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बुलंद हौंसले – गृहलक्ष्मी कहानियां

अजय के बारहवीं का रिजल्ट आया था ,उसने टॉप किया था, अच्छे कॉलेज की भागमभाग में घुस गया था अजय। उसकी माँ पिताजी का बस एक ही सपना था , मेरा अजय, मेरा लाल डॉक्टर बनेगा।मेडिकल एंट्रेंस के रिजल्ट की घोषित होने की बारी आई आज ।

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किराए की कोख – गृहलक्ष्मी कहानियां

अस्पताल का गलियारा गर्भवती महिलाओं से भरा था।ब्लीच की पूरी गंध मुझे असहज महसूस करा रही थी।

डॉ अनीता वर्मा ने अपने केबिन में प्रवेश किया।मैं एक नियमित जांच के लिए उनके पीछे कैबिन मे गई।

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उम्मीद की एक नई सुबह – गृहलक्ष्मी कहानियां

मुझे एहसास हुआ कि मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई है। मैंने अंजलि को अनब्लॉक किया और मैसेज कर बात करने की कोशिश की। पर कोई रेस्पॉन्स न पा कर उसे फोन करने की हिम्मत नहीं हुई। मैं समझ गया कि देर हो चुकी है। मैं माथा पकड़ कर बैठ गया। मेरी उम्मीद का सूरज डूब चुका था।

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पिघलते बर्फ – गृहलक्ष्मी कहानियां

जिम्मेदारियों ने कब शैली की जिंदगी को बर्फ सा बेजान बना दिया, उसे पता ही नहीं चला। लेकिन अचानक उसकी जिंदगी का मौसम बदला और मन पर जमी बर्फ की परतें पिघलने लगी।

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एक नई शुरुआत – गृहलक्ष्मी कहानियां

पापा का स्वेटर और शाल उसकी ताकत बन गए थे। पापा के पास होने का अहसास उसके मन में अजीब सी शक्ति और जीवन भर गया था और वो धीमे से मुस्कुराते हुए भीगी पलकें लेकर ना जाने कब सो गया। आनेवाली सुबह निश्चिन्त ही उसके लिए नयी सुबह होने वाली थी…

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ये ग्रुप के अंदर की बात है – गृहलक्ष्मी कहानियां

मेरे मोबाइल में भी व्हाट्सएप्प है और व्हाट्सएप्प में कई ग्रुप हैं। इनमें से कुछ ग्रुप में मैं अपनी इच्छा से जुड़ा हूं, किसी में जबरन जोड़ लिया गया हूं, किसी में हाथ-पैर जोड़ कर जुड़ा हूं, क्योंकि किसी व्हाट्सएप्प ग्रुप का सदस्य या एडमिन न होना मतलब किसी के पास आधार कार्ड न होने जैसा है।

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छोटी भाभी आपने मेरा मायका लौटा दिया – गृहलक्ष्मी कहानियां

दीदी स्टेशन पे आ गया हूँ मैं, तुम अपने सीट पे ही रहना मैं आ जाऊंगा… “|

“हाँ ठीक है वीनू.., मैंने कहा और फ़ोन वापस अपने पर्स में रख मैंने नज़रे खिड़की के बाहर टिका दी ” |

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मेहमान बन कर आएंगे – गृहलक्ष्मी कहानियां

कलेक्टर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वसुधा ने अपने पति से कहा, “अशोक हम दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं, क्यों ना अब हम राहुल के साथ रहें। उन्हें सहारा मिल जाएगा और हमारे लिए भी कितना अच्छा होगा, इकट्ठे होकर रहना।”

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बहू, जरा भल्ले लाना!

शादी के बाद मैं पहली बार अपने पति के साथ पंजाब गई थी। मेरी छोट ननद का पूरा परिवार वहीं रहता है। मेरे जाने के दो-चार दिन के बाद ही मेरे भांजे का जन्मदिन पड़ा। मैं मेहमानों को खाना परोस रही थी, वहां पर दही-बड़ों को भल्ले कहा जाता है। खाना खाने बैठी तो कुछ […]

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सच्चा प्रेम – गृहलक्ष्मी कहानियां

प्रताप की जि़ंदगी से अनुपमा जा चुकी थी और अब उसकी जि़ंदगी में ल्युसी ही सब कुछ थी। और एक दिन अचानक अनुपमा और ल्युसी दोनों ही संसार से विदा हो गए। अपनी पत्नी की मौत की खबर पर वह लाख कोशिशों के बावजूद एक आंसू न बहा सका, लेकिन अपने पालतू जानवर की मौत पर उसके आंसू रोके न रुके।

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