प्रभात का समय धीरे-धीरे दोपहर में बदलने वाला था। सूरज अपने घर से वापस लौट कर लोगों को प्रकाश देने फिर अपने यथा स्थान पर पहुंच गया था। सूरज की लाल-लाल किरणें भूमि तट को स्पर्श करके वातावरण में अत्यधिक गरमी छोड़ रही थी। घड़ी में सिर्फ अभी 8 या 9 ही बजा होगा कि दोपहर की भॉति धूप त्वचा को जला रही थी। लेकिन नेहा अभी भी वैसे ही खड़ी थी जैसे कि थोड़ी देर पहले। आज उसके तन पर गुलाबी रंग का टॉप तथा काले रंग की जींस थी। छोटे से सफेद कुत्ते की जंजीर से पकड़ घर के बाहर खड़ी थी।  कुत्ता टहलाना तो शायद उसका बहाना था शायद वह किसी का इंतजार कर रही थी।

आज  भी खड़ी वह भारत का इंतजार कर रही थी। फर्क इतना था कि वह रोज संध्या समय उसकी झलक देखने को व्याकुल रहती थी। लेकिन वह आज स्वंय को जाने से न रोक पाई क्योंकि वह आज उसके जन्मदिवस पर बधाई देना चाहती थी। और इसीलिए शायद उसकी ऑखें कभी इधर तो कभी उधर घूमकर वापस उसी के घर की ओर टिकती थी। लेकिन आज सामान्य दिन की तरह वैसा दिन नहीं था। और न ही कोई आज जन्मदिन की पार्टी थी।

आज भारत का शायद सबसे बड़ा खुशी का दिन था। वह हमेशा हमेशा के लिए जीवन से मुक्त हो गया था। उसके प्राण पक्षी की भॉंति आकाश में सैर कर रहे थे। ऐसा दिन उसके पास पहली बार आया था। पर वह अपनी इस खुशी में कभी-कभी ऑंसू भी गिराता जा रहा था क्योंकि वह यहॉं अपनों के पास बैठते हुए भी उनकी नजर में नहीं था। अगर था तो सिर्फ उसका मृत शरीर जमीन पर कफन ओड़े पड़ा था। 

पलकें बिल्कुल ऑखों से चिपक चुकी थी। एैसा प्रतीत हो रहा था। जैसे वह गहरी निद्रा में किसी स्वप्न लोक की दुनिया मैं सैर कर रहा हो या मानो वह सदा-सदा के लिए ईश्वर में मिल गया हो। उसके प्राण मानो बार-बार यही कह रहे हों ‘‘ईश्वर ऐसा जीवन मरण न दे” और जैसे वह सदा-सदा के लिए जीवन मरण के बन्धन से मुक्त हो गया हो।

उसका जश्न अपने लोगों की ऑखों में ऑसू देखते ही लुप्त हो जाता था। और वह मन ही मन कहा रहा था, ‘‘दुनिया  ढोलक की तरह है जिसे बजाने पर तो ध्वनि उत्पन्न होती है लेकिन है यह बिलकुल खोखली”। सोच रहा था विचित्र है ये दुनिया और यहां के लोग जो कि जीवन में कभी पूछते भी नहीं थे । और आज वह खाकी ऑसूओं का दिखावा कर रहे हैं।

बाहर लकड़ियों को बांध कर ठहरी तैयार की जा रही है। पहले तो नेहा को कोई होश ही नहीं था। लेकिन जब लोग भारत का शव उठा कर उस पर लिटाने लगे तो नेहा को जैसे धक्का सा लगा। दूर से ही नेहा ने पिंकी को आवाज दी। पांच साल की छोटी चंचल बालिका भारत की छोटी बहन। नेहा ने पूछा, पिंकी, भइया को क्या हुआ? पिंकी शांत खडी थी। उसके पास इस प्रश्न का जानते हुए भी कोई जबाव नहीं था। नेहा ने फिर कहा,” बोल पिंकी चुप क्यों है बता” पिंकी अभी भी वैसे शांत खड़ी रो रही थी।

पिंकी भारत की सबसे लाडली बहन थी। अगर भारत उससे कभी भी कोई काम कहता तो वह झट से करती थी। खाना पहले भाई को खिलाती जब स्वयं खाती थी। पानी मांगना हो खाना मांगना हो या कुछ खाने के लिए बनवाना हो तो कभी भी उसकी जुबान पर ‘न’ शब्द तो आज तक नहीं आया। वह सब जानती थी। इसीलिए वह चुपचाप खड़ी थी। आज उसकी ऑंखों में ऑंसू नहीं थे। लेकिन सूने ऑसुओं से भरी ऑंखें बिना हिले रो रही थी। इस वक्त नेहा को अगला प्रश्न पूछने की हिम्मत नहीं हुई। पर अचानक की पिंकी बोल उठी — दीदी कल पता नहीं क्यों भइया उदास से थे। वह बार-बार उठकर गिर पड़े रहे थे। इससे पहले तो एैसा कभी नहीं हुआ था। पता नहीं उनसे किसने क्या कह दिया था? रात को ऐसे ही लेट गए और जब सुबह सबने जगाया तब से वे अब तक जागे नहीं। सब कह रहे हैं कि भइया मर गए। पर मेरा दिल ऐसा नहीं कहता दीदी। वे मुझसे अलग होकर कभी नहीं रह सकते। उन्हें छोटी-छोटी रोटियॉं सेक कर और चुपड़ कर कौन खिलाएगा? दीदी वे मुझे सबसे ज्यादा …..। और फिर फूट-फूट कर रोने लगी।

भारत का शव अन्तिम यात्रा के लिए चलने लगा था। और राम-नाम सत्य की गूंज उठ रही थी। नेहा का घर बिल्कुल सामने ही है। दोनों की छत बिल्कुल लगी हुई है। फूलों और गुलाल से भारत का माथा ढक गया था। नेहा अभी भी वैसे ही खड़ी थी। मिट्टी उसके सामने से निकल रही थी। 

अरे आखिर यह हुआ क्या? वह तो सरप्राइज देने आई थी। लेकिन वह तो स्वयं अचरज में पड़ गई थी। उसे आज याद आ रहे थे वे दिन जब वह खड़ी होकर भारत को देखा करती थी। जब भारत को इस बात का पता लगा तो उसने मित्रता के लिए नेहा को प्रपोज किया था। उसने काफी हिम्मत जुटाई बात करने की। एक दिन अचानक ऐसा संयोग बैठा था कि भारत बाजार जा रहा था। और उसी समय अपने घर से नेहा निकल पड़ी, उसने बड़ी ही मुश्किल से हिम्मत जुटा कर कहा कि मुझे तुमसे बात करनी है। नेहा ने जबाव दिया, ” हॉं बोलो” उसके रूखे जबाव से भारत की आगे बोलने की हिम्मत न पड़ी थी।

और एक दिन वह अपनी छत पर खड़ा था। उस वक्त नेहा कहीं जा रही थी। लेकिन दो तीन बार मुड़कर उसने भारत की ओर देखा। उससे रहा नहीं गया और रास्ते में उसे रोक कर उसने पूछा, बात नहीं करनी। तो नेहा ने जवाब दिया, नहीं” भारत ने पूछा, इस वक्त या कभी नहीं? फिर नेहा ने जबाव नहीं दिया और रास्ता बदलकर दूसरी ओर चलने लगी। एक दिन तो उसने इस कार्य के लिए अपनी छोटी बहन को भेजा तो नेहा ने जबाव दिया, भइया से कह देना कि ये हरकते बन्द कर दें। मैं किसी लड़के से दोस्ती नहीं करती।

फिर अगले दिन नेहा ने स्वयं ही पिंकी को बुलाकर कहा, भइया कह देना कि अगर उन्हें फ्रेन्डशिप करनी है तो अकेले में आकर बात करें। और इस बात का जिक्र किसी को नहीं होना चाहिए। कुछ दिन बाद पता नहीं उसने बात करना फिर बंद कर दिया। घर से बाहर आना भी बंद कर दिया। जब उसने अपनी छोटी बहन को नेहा के पास भेजा तो उसने कहा कि मेरी सहेली की दीदी ने देख लिया है इसीलिए अब दोस्ती बिल्कुल बंद। जब उसे बाहर कोई कार्य होता तो ही वह बाहर आती और फिर सीधे घर के अन्दर। अब उसका वहॉं खड़े होने का कोई मतलब न होता था।

कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन उसे भारत बाहर दिख गया। उस समय वह दुकान पर कुछ सामान लेने गई थी। सामान घर के अन्दर रखने के पश्चात वह उस समय बाहर ही खड़ी रही थी। फिर वह तभी खड़ी होती थी जिस दिन उसे भारत दिखाई पड़ता था। एक दिन उसे भारत नहीं दिखाई दिया। वह अपने मित्र के साथ बाहर टहल रहा था। शायद उस समय थोड़ा सा अंधेरा होगा। वह अपने घर के दरवाजे से झांक कर उसी की ओर देख रही थी।

एक बार फिर भारत ने उससे बात करने की सोची । और आखिर उसे रास्ते में वह एक दिन मिल गई। वह रास्ते में रिक्शे का इंतजार कर रही थी। जब वह उससे बात करने गया तो कुछ लोगों ने उस पर लड़की छेड़ने का आरोप लगाया। उसने बताया कि मैं इसे अच्छी तरह जानता हूँ। मैं और ये हम दोनों आपस मैं…। लेकिन नेहा ने उस समय भारत को पहचानने से इन्कार कर दिया था। 

अचानक एक आवाज आई बेटी नेहा धूप हो गई है। क्या बाहर ही खड़ी रहेगी? लेकिन वह अभी भी वहीं खड़ी थी। कान उल्टे ढोलों की आवाज से सुन्न पड़ गये थे। वो ऑंखें हमेशा के लिए बंद हो चुकी थी। सारा दोष तो आखिर इन्हीं ऑंखों का था। अब खुली ऑंखों के अन्दर बन्द ऑंखें समा गई थी। दुबारा फिर आवाज आई, ‘‘बेटी नेहा।” तभी एक आंसु की बूंद उसकी ऑंखों से टपकी। उसने ऑंसू की बूंद पोंछते हुए कहा, अभी आई मॉं। ” आखिर जैसे जिन्दगी के सूनेपन ने उसे जकड़ लिया हो।