baadashaah ka mooly story in Hindi
baadashaah ka mooly

baadashaah ka mooly story in Hindi : अकबर बादशाह को बुद्धिमान पुरुषों से बड़ा प्रेम था।

एक दिन दरबार लगा था और बादशाह अपने राजकार्यों को पूरा कर रहे थे। तभी बीरबल को नीचा दिखाने के उद्देश्य से एक दरबारी बोला, ‘जहाँपनाह, माफी मिले तो गुलाम कुछ अर्ज करे।’

बादशाह ने उसे अनुमति दे दी। वह बोला, ‘गरीबपरवर! आज रास्ते में एक आदमी एक अजीब चर्चा कर रहा था। वह अमीर अपने नौकर से कह रहा था, ‘तू किसी काम का नहीं जान पड़ता, क्योंकि तू मूर्ख है।’

‘दूसरा आदमी उस अमीर का नौकर था। उससे सुनकर चुप न रहा गया। वह अपने मालिक से विनम्रता के साथ बोला, ‘सेठ जी! यद्यपि मैं आपका सेवक हूँ फिर भी कहना पड़ता है कि बीरबल की ही बुद्धि बडी है। इसलिए इसका निपटारा उन्हीं के द्वारा होना चाहिए।’

नौकर द्वारा कही गई यह बात बादशाह के मन में बैठ गई। उन्होंने बीरबल की बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेने के लिए कहा, ‘बीरबल, क्या तुम बता सकते हो कि मेरा मूल्य और वजन क्या है?’

इस प्रश्न को सुनकर बीरबल ने उत्तर दिया, ‘जहाँपनाह! यह काम जौहरियों का है क्योंकि मूल्य लगाना तो वे ही जानते हैं। यदि हुक्म दें तो शहर के तमाम जौहरी और साहूकारों को बुला लूँ।’ दरबारी की इच्छा बीरबल को फँसाने की थी। परंतु बीरबल ने अपनी बुद्धि के बल से उसे फँसा दिया, क्योंकि वह भी जौहरी ही था। बादशाह के हुक्म से नगर के सभी जौहरी, सर्राफ और साहूकार बुलवाए गए। वे सब अचानक बुलाए । जाने से बहुत घबराए हुए थे।

बीरबल बोला, ‘नगर के जौहरियो, सर्राफो, साहूकारो! आप लोगों को इसलिए बुलाया गया है कि आप सब मिलकर बादशाह का मूल्य ज्ञात करें।’

यह सुनकर सब-के-सब सोच-विचार करने लगे। कुछ समझ में न आने पर वे परेशान होकर कहने लगे, ‘हमें अभी तक मनुष्य की कीमत लगाना मालूम नहीं है।’

इसी बीच एक व्यक्ति ने बीरबल की ओर इशारा किया और गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘गरीबपरवर! इस समय हम लोग सरकारी सूचना पाकर तुरंत भागे चले आ रहे हैं। इस कारण हमारा हृदय आशंकित हो रहा है। हमको कुछ देर की मोहलत मिले तो एक जगह बैठकर आपस में विचार कर उत्तर दें।’

बादशाह ने उनकी बात मान ली और उनकी मदद के लिए बीरबल को भी उनके साथ कर दिया। सबने मिलकर बहुत कोशिश की किंतु कुछ भी निश्चय न कर पाए। बीरबल ने कहा, ‘यह बात इतनी आसान नहीं है इसलिए हम लोग बादशाह से पंद्रह दिन की और मोहलत ले लें। तेरह दिन अपने-अपने घरों में विचार करते रहें, चौदहवें दिन मिलें। जो बात तय हो जाए उसी को पंद्रहवें दिन बादशाह के सामने पेश करें। । आशा है कि इस बीच कोई-न-कोई युक्ति अवश्य निकल आएगी।’

जौहरियों को एकमात्र बीरबल का ही सहारा था। जौहरियों का नेता फिर दरबार में आया। और बोला, ‘गरीबपरवर! अभी तक हम लोग किसी निश्चय पर नहीं पहुँचे हैं अतएव कृपा करके पंद्रह दिन की मोहलत और दीजिए ताकि हम अपना विचार पक्का कर लें।’

बादशाह ने कहा, ‘ठीक है, तुम्हें पंद्रह दिन की मोहलत दी गई।’ मानो डूबते को तिनके का सहारा मिला। सब लोग जान बचाकर अपने-अपने घरों को भागे।

उन्हें न दिन में चैन था और न रात को नींद आती थी। वे सोच के सागर में गोते मारने लगे, परंतु परिणाम कुछ भी न निकला। बीरबल भी चुप नहीं थे। दो दिन के बाद एक तरकीब उनकी समझ में आई। वे टकसाल घर में पहुँचे और हुक्म दिया कि कुछ अशर्फियाँ मामूली-सी एक रत्ती बड़ी ढाल दी जाएँ। हुक्म की देर थी, दो-तीन बनकर तैयार हो गईं। बीरबल ने उन अशर्फियों को एक थैले में बंद कर अपने पास रख रख लिया। जब चौदहवें दिन सब उपस्थित हुए तो बीरबल ने उनको अपनी युक्ति समझाई। फिर बोले, ‘कल आप सब लोग ठीक समय पर तराजू-बाट लेकर शाही दरबार में उपस्थित हों। वहाँ आपको अशर्फियों का यह थैला मिलेगा। सब लोग उसमें से एक-एक अशर्फी निकालकर बारी-बारी से तोलना शुरू कर दें। जो अशर्फी मामूली-सी बड़ी निकले उसको अलग निकालकर अपने बराबर वाले के हवाले करते जाएँ। फिर सरदार उस अशर्फी को बादशाह के कदमों पर रखकर कहे, ‘जहाँपनाह! बड़ी अशर्फी का मूल्य है। जब बादशाह पूछे-क्या मेरी कीमत एक अशर्फी है?’ तब जवाब दे, ‘हुजूर! जिस तरह अशर्फी का वजन एक रत्ती बड़ा है, उसी तरह आप भी अन्य लोगों से एक रत्ती बड़े हैं।’ यदि फिर भी बादशाह और कुछ प्रश्न करें तो समझ के अनुसार उत्तर दे।’ युक्ति सुनकर सब लोग घर गए। इतने दिनों बाद आज उनको नींद आई।।

पंद्रहवें दिन सुबह सब जौहरी बीरबल के मकान पर उपस्थित हुए। अशर्फी का जोड़ा लिए हुए बीरबल भी उनके साथ हो लिया। उधर बादशाह भी पंद्रहवें दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे। बादशाह ने बाहर बाग में एक बड़ा तंबू खड़ा करवाया। पंद्रहवें दिन उसी बाग में ठीक समय पर दरबार लगा और तमाम लोग जमा होकर बाग में बैठ गए। तंबू के बीच में बादशाह का सिंहासन था। उसके ठीक सामने जौहरियों के बैठने के लिए जमीन छोड़ दी गई थी।

बीरबल जौहरियों के दल से पहले आ पहुँचा। थोड़ी देर बाद जौहरियों का दल भी आ पहुँचा। लोग तंबू में खाली स्थान पर बैठ गए और उनके बीच अशर्फियों का एक थैला रख दिया गया। फिर क्या पूछना था, उसमें से प्रत्येक जौहरी ने एक-एक अशर्फी को तराजू में रखकर तोलना शुरू कर दिया।

कुछ समय बाद एक जौहरी बोल उठा, ‘लो भई, जिस बात की तलाश थी, मिल गई।’ इतने में उनका मुखिया उठा और उस अशर्फी को लेकर बादशाह के कदमों पर रख दिया। लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई। बादशाह को एक तरफ तो विस्मय और दूसरी तरफ हर्ष। वह उस अशर्फी को अपने हाथ में लेकर बोला, ‘क्या मेरी कीमत एक अशर्फी है?’

बूढ़े चौधरी ने गंभीरतापूर्वक उत्तर दिया, ‘जी हाँ, यही अशर्फी आपका मूल्य है और यही आपका वजन है। यह अन्य अशर्फियों से एक रत्ती बड़ी है। इस कारण इसके समान दूसरी अशर्फी नहीं है। जहाँपनाह! यह प्रजागण साधारण अशर्फी हैं और आप इस बड़ी अशर्फी के समान है।’

अकबर ने पूछा, ‘क्या मुझमें और अन्य मनुष्यों में केवल एक रती का अंतर है?’

सर्राफों का मुखिया बोला, ‘जी हाँ, गरीबपरवर! इसमें कुछ भी संदेह करने की बात नहीं है। आपमें और आपकी प्रजा में केवल इतना ही अंतर है कि प्रजा आपके अधीन रहने के लिए बनाई गई है। आम जनता में जिस तरह आप बड़े समझे जाते हैं, उसी तरह यह अशर्फी अन्य अशर्फियों से बड़ी साबित हुई है।’

जौहरी की तर्कपूर्ण बात सुन राजा गद्गद् हो गए और उसको उसके साथियों सहित अच्छा पुरस्कार देने की आज्ञा दी। जौहरी पुरस्कार पाकर मन-ही-मन बीरबल को आशीर्वाद देते हुए अपने-अपने घरों को चले गए।

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