Hindi Kahani: कांता, आठ बजने वाले हैं और तुम मॉल में ही हो। घर भागो’- रागिनी ने घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा।
‘ओ मां, आज मेरी खैर नहीं। मैं चली। बिल पेमेंट आप कर देना। बाद में हिसाब कर लेंगे’- कांता ने घबराते हुए कहा।
रागिनी और कांता दिल्ली के द्वारका में ‘ग्रीन बेल्ट सोसायटी’ में रहती हैं। दोनों में गहरी दोस्ती है।
‘हमें औरतों के हक के लिए लड़ना होगा। नारी की सामाजिक-आर्थिक स्वतंत्रता के बिना समाज का संपूर्ण विकास संभव नहीं है’ – कमला देवी हाउसिंग सोसायटी की लेडिज क्लब में भाषण दे रही हैं।
थोड़ी देर बाद ‘कमला निवास’ में ।
‘बहू जल्दी खाना लगाओ। साढ़े आठ बजे रहे हैं। आज बहुत देर हो गई। भाषण देते-देते मैं बहुत थक गई हूं’- कमला देवी ने कहा।
‘मम्मी जी, अभी खाना नहीं बना है। आज मार्केट चली गई थी। अभी-अभी आई हूं। थोड़ा टाईम लगेगा। बस, थोड़ा इंतजार कीजिए’ -कांता ने डरते हुए कहा।
‘सास-ससुर घर में भूखे बैठे हैं और इनको मार्केटिंग की पड़ी है। आज-कल की औरतों को तो जरा-सी छूट क्या दीजिए, सर पर बैठ जाती हैं। आने दो लल्ले को। तुम्हारी सब मस्ती, गुलछर्रे निकलवाती हूं’- कमला देवी ने कांता को क्रोधित मुद्रा में कहा।
गोपाल कुमार कांता के पति और कमला देवी के इकलौते बेटे हैं। कमला देवी प्यार से उन्हें लल्ला बुलाती हैं। वे दिल्ली सरकार में इलेक्ट्रिसिटी डिपार्टमेंट में इंजीनियर हैं। कांता के ससुर, गजेन्द्र सिंह रिटायर्ड ब्यूरोक्रैट हैं। कांता की शादी को दस वर्ष बीत चुके हैं। वे दो बेटियों की मां हैं।
आधे घंटे के बाद।
‘मां, ऐसे मुंह क्यों बनाई हुई हो? कुछ हुआ क्या?’- गोपाल जी ने सोफे पर गुस्साए मुद्रे में बैठे कमला जी से पूछा।
‘मुझसे क्या पूछता है? अपनी बीवी से पूछ। हमें भूखे मारने का पूरा प्रोग्राम बना रखा है। तुम्हारे पीठ पीछे गुलछर्रे उड़ा रही है’- कमला जी ने आंखों से आंसू बहाते हुए कहा।
तीर निशाने पर लगा।
‘तुम्हारी ये मजाल। मेरी मां का अपमान करो। उसे अभी तक डिनर क्यों नहीं मिला? शादी के समय ही तुम्हें बता दिया था कि मुझे खुश देखना चाहती हो तो मां-पापा को डिनर आठ बजे मिल जाना चाहिए। मैंने तुम्हें कुछ छूट क्या दे दी तुम तो मनमानी करने लग गई। चलो मां से माफी मांगो’- गोपाल जी ने कांता से क्रोध से तमतमाते हुए कहा।
‘मैंने कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। अपना दुःख कभी बताती भी नहीं हूं। वो तो एक हफ्ते बाद आपका बर्थडे है। आपके लिए शर्ट पसंद करने में लेट हो गया’- कांता ने डरते-डरते जवाब दिया।
‘मै कुछ नहीं जानता। तुम मां से माफी मांगो’- गोपाल जी ने चिल्लाते हुए कहा।
‘क्या माफी? बहू तुम कोई माफी नहीं मांगोगी। मैं सालों से सब देखता आ रहा हूं। बहू घर के सभी नियम का पालन करती आई है। हमें हमेशा आठ बजे डिनर मिलता रहा है। लेकिन बात डिनर की है ही नहीं। यह तो भूख के नाम पर इमोशनल ब्लैकमेल है। शादी के बाद बेटे को और घर को अपने कंट्रोल में रखने का टूल-मात्र है। खासकर जब से बहू ने दूसरी बार बेटी को जन्म दिया है, तब से उसके पीछे लग गई है। लेडिज क्लब की प्रेसिडेंट और अपनी ही बहू का बात-बात में अपमान। साफ है, नारी स्वतंत्रता पर लेक्चर महज दिखावा है। बेटा, तुम तो भाग्यशाली हो कि आज के दौर में ऐसी बीवी मिली है। नहीं तो टीवी, न्यूज पेपर में बहुओं की कहानियों का अंत नहीं है। बेटा, तुम भी मां का पिछलग्गू बनकर बहू का अपमान मत किया करो। बेटा का दो भागों में बंटना कोई मां देख नहीं सकती। लेकिन तुम्हें दोनों रिलेशनशिप में बैलेंस बनाना सीखना होगा। दोनों का अपना-अपना स्थान है, दोनों सम्माननीय है। जाओ बहू निश्चिंत होकर डिनर बनाओ। आठ बजे के बंधन से तुम आजाद हो’- गजेन्द्र जी ने बेटे को समझाते हुए कहा।
कांता ससुर को अश्रुपूर्ण नेत्रों से नमन कर रही थी। उसे चार साल पहले स्वर्गवासी हुए अपने पिता की याद आ गई।
