी। जिन्हें प्यार से मैं बड़ी माँ की जगह कांता माँ बुलाती थी।
कांता माँ के चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती थी। मेरी दादी, बहुत कड़क मिज़ाज की थीं। उन्हें हर काम बढ़िया और पर्फेक्ट चाहिए था। और ये केवल कांता माँ के ही बस की बात थी।

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कांता माँ स्वयं केवल दसवीं पास थीं किन्तु उन्होंने पढ़ाई को बहुत महत्व दिया। उन्हीं के कारण घर की लडकियाँ स्नातक के बाद भी पढ़ पाईं। मेरी माँ एक आधुनिक विचारों की महिला हैं। पिताजी और उनकी शादी वैसे तो लव मैरिज है, पर कांता माँ ने इसे अरेंज मेरिज का रूप दिया। घर में आज तक किसी को नहीं पता कि मेरे माँ-पापा शादी से पहले से एक दूसरे को जानते थे। मेरे पापा तो कांता माँ को भाभी माँ का दर्जा देते हैं। वह हमेशा कहते हैं कि कांता माँ ने उनके और परिवार के लिए जो किया है वो सगी माँ भी नहीं कर पाती शायद।
मेरी माँ ने राजनीती विज्ञान में मास्टर्स किया था। वो पी.एच .डी. करना चाहती थीं। एक दिन उन्होंने कांता माँ के सामने अपनी ख्वाहिश ज़ाहिर की,
“भाभी, मेरा बचपन से सपना था कि मैं अपने नाम के आगे डॉक्टर लगा देखूं। पर…अब ये सपना कभी पूरा नहीं होगा।”
“क्यों? क्यों नहीं होगा छोटी? तुम चाहो तो सब हो सकता है।”
“अब आपके देवर से शादी जो कर ली भाभी! अम्मा जी कहां कॉलेज जाने देंगी?”

“वो तुम मुझपर छोड़ दो। बस तुम अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाने की तैयारी कर लो।” कांता माँ मुस्कुराते हुए बोली।
“अम्मा, एक बात पूछूं आपसे? आप इतना अच्छा सिलाई कढ़ाई का काम जानती हैं, कभी दिल में नहीं आया कि अपने इस हुनर को दुनिया के सामने लाया जाए?” कांता माँ ने दादी के पैर दबाते हुए पूछा।
“सच कहूं तो बहुत मन था कि मेरा खुद का सिलाई का बिजनस हो, पर …बाबा से कहने की हिम्मत ही ना हुई। और हमारे यहाँ औरतें काम नहीं करतीं और ना ज्यादा पढ़ाई करें।” दीदी बोलीं।
“पर अम्मा, सोचो कि कोई होता उस समय जो आपके सपनों को समझता और आपके बाबा से बात करता, तो ज़िंदगी ही कुछ और होती ना!”
“अरे! ऐसे मसीहा कहाँ मिलते हैं? काश मिला होता हमें भी ऐसा कोई। अब तो जिन्दगी कट गई ऐसे ही कांता!” दादी ने आह! भरते हुए कहा।
“पर अम्मा, यदि आपको वो मसीहा बनने का मौका मिले तो?”
“मतलब? अरी! जलेबी की तरह बात को क्यों घुमा रही है?”
“अम्मा आप तो जानते हो छोटी कितनी पढ़ी लिखी है, उसका सपना है कि वो अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाए। सोचो, घर में किसी के नाम के आगे डॉक्टर लगा होगा, तो रघुवंशी खानदान की नाक कितनी ऊंची हो जाएगी! आप हाँ कर दो तो वो आगे पढ़ाई कर पाएगी।”
कांता माँ के समझाने का ही असर था कि आज माँ अपने नाम के आगे डॉक्टर वंदना रघुवंशी लिखती हैं। जब माँ से उनके डॉक्टर बनने का सफर सुना तो माँ से ज़्यादा कांता माँ पर गर्व महसूस हुआ।
कांता माँ बड़ों की ही नहीं घर के बच्चों की भी चहेती थीं। हमें कोई भी बात दादी से मनवानी होती थी तो हम सीधे कांता माँ के पास ही जाते थे।
एक दिन दादी ने रिया दीदी, मेरे पापा के मंझले भाई की छोटी बेटी को जींस पहन कर‌ बाहर जाने पर खूब लताड़ा। रिया दीदी ने गुस्से में आकर दादी को चार बातें सुना दीं। घर‌ महाभारत का कुरूक्षेत्र बन गया। रिया दीदी गुस्से में घर छोड़ अपनी सहेली के यहां चली गई। तब कांता माँ दीदी के पास गईं।
“नहीं बड़ी ताइजी, दादी की दादागिरी नहीं चलेगी। अरे! मैंने कौन सा मिनी स्कर्ट या फटी हुई जींस पहनी थी। ऐसे घुट-घुट कर जीने से अच्छा तो मरना है।”
“सही कहा तूने रिया। ऐसे जीने से अच्छा तो मरना है। और तू तो इस दुनिया में आती ही नहीं अगर अम्मा ना लड़ती तेरे लिए।”
“हाँ रिया, तेरे दादाजी अपने तीनों बेटों से एक एक पोते की उम्मीद रखते थे। जब तू अपनी माँ के पेट में आई तो ज़बरदस्ती उन्होंने लिंग परीक्षण कराया। जब पता चला कि लड़की है तो वो तो तुझे कोख में ही मार देना चाहते थे, पर वो तो अम्मा जी थीं, जिन्होंने तेरी जान की भीख मांगी और दादाजी को आश्वस्त किया कि शिशिर और कविता तीसरा बच्चा करेंगे। आज तू उस औरत को इतना भला बुरा सुना आई।” ये कह कांता माँ वहाँ से चलीं गईं।
घर आ उन्होंने दादी को भी शांत किया।
“अम्मा, आपकी माँ क्या पहनतीं थीं?”
“वो तो गांव के ठेठ भारतीय कपड़े पहना करें थीं।”
“तो आप भी वही पहनते होंगे?”
“नहीं, मुझे तो मेरी माँ ने सलवार सूट की छूट दे रखी थी। गांव के कपड़े पहन बाहर निकलने में शर्म आती थी। उनका वक्त और था हमारा वक्त और था।”

“सही कहा अम्मा आपने, और आज भी वक्त और है। अम्मा, आप लड़कियों पर सिर्फ सलवार सूट जो आपका पहनावा है, वही पहनने की ज़िद्द नहीं कर सकते। अम्मा जमाना बदल गया है। आज रिया और घर की बाकी लड़कियां भी तो बाहर निकलते हैं, उन्हें भी तो जमाने के साथ चलना है। और फिर वो कोई फ़ूहड़ कपड़े नहीं पहनतीं। सबको अपने घर की मान-मर्यादा का ख्याल है अम्मा।” कांता माँ ने दादी को समझाया।
रिया दीदी ने घर आकर दादी से माफी मांगी और दादी ने भी उन्हें जींस पहनने की इजाजत दे दी। घर की शांति वापस कायम हो गई और ये सब कांता माँ की सूझबूझ की वजह से हुआ।
आज उनकी तेरहवीं पर घर में पाठ है। सबकी आँखों में नमी है, पर उनकी तस्वीर के आगे नमन करते समय सबके चेहरे पर अनायास ही उन्हें याद कर मुस्कुराहट बिखर जाती थी। नयी सदी और पुरानी सदी को जोड़ने वाला पुल थीं हमारी कांता माँ।