भगवान शिव का नाम आते ही मन में एक वैरागी पुरुष की छवि उभर आती है, जिन्होंने न जाने कितनी ही विचित्र चीजों को अपने शृंगार के रूप में धारण किया हुआ हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव जी के शरीर पर मौजूद हर एक प्रतीक का एक विशेष महत्व और प्रभाव है। आईये जानते हैं इसके पीछे का सत्य और महत्व क्या है…
भस्म
भस्म शिव जी का प्रमुख श्रृंगार है। शिव का भस्म रमाने के पीछे कुछ आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कारण भी हैं। एक ओर यह दर्शाता है की कैसे परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना चाहिए? वही दूसरी ओर भस्म लगाने का वैज्ञानिक कारण यह है कि भस्म शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इससे शरीर सर्दी में सर्दी और गर्मी में गर्मी नहीं लगती। कई तरह के त्वचा संबंधी रोगों में भी भस्म को इस्तेमाल किया जाता है।
रुद्राक्ष
माना जाता है कि भगवान शिव ने संसार के उपकार के लिए कई वर्षों तक तप किया।उसके बाद जब उन्होंने अपनी आँखें खोली तो उनके नेत्र से कुछ आंसू जमीन पर गिर गए। इन बूंदों से रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई। सच्चे मन से भगवान भोले की आराधना करने के बाद रुद्राक्ष धारण करने से तन-मन में सकारात्मकता का संचार होता है।
नागदेवता
महाकल्याणकारी भगवान शिव के गले में नागदेवता विराजमान है। पुराणों में वर्णन है कि समुद्र-मंथन के समय इन्होंने रस्सी के रूप में कार्य करते हुए सागर को मथा था। वासुकी नाम का यह नाग शिव का परम भक्त था। इनकी भक्ति से ही प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में आभूषण की तरह लिपटे रहने का वरदान दिया।
खप्पर
शिव भगवान ने प्राणियों की क्षुधा शांति के माता अन्न्पूर्णा से भिक्षा मांगी थी। इसका मतलब है कि यदि हमारे द्वारा किसी का भी कल्याण होता है, तो उसको प्रदान करना चाहिए।
पैरों में कड़ा
यह स्थिरता तथा एकाग्रता को दर्शाता है। शिव जी के समान ही कुछ योगीजन भी एक पैर में कड़ा धारण करते हैं।
डमरू
कहते हैं कि भगवान शिव के हाथों में विद्यमान डमरू बजने से आकाश, पाताल एवं पृथ्वी एक लय में बंध जाते हैं। ब्रह्म-स्वरूप डमरू नाद सृष्टि सृजन का मूल बिंदू हैं।
त्रिशूल
भगवान शिव का त्रिशूल सत, रज और तम गुणों के सांमजस्य को दर्शाता है। यह बताता है कि इनके बीच सांमजस्य के बिना सृष्टि का संचालन सम्भव नहीं है।
शीश पर गंगा
जब पृथ्वी की विकास यात्रा के लिए माता गंगा का आव्हान किया गया तब धरती गंगा नदी के आवेग को सहने में असमर्थ थी। इसी वजह से शिव जी ने अपनी जटाओं में गंगा माँ को स्थान दिया। इस बात से यह सिद्ध होता है कि दृढ़ संकल्प के माध्यम से किसी भी अवस्था को संतुलित किया जा सकता है।
चन्द्रमा
स्वभाव से शीतल चंद्रमा को धारण करने का अर्थ है कि कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, लेकिन मन को हमेशा अपने काबू में रखना चाहिए।
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