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कुंठित भूख – गृहलक्ष्मी कहानियां

वो सड़क पर लापरवाह उद्देश्यहीन इधर-उधर यूं ही भटक रहा था। काम की तलाश में था मगर काम मिलने की कोई संभावना नहीं थी, दूर-दूर तक न थी, मास्क लगा ये वक्त है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। उसने कुंठित हो अपना मास्क नोंच फेंका, हालांकि बड़े कष्ट सहने के बाद पूर्वजन्म के सद्कर्मों के पुण्य से या कह लो देवयोग से कल ही उसे यह मास्क मिला था।

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अपरिग्रह – गृहलक्ष्मी कहानियां

‘बस से उतर कर मैं घर की तरफ चल पड़ा। परसों ही छोटे भाई का फोन आया था कि भैया एक बार घर आ जाओ, पिताजी-माँ आपको बहुत याद करते हैं।’ मैं समझ गया था, ज़रूर पैसों की ज़रूरत होगी।

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प्रेम की दीवार – गृहलक्ष्मी कहानियां

नदी के किनारे छोटे-छोटे कंकड़ों को लेकर फिर नदी में फेंकना और उनकी डुबुक-डुबुक लहराती कई जगह कूदती चाल देखना ये भी अपने आप में इंतज़ार का समय बिताने का एक कतिपय साधन है। रोहित आज अपनी प्रेमिका सुधा का इंतज़ार ऐसे ही कर रहा था।

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शाबाश – गृहलक्ष्मी कहानियां

तन्वी छोटी सी थी जब उसके पिता नहीं रहे, नानी नानाजी उसे और उसकी माँ को अपने घर ले आये थे। ननिहाल में वैसे बाक़ी सब ठीक था किन्तु माँ ने सबके लाख समझाने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया था।
इसलिये जब कभी नानी और माँ में खटकती तो नानी पहले उसके मरहूम पापा को कोसती जो अपनी जिम्मेदारी पूरी किये बिना इस दुनिया से चले गए और फ़िर तन्वी की बारी आती, जिसके मोह में उनकी बेटी जीवन भर वैधव्य की चादर ओढ़ कर बैठी थी। तीसरा वार वो ईश्वर पर करती थी। जिसने उसकी पुत्री और नातिन को आश्चर्यजनक रूप दिया, और इतनी ख़राब किस्मत दी, अब इन दो प्राणियों की चिन्ता में वो स्त्री दिन प्रतिदिन चिड़चिड़ी होती जा रही है।

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धूप की तलाश – गृहलक्ष्मी कहानियां

बड़ी देर से धूप की तलाश थी। पता नहीं आज सूरज भगवान कहाँ गायब हो गए हैं। ठंढ से बदन अकड़ा जा रहा है। ऊपर नजर दौड़ाई, आसमान दिख ही नहीं रहा है। यानी नीला आसमान गायब है। उसकी जगह मटमैली, भूरी, फटी सी चादर दिख रही है। झबरी बोली-कई दिनों से ये धुँध बढ़ती ही जा रही है।

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‘गर साथ तुम्हारा मिल जाता’ – गृहलक्ष्मी कविता

रुई के फाहे से गिरते हिम के टुकड़े, मेरे मन को करते विह्वल आंखो से बहते निर्झर, बन के पानी ये पिघल-पिघल बिसरी यादों की कुछ कड़ियां, जो लिपटी हुई मेरे कल से वापस उनको फिर मैं पाता, गर साथ तुम्हारा मिल जाता उगते सूरज की स्वर्ण किरण सी, यादें  तेरी मन में छा जातीं […]

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दिन और रात उनके दर्शन करते हैं

जब मैं सात-आठ साल की थी तो मैं अपनी नानी जी के घर रहने के लिए गई थी। वहां पर हम सभी बैठे बातें कर रहे थे तो वैष्णों देवी की बातें होने लगीं और मेरे मामा-मामी जी ने बताया कि जब वे लोग वैष्णों देवी की यात्रा पर गए थे तो उन्होंने लगभग रात […]

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रिवाज या लालच – गृहलक्ष्मी कहानियां

हैलो समधन जी! कैसी हैं आप? मैंने सोचा कि आपको याद दिला दूं कि शिखा की गोद भराई आने वाली है| सब तैयारी हो गई है ना? देखना हमारा सबके सामने तमाशा ना बने” शिखा की सास लता जी ने फोन पर कहा।

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सिनेमा घर का चक्कर

जब मैं छोटा बच्चा था तो बेहद नटखट था। मेरी माताजी की, उनकी सास यानी मेरी दादी से आए दिन खट-पट होती ही रहती थी और माताजी को मनाने के लिए हमारे पिताजी पास के ही सिनेमाघर में माताजी को ले जाते थे, मेरा भी बहुत मन होता था कि मैं भी जाकर देखूं वहां होता क्या है।

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हमें भी सम्मानित करो – गृहलक्ष्मी कहानियां

कोरोना कब जाएगा ये तो चीन को भी नहीं पता परंतु कोरोना कैरियर्ज से ज्यादा कोरोना वारियर्ज की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

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