एकता का बोझ-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Burden Story
Ekta ka Bhoj

Burden Story: अंकु देखो तो कौन आया है?
आँगन से सोहित के आवाज़ लगाने पर अंकिता ने जैसे ही खिड़की से झाँका ,उसका मन और मुँह दोंनो बुरी तरह से कड़वे हो उठे।
नीचे जो व्यक्ति  खड़ा था उसे देखकर ही मन का घाव टीस मारने लगा,वो अपने चेहरे पे छाए घृणा के भावों को संयत करने का  असफल प्रयास करने लगी।
तभी सोहित ने उसका ध्यान भँग करते हुए कहा,”अरे चौंको मत! जाओ जाकर चाय बना लाओ अदरक और इलायची वाली और ढोकले भी लाना साथ में हरी के साथ ड्राई चटनी जरूर रखना ,…”
ट्रे में मिठाई और पानी रखकर वो ड्रॉइंग रूम में गयी और  लौटने लगी।

अरे रुको अंकु,रोहित ने कहा तो उसे मजबूरन खड़ा होना पड़ा।
रोहित सोहित से कह रहा था ,डुग्गु मुझे माफ़ कर दो,और भतीजी की शादी की तैयारी करो
बड़ा अच्छा रिश्ता आया है तनु के लिए अब बात फाइनल हो गयी, तो अच्छा थोड़े ही लगता है कि  हम बस दो भाई  हैं और एकदूसरे के काम में इक्कठे न हों
चाय बन रही है…..संक्षिप्त सा उत्तर देकर अंकिता रसोईघर में आ गई, भगौने में उबलती चाय के साथ उसका मन भी उबल रहा था।
और बेख़याली में भाप ने उसका हाथ तेजी से जला दिया,उफ़्फ़ उसने तेजी से हटाकर हाथ पर एलोवेरा जेल लगा लिया।
और सोचने लगी कि क़ाश मन की जलन का भी कोई त्वरित इलाज होता ,ह्रदय की दीवारों पर पड़े बरसों के फफोलों ने अब टीस मारना शुरू कर दिया था।
वो मन की उँगली थामे  समय के पीछे भागने लगी,जब विदाई के समय मायके से सीख मिली कि अब नया घर ही तेरा है।
और ससुराल में उसका सामना हुआ जलन ,ईर्ष्या और नित नए  षड़यंत्रों के जाल से।
रोहित सर्वगुण सम्पन्न  अंकिता के आगे अपनी पत्नी को कमतर आंकता,
उसे भरोसा नहीं हो रहा था कि उसके साधारण दिखने वाले भाई को अंकिता जैसी पत्नी मिल जाएगी।
जो हर दृष्टि से उसकी पत्नी प्रतिभा से इक्कीस ही थी,उधर उसकी पत्नी ने भी अंकिता के साथ दुर्व्यवहार करने में कोई कमी न की।
अंकिता ने  उन दोनों के दुर्व्यवहार से स्वयं को बड़ा सीमित कर लिया ,पर हैरान वो तब अधिक हुई जब उसने अपनी सास  गायत्री देवी को भी  रोहित और उसकी पत्नी के  समर्थन में पूरी तरह से पाया।
सोहित के अँधे भरोसे का लाभ उठा कर उन लोगोँ ने उसके हाथ से सब वैसे भी ले ही लिया था,पर सबसे चुभने वाली बात थी।
बातें अब  भद्दे  षडयंत्र से उठ कर हिंसा तक जा पहुंची थीं।बार-बार उसके स्वाभिमान,सम्मान के साथ अपराध और फिर माफ़ीनामे का सिलसिला चल पड़ता पारिवारिक एकता के नाम पर।
उसका मन  सारे वाकये और दर्द याद कर आँखों के रास्ते  से छलक उठा ।
वो मनहूस दिन का दृश्य  आँखों के आगे आ कर खड़ा हो गया ,किसी अभिशप्त प्रेत सा आकर ,
जब उसे और सोहित को सिर्फ एक सूटकेस के साथ घर छोड़ना पड़ा था।
जब जायदाद के लालच में अँधे  रोहित ने उस पर हाथ उठाया था कई बार।
सहायता की अपेक्षा में जब उसने कदम बाहर निकाला तो उसका सामना हुआ।
घर के बाहर लगी भीड़ से और बड़बोले  रोहित ने बड़ी बेबाक़ी से उसके चरित्र पर लाँछन लगा दिये कि उसने उसके कुछ वीडियो देखें हैं।
भयभीत हिरनी सी अंकिता ने बेबसी से भीड़ की तरफ़ देखा,तमाशबीन भीड़ बस मज़े ले रही थी,किसी स्त्री की अस्मिता कितनी कमज़ोर बना दी है समाज ने….।
“एक विवाहिता स्त्री का अपना व्यवहार नहीं बल्कि ससुराल वालों के बयान चरित्र तय करेंगे मेरा और आप लोग कायरों की तरह क्या तमाशा देख रहे हैं इस गिरे हुए व्यक्ति का”
जाइये कोई काम नहीं है या फिर आप अपमानित होकर जाएंगे।,और भीड़ काई की तरह फट कर कम होने लगी।
भय से थर थर काँपती अंकिता ने साहस बटोर कर कहा।
हाँ मिस्टर सो कॉल्ड सगे  एक परिवार के शायद यह दिन मेरा आपलोगों के बर्ताव को बार बार माफ करने के कारण आया है,
अब चूँकि,आपलोग इस कदर गिर चुके हैं तो अब मैं आपसे किसी सम्बंध की इच्छुक नहीं हूँ।इतना कह वह सोहित के साथ किराए के घर में रहने लगी।
कई बार अवसादग्रस्त  हो उसने जान देने का विचार भी  बनाया ,”पर सोहित ने तसल्ली दी कि किसी गलत व्यक्ति के कहने से तुम अपराधी नहीं हो जाओगी।
बच्चे और मैं तुम्हें बेहतर समझते हैं और ये भीड़ किसी की सगी नहीं,पति के इस विचार ने उसे जीने का एक नया दृष्टिकोण दे दिया।
अब उसने समाज की परवाह छोड़ दी और समाज की याददाश्त यूँ भी कम ही होती है।
चाय लेकर दोबारा उसके कदम ड्राइंगरूम की तरफ़ बढ़े,वह चाय देकर जल्दी से हटना ही चाहती थी।
कि रोहित ने चाय का कप लेते हुए एक बार फिर माफ़ी माँगी सोहित से,”सोहित के चेहरे पर ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य के भाव अवश्य थे अपने बड़े भाई  रोहित को  रँग बदलते देखकर ..
उसने दृढ़ता से कहा, भाई होने के नाते मैं आ जाऊँगा पर मैं अंकु पर कोई दबाव नहीं डालूँगा माफ़ी माँगनी है तो आप अंकु से माँगिये, ।
रोहित-,अंकु मुझे माफ़ कर दो और तुम दोंनो शामिल हो गए,तो अच्छा लगेगा।
जी ….माफ़ तो मैं आपको कर चुकी हूँ ,आपकी असभ्यता के लिए  ,पर मैं माफ़ी चाहती हूँ आपसे एपीजे परिवार के किसी भी कार्यक्रम में  शामिल न होने के लिए।
रोहित -क्योँ घर की छोटी बहू हो हक़ से शामिल हो और अपनी जिम्मेदारी सँभालो परिवार की?
अंकिता-आपके मेरे चरित्र पर ईर्ष्या और लालचवश दिये घाव भरे नहीं हैं ,वो शब्द अभी भी उतने ही ताज़े है हवाओं में…

कहीं  किसी ने परिचय यह पूछ लिया कि मैं  कौन हूँ अलग क्यों रहती हूँ?
क्या कहूँगी,” इनके छोटेभाई  की पत्नी इनके द्वारा चरित्रहीनता का  आरोप ढोने के कारण अलग हूँ घर से अब आप इस घर मे बेटी देना पसन्द करेंगे या लेना?”
किस पारिवारिक एकता की बात कर रहे हैं आप?परिवार के  सम्मान का बोझ अपने  स्वाभिमान के शव पर नहीं रख पाऊँगी,क्या आपकाये गुनाह माफ़ी योग्य है?
रोहित की आँखे शर्म से झुक गयीं और अपराधी को सजा सुनाकर  अंकिता हल्के मनोमस्तिष्क के साथ तेजी से बाहर निकल गयी।