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गृहलक्ष्मी की कहानियां – गुलाम

साल पूरा होने के पहले ही मंगलू सेठ कर्ज मांगने गंगा के घर पहुंच गया, गंगा ने हाथ जोड़ते हुए कहा। ‘‘सेठ जी अभी तो फसल कटने को एक महीना है, थोड़ी सी और मोहलत दे देते। मैं आपकी पाई पाई चुका दूंगी।

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ठेस

मुझे जीना है अपनी पत्नी रेखा के लिए। भले ही उसने मुझे पति का दर्जा और मान-सम्मान न दिया हो, पर मैं उसे पत्नी मानता हूं। मेरे सिवा उसका है भी कौन? मुझे अपना इलाज कराना ही होगा। मुझे ठीक होना है अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए रेखा के लिए…

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”मुक्ता” -गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कहानियां –मुक्ता गुस्से में थी। पति सलिल घटिया किताबों, पुरूषत्व की ताल ठोंकने वाले मित्रों की मनगढ़न्त झूठी बातों को सच मानकर मुक्ता की देह पर जिस तरह टूटता, मुक्ता को ऐसा लगता जैसे उसके शरीर का अपमान किया जा रहा है। वह हर रात इसी अपमान के दौर से गुजरती। सलिल देशी-विदेशी […]

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उलझन

अपने बेटे की शादी के लिए रिश्ता तलाश करने गई गीता के सामने एक बड़ी उलझन आ गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह आगे क्या करे, लेकिन राकेश ने समझदारी दिखाते हुए कुछ ऐसा व्यवहार किया कि सब कुछ स्पष्ट हो गया।

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गृहलक्ष्मी की कहानियां – गुलामी

जिंदगी भर हम औरतें तो गुलाम ही बनी रहती हैं, अपनी इच्छाओं को मारकर जीते हैं हम। हमारी कौन सुनता है, दिल में इतनी आग लगी थी बस सब कुछ जलाकर ही बुझेगी ये आग।

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”अकेली”

उनके कोई रिश्तेदार भी नहीं थे, जो थे, सब मुंह मोड़ चुके थे। मैंने उनके अकेलेपन को अक्सर उनकी आंखों में पढ़ा था। वह अक्सर तन्हाइयों से घबरा जाती थीं…

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सूनापन

कान उल्टे ढोलों की आवाज से सुन्न पड़ गए थे। वो ऑंखें हमेशा के लिए बंद हो चुकी थी। सारा दोष तो आखिर इन्हीं ऑंखों का था। अब खुली ऑंखों के अन्दर बन्द ऑंखें समा गई थी।

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दुखिया सब संसार

पुजारी जी भले ही अपनी कालोनी में सम्मानित वृद्ध थे, पर उनके घर में उनसे भी यही उम्मीद की जाती थी कि वे अपनी शक्ल ज्यादातर बाहर वालों को दिखाएं और धर्मशाला की भांति सिर्फ रात्रि-शयन के लिए घर पर आएं।

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गृहलक्ष्मी की कहानियां : सच्ची सगाई

जिन शिखा दीदी को खुशी बरसों से यादों में बसाए हुए थी, उनकी आवाज सुनते ही खुशी की खुशी का पारावार नहीं रहा…उसे लगा कि आज हुई है उसकी सच्ची सगाई ।

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