Mahakaleshwar
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Mahakaleshwar : देश के अलग-अलग भागों में स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे खास है श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में क्षिप्रा नदी के निकट रुद्र सरोवर के तट पर स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगों में इनकी गणना तीसरे स्थान पर आती है, किंतु प्रभाव की दृष्टि से इसका प्रथम स्थान है, क्योंकि इनकी पूजा, आराधना, अभिषेक आदि का प्रभाव कुछ ही मिनटों में प्रत्यक्ष दिखाई देने लगता है।  ऐसी मान्यता है कि उज्जयिनी का एक ही राजा है और वे हैं भूतभावन महाकालेश्वर। यही वजह है कि पुराने समय से ही कोई राजा उज्जैन में रात्रि विश्राम नहीं करता और ना ही राजा की तरह महाकालेश्वर के दर्शन करता है।

महाकाल नाम का रहस्य

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Mahakal is related to death

महाकाल में भस्म आरती होती है और ये कहा जाता है कि पहले यहां जलती हुई चिता की राख लाकर पूजा की जाती थी इसलिए माना जाता था कि महाकाल का संबंध मृत्यु से है। दरअसल, काल का मतलब मृत्यु और समय दोनों होते हैं और ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में पूरी दुनिया का मनक समय यहीं से निर्धारित होता था इसलिए इसे महाकालेश्वर नाम दे दिया गया। दूसरा कारण भी काल से ही जुड़ा हुआ था। दरअसल महाकाल का शिवलिंग तब प्रकट हुआ था जब एक राक्षस को मारना था। भगवान शिव उस राक्षस का काल बनकर आए थे और साथ ही उज्जैन के वासियों के आग्रह पर महाकाल यहीं स्थापित हो गए। 

भस्म आरती एक रहस्य 

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Incineration Aarti a mystery

प्राचीन काल में राजा चंद्रसेन शिव के बहुत बड़े उपासक माने जाते थे। एक दिन राजा के मुख से मंत्रो का जाप सुन एक किसान का बेटा भी उनके साथ पूजा करने गया, लेकिन सिपाहियों ने उसे दूर भेज दिया। वो जंगल के पास जाकर पूजा करने लगा और वहां उसे अहसास हुआ कि दुश्मन राजा उज्जैन पर आक्रमण करने जा रहे हैं और उसने प्रार्थना के दौरान ही ये बात पुजारी को बता दी। ये खबर आग की तरह फैल गई और उस समय विरोधी राक्षस दूषण का साथ लेकर उज्जैन पर आक्रमण कर रहे थे। दूषण को भगवान ब्रह्मा का वर्दान प्राप्त था कि वो दिखाई नहीं देगा। 

उस वक्त पूरी प्रजा ही भगवान शिव की अराधना में व्यस्त हो गई और अपने भक्तों की पुकार सुनकर महाकाल प्रकट हुए। महाकाल ने दूषण का वध किया और उसकी राख से ही अपना श्रृंगार किया। तब से हर सुबह महाकाल की भस्म आरती करके उनका श्रृंगार होता है और उन्हें ऐसे जगाया जाता है। इसके लिए वर्षों पहले शमशान से भस्म लाने की परंपरा थी, हालांकि पिछले कुछ वर्षों से अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़यों को जलाकर तैयार किए गए भस्म को कपड़े से छानने के बाद इस्तेमाल करना शुरू हो चुका है। केवल उज्जैन में आरती देखने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है।

दरअसल भस्म को सृष्टि का सार माना जाता है, इसलिए प्रभु हमेशा इसे धारण किए रहते हैं। आरती का विधान बन गया। ये दिन की सबसे पहली आरती होती है, यहां के नियमानुसार, महिलाओं को आरती के समय घूंघट करना पड़ता है। दरअसल महिलाएं इस आरती को नहीं देख सकती हैं। इसके साथ ही आरती के समय पुजारी भी मात्र एक धोती में आरती करते हैं। अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्र को धारण करने की मनाही रहती है। महाकाल की भस्म आरती के पीछे एक यह मान्यता भी है कि भगवान शिवजी श्मशान के साधक हैं, इस कारण से भस्म को उनका श्रृंगार आभूषण माना जाता है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोग दोष से भी मुक्ति मिलती है। 

महाकालेश्वर

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महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है, जहां कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं। गर्भगृह में भगवान महाकालेश्वर का विशाल और विश्व का एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग है और इसकी जलाधारी पूर्व की तरफ है, जबकि दूसरे शिवलिंगों की जलाधारी उत्तर की तरफ होती है। साथ ही महाकालेश्वर मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर से कर्क रेखा भी गुजरती है, इसलिए इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी माना जाता है। ज्योतिष और तंत्र-मंत्र की दृष्टि से भी महाकाल का विशेष महत्व माना गया है। साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मनमोहक प्रतिमाएं हैं। महाकाल मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है भोलेनाथ की भस्म आरती, जो प्रात 4 से लेकर 6 बजे तक होती है। 

गर्भगृह में नंदी दीप भी स्थापित है, जो सदैव प्रज्जवलित रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की विशाल प्रतिमा स्थापित है। इस कक्ष में बैठकर हजारों श्रद्धालु शिव आराधना का पुण्यलाभ लेते हैं। मंदिर परिसर में ही एक विशाल कुंड है, जिसे कोटितीर्थ के नाम से जाना जाता है। महाकालेश्वर परिसर में कई दर्शनीय मंदिर हैं। इनमें नागचंद्रेश्वर मंदिर वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोला जाता है। 

महाकाल मंदिर परिसर में स्थित अन्य मंदिर

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Mahakal Temple

महाकालेश्वर मंदिर परिसर में और भी ऐसे मंदिर तथा देव प्रतिमाएं हैं, जो श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र हैं। इनमें लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर, ऋद्धि-सिद्धि गणेश, विट्ठल पंढरीनाथ मंदिर, श्रीराम दरबार मंदिर, अवंतिका देवी, चंद्रादित्येश्वर, मंगलनाथ, अन्नपूर्णादेवी, वाच्छायन गण्पति, औंकारेश्वर महादेव, नागचंद्रेश्वर महादेव ; वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही मंदिर के पट खुलते है। नागचंद्रेश्वर प्रतिमा, सिद्धि विनायक मंदिर, साक्षी गोपाल, संकटमोचन सिद्धदास हनुमान मंदिर, स्वप्नेश्वर महादेव, बृह्स्पतिश्वर महादेव, त्रिविष्टपेश्वर महादेव, मां भद्रकाली मंदिर, नवग्रह मंदिर, मारुतिनंदन हनुमान, कोटितीर्थ कुंड, श्रीराम मंदिर, नीलकंठेश्वर महादेव, गोविंदेश्वर महादेव, सूर्यमुखी हनुमान, लक्ष्मीप्रदाता मोढ़ गणेश मंदिर, स्वर्णजालेश्वर महादेव, शनि मंदिर, कोटेश्वर महादेव, अनादिकल्पेश्वर महादेव, चंद्र.आदित्येश्वर महादेव, वृद्धकालेश्वर महादेव, सप्तऋषि मंदिर, श्री बालविजय मस्त हनुमान आदि प्रमुख हैं।